सितम्बर सन् 2006 का दिन था.. मैं अपने मिड सेम में ही क्लास छोड़कर घर भाग आया था.. कैंपस सेलेक्शन बीते हुये बस कुछ महीने हुये थे और इस बीच मैं अपने जीवन की एक बहुत बरी घटना से निकल कर आ रहा था.. मन कह रहा था कुछ देर और रुक जाऊं.. मगर समय इसकी इजाजत नहीं दे रहा था..
एक-एक कर के मैंने सारे सामानों को उसके स्थान पर रख कर अपना बैग बंद कर दिया.. मम्मी ढेर सारा खाने का सामान दे रही थी और मैं बिना कोई नखरा किये बस उसे रखता जा रहा था, जैसा की मैं हमेशा नखरा करता हूं.. सामान ठीक करके मैं सोफे पर बैठ गया.. 5 मिनट और रुका जा सकता था.. चुपचाप बैठ कर पापा-मम्मी को देख रहा था.. फिर उठा और बैग को कंधे पर डाल कर मम्मी का पैर छूकर आशीर्वाद लिया.. तभी पापा बोले कि भगवान को भी जाकर प्रणाम कर लो.. मैं थोड़ी देर के लिये ठिठका, मगर भगवान वाले कमरे में नहीं गया.. पहले जब कभी ऐसे हालात आते थे तब मैं चुपचाप कभी मन से तो कभी अनमने ढंग से जाकर हाथ जोड़कर वापस चला आता था.. इससे पापा-मम्मी को कम से कम संतुष्टी तो हो जाती थी.. फिर से पापाजी ने अपनी बात बहुत प्यार से कही.. मैं भगवान वाले कमरे में जाने के बजाये मैं पापाजी कि ओर बढ चला और उनके चरण छूकर कहा कि मैंने तो अपने भगवान को प्रणाम कर लिया.. आप अपने भगवान को प्रणाम कर लीजिये..
वो जान रहे थे कि अब ये किसी तरह से भगवान के सामने नहीं जायेगा.. उन्होंने मुझे बहुत ही भावपूर्ण और प्यार से गले लगा लिया..
सच कहूं तो मुझे इससे ज्यादा आनंद कभी नहीं आता है जब पापाजी मुझे गले लगाते हैं.. ढेर सारे रस एक साथ मेरे ऊपर बरस परता है मानो.. ढेर सारा प्यार.. ढेर सारा आशीर्वाद.. एक संतुष्टी, कि मैं हूं ना, तुम किसी बात की चिंता क्यों करते हो..
आजकल ना जाने क्यों पापाजी कि बहुत याद आ रही है.. ढेर सारी पुरानी बात याद आ रही है जो समय के गर्द में कहीं छुप सी गई थी.. अभी बहुत भाव-विह्वल हो रहा हूं.. बाकी बात कल करता हूं..
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ReplyDeleteअकसर दूरियां नास्टेलजिक कर देती हैं, पर जिन्दगी की रवानी को जो समझ जाए वो इंसा नहीं , जब अच्छा वक्त गुजर गया तो ये लम्हे भी गुजर जाएंगे।
ReplyDeleteऐसा लगता है ढेरो ब्लोग्गर्स भावुक है.....फोन कर लो पापा को.....आज रात....
ReplyDeleteअब हम क्या कहे, बस इतना ही कहुगां हम सब मजबुर हे,मे फोन पर तो अक्सर बहुत बाते करता हु लेकिन जब मां के पास आप होता हु तो कोई बात नही होती, बस पास बेठा रहता हु जिस से दोनो को तसल्ली रहती हे, मन मजबुत करो, कही मेरी तरह से हजारो मील दुर आना पडा तो...?
ReplyDeleteएक ही इलाज है।
ReplyDeleteTime tested और विश्वसनीय इलाज।
शादी।
हाँ, शादी।
झट से कर लो।
लड़की तो मिल गयी होगी।
आजकल ब्लॉग पर तुम्हारे भावुक प्रविष्टियों से हमें यही संकेत मिल रहे हैं।
क्या हाल ही में बेंगळूरु में उसी से मिलने आये थे ?
केवल तीन घंटे मेरे साथ बिता सके थे।
ऐसी क्या जलदी थी जाने के लिए?
क्या नाम है उसका? जरा हम भी जाने।
शुभकामनाएं
भाई, घर की याद सभी को सताती है।
ReplyDeleteDekha ab aap bhi nostalgic ho gaye!!Mujhe bol rahe the bhaiyya!!
ReplyDeleteफोन पर बात करो पापा से-मन को अच्छा लगेगा.
ReplyDeleteआपकी दुनिया में एक सूना सूनापन है। कारण बहुत दिनों से आप ही यहाँ नहीं पधारें।
ReplyDeleteअरे, हुजूर कभी-कभी तो आ जाया करें, वर्ना कहीं ऐसा न हो कि यहाँ चमगादड अपना डेरा जमा लें।
सचमुच आंसू आगये पढ़ कर, बहुत ही जानलेवा होती है परेंट्स से जुदाई , इसका अहसास बस वाही कर सकता है जो इस से गुज़रा हो, और सब से बड़ी बात ये की senstive होना सब से बड़ी मुसीबत होती है...मैं क्या कहूँ...ख़ुद ही दुखी फील कर रही हूँ..
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