Tuesday, December 30, 2008

क्या महिलायें आतंकवादी नहीं होती हैं?

जैसा कि मैंने अपने पिछले पोस्ट में बताया था कि मुंबई हमले के बाद से मेरी कंपनी में भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है.. मेटल डिटेक्टर भी उसी सुरक्षा व्यवस्था का ही एक हिस्सा है.. जब मैं ऑफिस के अंदर घुसता हूं तो सबसे पहले मेरा बैग चेक किया जाता है.. फिर मेटल डिटेक्टर से मेरी जेबों को चेक किया जाता है.. यह जरूरी है कि जेबों में कुछ भी मेटल का नहीं होना चाहिये.. ना सिक्के और ना ही कोई चाभी..

एक-दो दिन मैं यही देखता रहा, जो भी कर रहे थे सही कर रहे थे.. जांच से होने वाली परेशानी से मुझे कोई दिक्कत नहीं थी.. मुझे दिक्कत इससे थी कि जब आपको यह काम दिया गया है तो सही तरीके से करो.. जैसे वो कभी मेटल डिटेक्टर से मेरे जूतों को सर्च नहीं करता था.. मैंने उसे एक बार इसे लेकर टोका भी मगर गार्ड का कहना था कि, "सब ठीक है आप जा सकते हैं.." और इसके साथ एक मुस्कुराहट.. फिर मैंने उसे सबक सिखाने के लिये अपना पेन ड्राईव ले गया अपने जूतों में छिपा कर.. जब उसने चेक करके कंफर्म कर लिया तब मैंने पेन ड्राईव निकाला और कहा कि इसे जमा कर लो.. गार्ड आश्चर्य से मेरा चेहरा देख रहा था.. मैंने उसे कहा कि कोई भी हथियार अपनी जेब में छिपा कर नहीं ले जाने वाला है, मानो कह रहा हो कि आओ और मुझे पकड़ लो.. खैर उसे नहीं सुधरना था सो अभी तक नहीं सुधरा है..

मुझे दुसरी शिकायत उससे यह है कि वह मेटल डिटेक्टर से सभी पुरूष कर्मचारियों को तो सर्च करता है मगर आज तक कभी उसे महिला कर्मचारियों को चेक करते नहीं देखा है.. मेरी जानकारी में तमिलनाडु ही वह राज्य है जिसने महिला आतंकवादी का सबसे बड़ा आघात भारत को दिया था, जब राजीव गांधी की हत्या हुई थी.. अब अगर ऐसे में यहीं के लोग यह मान कर चलने लगे कि महिला आतंकवादी नहीं हो सकती है तो इस देश के दुर्भाग्य पर और मैं क्या कह सकता हूं? मैंने सोचा है कि अगले एच.आर. मिटींग में यह मुद्दा उठाऊंगा.. देखिये आगे क्या होता है?

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11 comments:

  1. प्रशांत जी, नए साल के शुभकामनाएं,
    बिलकुल उठाइए जी एच आर मीटिंग में इस मुद्दे को. आखिर कंपनी की सुरक्षा का सवाल है, मेरा मतलब आपकी भी. इन प्राइवेट गार्डों को क्या पता?

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  2. बढिया जी ! ये सिर्फ़ उपर उपर ही सर्च करते हैं और महिलाएं क्यों नही हो सकती ? स्व. राजीव गांधी की हत्या किसने की थी ?

    रामराम !

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  3. महिलाएं आतंकवादी होती हैं यह नहीं कह सकता। लेकिन वे आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल होती हैं।
    और यह तो जगत सत्य है कि भले लोगों पर पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आतंक अधिक होता है।

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  4. "और यह तो जगत सत्य है कि भले लोगों पर पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आतंक अधिक होता है।"
    वाह क्या बात कही आपने.. बिलकुल सच.. :)

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  5. सही कहा। सुरक्षा कर्मी अपनी डयूटी सही तरीके से नही निभाते हैं। चाहे वो प्राईबेट हो या सरकारी।

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  6. pen drive se kaun sa aatank failegaa ye wonder kar rahe hai hum... :O

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  7. मूल बात यह है की शहर की हर बिल्डिंग को हम फूल प्रूफ़ नही बना सकते| जरा सोचिये कितना धन लगता होगा इसमें| आतंकवाद ख़तम कीजिये और पेन ड्राइव गले में लटकाकर घूमते रहिये|

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  8. बिलकुल सही मुद्दा उठाया है आपने, सरेआम सड़क चलते भी यह देखा जा सकता है, जब ट्रैफ़िक का सिपाही लड़की को तो आराम से जाने देता है, लड़कों को रोक लेता है, पेट्रोल पंप पर बेचारी अबला लाइन तोड़कर पेट्रोल ले जाती है और हम मुँह देखते रह जाते हैं (पंप कर्मचारी का)… भाई मुझे तो ब्लॉग जगत की महिलाओं से भी बड़ा डर लगता है आजकल… पता नहीं किस बात का बतंगड़ बनाकर चढ़ दौड़ें… आपका समर्थन करता हूँ कि महिलाओं की भी संपूर्ण चेकिंग होना चाहिये… (महिला सुरक्षाकर्मियों द्वारा) :) :)

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  9. तभी तो, अमेरिका में एरपोर्ट पर जूते भि उतरवाए जा रहे थे। अब शायद वह बंद कर दिया गया हौ। हम समझते है कि सेक्यूरिटी वाले तंग कर रहे है और जब चूक हो जाय तो कहते हैं सेक्यूरिटी की चूक थी।

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  10. PD भाई एक बात और भी है| आपकी सराहना करता हूँ की आपने इतना ध्यान दिया इस बात पर और सहयोग किया सुरक्षा जांच में| लेकिन आप अपने ऑफिस का ही उदाहरण लीजिये, ज्यादातर लोग इससे चिढ़ते हैं, क्यूँ टाइम वेस्ट कर रहा है| और जब मुंबई दहलती है तो मोमबत्ती लेकर पहुँच जाते हैं|

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