Sunday, December 28, 2008

क्यों अक्सर भाई बहनों के लिये लड़ते हैं?

कल भी किसी आम दिन कि तरह ही दीदी को फोन किया और बात चलते-चलते बहुत लम्बी खींच गई मगर फिर भी फोन रखने का मन नहीं कर रहा था.. आखिर बहुत दिनों बाद दीदी के साथ पुराने दिनों को याद करते हुये वर्तमान को जी रहे थे.. अक्सर दीदी को जब भी फोन करता था तो दीदी कि बेटी उनसे फोन छीन लेती थी और फिर उसी से बात होती रह जाती थी.. 4.5 साल कि है.. कल भी कुछ ऐसा ही हुआ और फोन लेने के चक्कर में ठुनकते हुये दीदी को तंग करने लगी.. मैंने उससे कहा कि मम्मी को तंग क्यों कर रही थी? सॉरी बोलो मम्मी को.. इस बात पर कुछ देर तक कुछ नहीं बोली और चुपचाप दीदी को फोन देकर भाग गई, मगर सॉरी नहीं बोली.. इसी बात पर हमारी बातें होने लगी.. दीदी बोल रही थी कि इस लड़की में बहुत अकड़ आती जा रही है और मेरा कहना था कि इसे उद्दंडता में मत बदलने दिजियेगा..

दीदी अपने मनोभावों को बताने लगी, कहने लगी कि वो बहुत खुश होती है जब इसे ऐसे देखती है.. दीदी को लगता है कि जैसी वो खुद थी और है वैसी उसकी बेटी नहीं है.. जहां वो हर बात चुपचाप मान लेती थी वहीं उसकी बेटी को जो पसंद होता है उसपर कोई समझौता नहीं करना चाहती है.. मगर मेरी इस बात से भी सहमत थी कि यह उद्दंडता में ना ही बदले तो अच्छा हो..

बातों ही बातों में पुरानी बात याद करने लगी.. एक बार दीदी कि मित्र दिपाली दीदी ने दीदी को अपने घर पर आमंत्रित किया था और चूंकि उनका घर हमारे घर से बहुत दूर था सो पापा-मम्मी इजाजत देने में हिचकिचा रहे थे.. इस बात पर दीदी ने कुछ नहीं कहा मगर मैं पापा-मम्मी से खूब बहस किया था कि मैं पूरे दिन बिना किसी काम के घर से बाहर रहता हूं.. दिन भर पटना के चक्कर लगाता हूं.. कभी मुझसे तो नहीं पूछा गया कि मैं कहां जाते हो? किस जगह बिना मतलब का पेट्रोल जलाता हूं.. और रही बात दिपाली दीदी के घर जाने कि तो मैं दीदी को ले जाने और ले आने को तैयार हूं ही.. फिर उस दिन मैं दीदी को लेकर गया था और दीदी को दिपाली दीदी के घर छोड़ कर अपनी एक मित्र के घर चला गया था जो वहीं पास में रहती थी.. राजेन्द्रनगर रोड नं-10 में..

मुझे अब कुछ भी याद नहीं था कि ऐसा कुछ हुआ भी था मगर दीदी नहीं भूली और उसने मुझे भी वो सब कुछ याद दिला दिया.. उसने यह भी याद दिलाया कि किस तरह हर दिन सुबह 6.30 में मैं उन्हें उनके कालेज छोड़ता था और यह क्रम पूरे दो सालों तक बना रहा.. गर्मी हो, बरसात हो या कड़कड़ाती ठंड.. हमारे बीच बहुत ज्यादा बहस हुआ हो या कोई झगड़ा हुआ हो.. मगर दीदी की अलार्म घड़ी भी मैं ही था और सुबह ठीक 5.30 में दीदी को जगाता था.. हमारे बीच बातचीत बंद हो तो भी सुबह उठकर दीदी को आवाज ना लगा कर दीदी के पलंग को हिला कर जगाता था.. :)


दीदी-पाहुनजी तस्वीरों में(हमारी भाषा मैथिली में जीजाजी को पाहुनजी कहते हैं)
शीर्षक में जो प्रश्न है वो कोई प्रश्न नहीं है, वो तो अपने आप में एक उत्तर है.. जिसे हम सभी जानते हैं.. आगे कुछ कहने कि जरूरत नहीं है.. बस कल रात बचपन के कुछ यादगार लम्हों को दीदी के साथ फिर जिया हूं..

14 comments:

  1. बहुत अच्‍छा लगा आप दोनो के प्‍यार को देखकर ....भगवान करे , यह प्‍यार जीवनभर ऐसे ही बना रहे।

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  2. "हमारे बीच बातचीत बंद हो तो भी सुबह उठकर दीदी को आवाज ना लगा कर दीदी के पलंग को हिला कर जगाता था."..

    कोई बहन नहीं है मेरी इसलिये शायद कभी करीब से नहीं जान पाया फिर भी.. महसूस कर सकता हूँ वो पल....

    प्रसान्त आप पुराने दिनों को इतनी सजीवता से लिखते हो.. बार बार पढ़ने को दिल करता है..

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  3. हम भाई बहन ऐसे ही होते हैं , मेरे भी छोटे भाई का फोन आता है और घंटो बात बोती है नई पुरानी...

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  4. ये छोटी २ यादें कितना सुकून देती हैं मन को ! बहुत अच्छा लगा आपका यह संस्मरण !

    रामराम !

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  5. बहुत सुंदर बात लिखी आप ने धन्यवाद

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  6. माँ बाप जब भी किसी बात को ले कर पुत्र और पुत्री में भेद करते हैं तो बच्चों को हमेशा नागवार गुजरता है। लेकिन समाज में फर्क की जो वर्तमान सीमा है वह माता पिता को अपने बच्चों के भले के लिए यह फर्क करने को बाध्य करती है। हालांकि यह सीमा स्थाई नहीं। समाप्ति की ओर आगे बढ़ रही है।
    विषय को भावनात्मक रूप से इतने अच्छे से प्रस्तुत करने के लिए बधाई।

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  9. बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट! आप और आपकी दीदी भाग्यवान हैं। ऐसे ही मधुर सम्बन्ध बने रहें।
    घुघूती बासूती

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  10. बहुत अच्छी बातेँ लिखीँ हैँ और दीदी का चित्र भी बढिया है पाहुन जी ये नाम जीजाजी के लिये प्रयुक्त होता पहली दफे जाना -
    २००९ के लिये आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएँ
    - लावण्या

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  11. आज कोई टिप्पणी नही ..वैसे दीदी बहुत सुंदर है.

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  12. जुग जुग जियो भाई बहन !

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  13. अच्छी पोस्ट। पाहुनजी ने ज्ञान बढ़ाया :)
    शुक्रिया मित्र ....

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  14. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.. :)

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