Tuesday, July 01, 2008

एक डायनामिक पर्सनैलिटी, Mr.G.Vishvanath(Part - 1)

शनिवार की शाम मैंने विश्वनाथ सर को फोन लगाया.. उधर से उनकी आवाज आई, "हेलो!".. आवाज से मुझे लगा कि ये आवाज किसी 25-30 से ज्यादा उम्र वाले व्यक्ति कि नहीं हो सकती है सो मुझे लगा कि हो ना हो मैंने रौंग नम्बर लगा दिया है.. मैंने इस बात कि पुष्टी के लिये कि मैंने सही व्यक्ति को ही फोन लगाया है पूछा, "Is this Mr. G.Vishvanath?" उधर से आवाज आयी, "Yes!" फिर मैंने अपना परिचय दिया.. पहले प्रशान्त नाम से वो नहीं पहचान पाये मगर जब मैंने ब्लौग का नाम लिया तो उन्होंने कहा "पी.डी.?" तब मुझे याद आया कि मैं ब्लौग जगत में पी.डी. के नाम से ही जाना जाता हूं :).. फिर हमने अगले दिन मिलने का समय और जगह तय कर लिया.. 11 बजे दिन में फोरम के पास.. पहचान उनकी रेवा कार..

हमने(मैं, चंदन और शिवेन्द्र) शनिवार को अपने एक मित्र से उसकी स्कूटी ले ली थी जो Oracle में काम करती है.. रविवार को शिवेन्द्र और चंदन को शिरीष से मिलने जाना था और मुझे विश्वनाथ सर से.. सो हमने तय किया कि हम तीनों साथ निकलेंगे.. वो दोनों चंदन कि बाईक से उधर कि ओर निकल गये और मैं फोरम के लिये निकल लिया.. H.S.R.Layout वाले सिग्नल के पास जाकर ना जाने क्या हुआ मगर उसकी स्कूटी पूरा एक्सलेरेटर नहीं ले पा रही थी.. और इसी कारण मुझे वहां पहूंचने में थोड़ी देर हो गई..

फोरम के पास पहूंचने पर मैंने पाया कि वो मेरा इंतजार कर रहे हैं.. उनकी रेवा कार के कारण मुझे उन्हें पहचानने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई.. वैसे शायद वो ऐसे भी मिलते तो भी उन्हें पहचानने में मुझे ज्याद दिक्कत नहीं होती क्योंकि मैंने उनकी तस्वीर कई बार देख रखी थी.. जैसे ही मैं उनके पास पहूंचा उन्होंने बहुत ही गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और कार में बैठने के लिये कहा..

सबसे पहले उनकी रेवा कार के बारे में --
मुझे इससे पहले कई कारों में बैठने का मौका मिला है.. कुछ पिताजी की बदौलत कुछ दोस्तों के कारण तो कुछ अपनी बदौलत मैंने मारूती 800 से लेकर बी.एम.डबल्यू. तक में बैठ चुका हूं.. मगर रेवा कार में बैठने का एक अलग ही उत्साह था मन में.. छोटी सी और बहुत प्यारी सी.. जिसे कोई भी देखे तो एक नजर में ही प्यार हो जाये.. विश्वनाथ सर ने मुझे उसकी एक-एक फंक्सनैलिटी बहुत बारीकी से बताये.. कैसे चलता है, मीटर में कितने तक बैटरी की सुई रहने पर कितनी दूरी तक चल सकती है, कितने समय में ये पूरा चार्ज होता है, कितनी आसानी से इसे ड्राईव किया जा सकता है वगैरह-वगैरह.. अगर कोई मुझसे पूछे तो मेरा कहना होगा कि किसी शहर में चलाने के लिये एक सम्पूर्ण कार और इको फ्रेंडली भी..


(बाकी अगली किस्त में...)
मैं बैंगलोर जाते समय अपना कैमरा ले जाना भूल गया और मेरे मोबाईल से अच्छी तस्वीर नहीं आती है सो मैंने कोई तस्वीर नहीं ली.. इसलिये मेरे पास कोई तस्वीर नहीं है.. :(

15 comments:

  1. agli bar tasveer jaroor le...kal yahan ek mall me rat ko shayad show kke liye rakhi thi.....

    ReplyDelete
  2. प्रशांत,

    रविवार को तुमसे तीन घंटे मिलने पर मुझे भी बहुत खुशी हुई थी।
    बहुत जल्दी समय बीत गया और पता ही नहीं चला।
    हिन्दी ब्लॉग जगत में यह मेरा किसीसे भी पहला सीधा संपर्क था।

    मेरी रेवा कार, या कार्यालय या घर के बारे में चाहे जितनी प्रशंसा करना चाहते हो, वह करो लेकिन मेरी प्रशंसा मत करना भाई। ज्ञानदत्तजी ने और अनिताजी के लेखों के कारण वैसे भी मैं एक minor celebrity बना गया हूँ और सारा श्रेय या तो मेरे बेटे नकुल को या मेरी रेवा कार को ही जाना चाहिए। अब मुझे डर है कि तुम भी मेरे बारे में कुछ ज्यादा लिखकर मुझे यहाँ का latest tourist attraction न बना दोगे! अपने को बस एक सीधा साधा इनसान मानता हूँ और मैं कोई "dynamic personality" तो बिल्कुल नहीं हूँ।

    तुम्हारी अगली किस्त का इन्तजार रहेगा।
    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  3. Reva ke baare me suna jaroor hai lekin kabhi dekha nahin, ho sake to vistaar se batana.

    ReplyDelete
  4. wah bhaiyya!! very good!!aage likiye!!:)

    ReplyDelete
  5. ब्लोग दुनिया के साथियोँ से मिलकर अवश्य प्रसन्नता होगी -
    लिख्ते रहीये आगे का विवरण भी

    ReplyDelete
  6. पढ़ना अच्‍छा लग रहा है। अगली किस्‍त का इंतजार रहेगा।

    ReplyDelete
  7. सही है भाई... विश्वनाथ जी के बारे में जानकारी कई लोग दे रहे हैं... आप तो मिल के ही आ गए हैं... और सुनाइए अपनी मुलाकात के बारे में... आज बहुत दिनों के बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर... पिछले कई पोस्ट पढ़े. अब रीडर में जोड़ ले रहा हूँ तो दिक्कत नहीं होगी :-)

    ReplyDelete
  8. अच्छा लगा आप लोगों की भेंट का विवरण. अगली किश्त का इन्तजार.

    ReplyDelete
  9. भुलक्कड़ कंजूस!
    एक तो कैमरा भूल गए। मोबाइल से तस्वीर नहीं ली। खराब ही सही, आती तो? और बात को रुक रुक कर बताते हो। ये कोई बात हुई।

    ReplyDelete
  10. टिप्पणी पर टिप्पणी-
    और हाँ, विश्वनाथ जी को मेहमानों का भय तो नहीं सता रहा है?

    ReplyDelete
  11. Prashantbhai

    Waiting for the next part.

    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  12. विश्वनाथ जी के साथ साथ उनकी रेवा कार के विषय में भी बतायें ।

    ReplyDelete
  13. ब्लॉगर मित्रो के बारे में जानना एक सुखद अनुभूति देता है... आपके प्रयास के लिए धन्यवाद ..अगली किश्त के इंतेज़ार में है,,

    ReplyDelete
  14. सबसे पहले आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद..

    @ विश्वनाथ सर - सर, मैंने जो देखा और जो आपमे पाया बस वही लिखूंगा.. अब अगर इसमें गलती से आपकी तारीफ हो जाये तो इसमें मेरी गलती नहीं होगी.. :)

    @ दिनेश सर - मैं भुलक्कड़ हूं ये तो सभी को पता चल ही चुका है मगर मैं कंजूस हूं ये वाली गुप्त बात आपको कैसे पता चल गया?? कुछ मुझे भी बताईये.. :)

    ReplyDelete
  15. सम्राट अशोक के बाद मुझे आप ही एक प्रियदर्शी मिले हो. वैसे हो भी. विश्वनाथ जी से मुलाकात की खबर अच्छी लगी. मैं उनसे मिलने के लिए लालायित हूँ. जहाँ कहीं भी टीप छोड़ते हैं, नाम काले रंग में रहता है. नीले में कभी मिला तो उस से कोई बात भी नहीं बनी. आभार.

    ReplyDelete