Thursday, July 24, 2008

यात्रा वृतांत, विकास की कलम से (पार्ट - 4)

पहला दिनः

किसी तरह सुबह में उठना पड़ा.. बेड का अट्रैक्शन पॉवर सुबह में इतना ज्यादा बढ जाता है उसी दिन पता चला.. :) सारा सामन लेके के हमलोग CMBT पहूंच ही गये, वहां पर कुछ लोग पहले से इंतजार कर रहे थे.. हाय-हेलो हुआ और कुछ ही देर के बाद सारे लोग पहूंच गये..

पीटर इस टीम को लीड कर रहा था.. वो बेल्जियम से है और पिछले 10 साल से चेन्नई में रह रहा है.. मस्त बंदा है.. वाणी के अलावा ट्रेक में सिर्फ एक लड़की थी.. दिव्या.. जो कि पीटर की बेटी थी (ये बात हमलोगों को काफी बाद में पता चला).. रित्विक नाम का एक बंदा अपना कार लाया था.. वो अकेले ही था इसलिये हम चारों मजे से उसी कार में बैठ गये..

तो काफ़िला चल पड़ा.. 1 स्कोर्पियो, 1 स्कोड(जिसमें हम लोग थे), 1 सैंट्रो और 8 बाईक्स.. एक जगह रुक कर नास्ता पानी हुआ और करीब 9 बजे हम लोग अपने सो कौल्ड बेस कैंप पर पहूंचे.. रास्ते में बहुत ही पेड़ पौधा था और अचानक ठंढी हवा चलने लगी.. हम समझे वाह यहां का मौसम अच्छा है.. बाद में रित्विक भाई बोलें कि कार में आC चल रहा है.. ऐसा मामू पहले कभी नहीं बने थे.. :)

"कार बेस कैम्प पहूंचा.. सामने ही पहाड़ था.. मस्त हमलोग चढ गये और रात में वहीं पर टेंट लगा कर सो गये.. सुबह उठे और रैपलिंग या फ्री हैंड उतर गये और फिर कार में बैठ कर घर आ गये.."

काश ऐसा होता.. वैसे हम ऐसा ही सोचे थे लेकिन कौन जानता था कि क्या क्या होने वाला है.. अब ख्वाब की दुनिया से बाहर आते हं.. बेस कैंप में सब खाना पीना ले कर, सामान वामान बांध कर निकल पड़े.. मस्त चांद(चेन्नई में सूरज को हमलोग चांद ही कहते हैं) खिला हुआ था.. अफ़सोस हुआ कि सन ग्लस और कैप क्यों नही लिये.. लेकिन जल्द ही दूसरा अफ़सोस होने वाला था की काश रेन कोट ले लेते.. :)

शुरू में पैदल चलने में बहुत मजा आ रहा था.. लेकिन जब आगे वाला सब रुकने का नाम नही ले रहा था तो धीरे धीरे मजा जाने लगा.. बहुत बार रास्ता भी भटके.. बीच बीच में फोटो शोटो भी खींचा जा रहा था.. लोग तेजी से भागे जा रहे थे क्योंकि रात होने से पहले उपर पहूंचना था(उपर बोले तो क्लिफ टॉप, कोई दूसरा उपर तो नहीं समझ रहा है :)).. ग्लुकोज का भयानक इंतजाम था और उसी के सहारे हमलोग चलते जा रहे थे.. दोपहर के खाने से पहले हमलोग एक पूल के पास पहूंचे.. मस्त चारो तरफ पत्थर था और बीच में पानी.. पानी भी मस्त झरना से आ रहा था इसलिये साफ था.. शुरू में सोचें की पानी में नहीं जायेंगे.. शिव भी मेरे साथ था.. लेकिन वाणी बोली चले जाओ सारा थकान उतर जायेगा.. आखिर एक ट्रेक का अनुभव उसके साथ जो था.. बाद में पीटर सभी को खिंचता ही.. सो हमलोग भी उतर गयें और एक बार उतरे तो बाहर आने का नाम नहीं..

(क्रमशः...)

7 comments:

  1. यात्रा वृतांत पढ़कर अच्छा लगा
    मेरे ब्लॉग पर भी आये

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  2. ओह तो मामू बन ही गये आप.. खैर आपने बढ़िया एंजाय किया.. पढ़वाते रहिए

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  3. अरे कुश जी मैं नहीं.. ये मेरे मित्र विकास की कलम से है.. :)

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  4. अच्छा लिखा है विकास जी ने। ट्रेवलॉग सदैव अच्छे लगते हैं और साथ में सटीक चित्र हों तो मजा ही मजा!

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  5. ट्रेकिंग की पुरानी बातें याद आ रही हैं। जब हम चौदह के थे, और माउंट आबू था।

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  6. यात्रा वृतांत पढ़कर अच्छा लगा ......सटीक चित्र!!

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  7. rochal vrataant hai..jari rakhiye.

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