उस दिन जब तुम्हें देखा तो मानो दिल कि धड़कन थम सी गई थी.. तुम्हारी नजरों को भी मैंने देखा था.. पल भर को मेरे चेहरे पर टिकी थी.. मानो इस बात का सबूत दे रही हो कि मैं कोई अंजान नहीं हूं.. दिल को तसल्ली हुई, तुम अभी भी मुझे देख कर पहचान रही हो.. अभिनय करने में तुम अभी कच्ची हो.. नहीं तो तुम मुझे ये एहसास नहीं होने देती.. जिंदगी भी किसी नदी कि तरह होती है, हर परिस्तिथि में अपना रास्ता तलाश कर लेती है.. बहना कभी बंद नहीं करती है.. मगर रास्ता बदलने पर जैसे सूखे हुये पानी के श्रोत अपना निशान छोड़ जाती है वैसे ही जिंदगी भी कहीं ना कहीं अपना निशान छोड़ जाती है.. मानो ये याद दिलाने के लिये कि कहीं कुछ सूना सा है.. कुछ खालीपन.. कुछ यादें.. तुमने भले ही अपनी नजरें मुझसे फेर ली थी, मगर मैं तुम्हें एक-टक देखता रहा.. फिर बेतरतीबी में सिगरेट जलाया.. मेरी मित्र ने मुझे कहा कि मत जलाओ.. शायद धुवें से उसे दिक्कत थी.. मैं सॉरी कहकर वहां से जाने लगा, उसने जाने से मना कर दिया.. सिगरेट बुझाने को कहा.. मैंने एक लंबा कश लिया, उसने फिर मना किया.. इतने अधिकार से जिसे मैं नजर अंदाज नहीं कर पाया.. सिगरेट फेंक कर अपना सारा आवेश अपने जूते से उस पर निकाल दिया.. "यहीं थोड़ी दूर पर एक मंदिर है, चलोगे वहां?" मन नहीं था, सो एक सपाट सा उत्तर.. "अरे प्रसाद भी बहुत अच्छा मिलता है वहां.." एक खिलखिलाती हुई सी हंसी, जो शत-प्रतिशत मुझे बहलाने का प्रयास था.. मैं फिर मना नहीं कर पाया.. सोचा मेरा मन बहलाने के लिये ही तो कर रही है ये सब.. मंदिर से बाहर निकलकर सभी प्रसाद खाने लगे.. शायद सच में अच्छा था.. उनके चेहरे से झलक रहा था.. दो चने के दाने मैंने भी उठाया और मुह में डाल लिया.. अनमने ढंग से उसे निगल भी लिया.. फिर वापस कर दिया.. ना जाने क्यों कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.. कुछ यादें फिर से दिल पर दस्तक दे रही थी.. ऐसी यादें जिनका मैं सामना नहीं कर सकता.. बस भागना चाहता हूं.. मगर भाग भी नहीं पाता.. क्या करूं? कहां जाऊं इन यादों से?
एक शाम कुछ यूं भी
उस दिन जब तुम्हें देखा तो मानो दिल कि धड़कन थम सी गई थी.. तुम्हारी नजरों को भी मैंने देखा था.. पल भर को मेरे चेहरे पर टिकी थी.. मानो इस बात का सबूत दे रही हो कि मैं कोई अंजान नहीं हूं.. दिल को तसल्ली हुई, तुम अभी भी मुझे देख कर पहचान रही हो.. अभिनय करने में तुम अभी कच्ची हो.. नहीं तो तुम मुझे ये एहसास नहीं होने देती.. जिंदगी भी किसी नदी कि तरह होती है, हर परिस्तिथि में अपना रास्ता तलाश कर लेती है.. बहना कभी बंद नहीं करती है.. मगर रास्ता बदलने पर जैसे सूखे हुये पानी के श्रोत अपना निशान छोड़ जाती है वैसे ही जिंदगी भी कहीं ना कहीं अपना निशान छोड़ जाती है.. मानो ये याद दिलाने के लिये कि कहीं कुछ सूना सा है.. कुछ खालीपन.. कुछ यादें.. तुमने भले ही अपनी नजरें मुझसे फेर ली थी, मगर मैं तुम्हें एक-टक देखता रहा.. फिर बेतरतीबी में सिगरेट जलाया.. मेरी मित्र ने मुझे कहा कि मत जलाओ.. शायद धुवें से उसे दिक्कत थी.. मैं सॉरी कहकर वहां से जाने लगा, उसने जाने से मना कर दिया.. सिगरेट बुझाने को कहा.. मैंने एक लंबा कश लिया, उसने फिर मना किया.. इतने अधिकार से जिसे मैं नजर अंदाज नहीं कर पाया.. सिगरेट फेंक कर अपना सारा आवेश अपने जूते से उस पर निकाल दिया.. "यहीं थोड़ी दूर पर एक मंदिर है, चलोगे वहां?" मन नहीं था, सो एक सपाट सा उत्तर.. "अरे प्रसाद भी बहुत अच्छा मिलता है वहां.." एक खिलखिलाती हुई सी हंसी, जो शत-प्रतिशत मुझे बहलाने का प्रयास था.. मैं फिर मना नहीं कर पाया.. सोचा मेरा मन बहलाने के लिये ही तो कर रही है ये सब.. मंदिर से बाहर निकलकर सभी प्रसाद खाने लगे.. शायद सच में अच्छा था.. उनके चेहरे से झलक रहा था.. दो चने के दाने मैंने भी उठाया और मुह में डाल लिया.. अनमने ढंग से उसे निगल भी लिया.. फिर वापस कर दिया.. ना जाने क्यों कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.. कुछ यादें फिर से दिल पर दस्तक दे रही थी.. ऐसी यादें जिनका मैं सामना नहीं कर सकता.. बस भागना चाहता हूं.. मगर भाग भी नहीं पाता.. क्या करूं? कहां जाऊं इन यादों से?
यादों से भागना,
ReplyDeleteमुश्किल तो है ही ...
कुछ पूरा कर देते प्रभुदेव......या बाकि अगले भाग में मिलेगा....इस शाम का टुकडा ......
ReplyDeleteतुरंत डाक्टर अनुराग या डा. अमर को दिखाओ , वो ब्लोगर्स मित्र कन्सेशन भी देगे.ये बहुत बुरी बिमारी है धडकनो का थम जाना.:)
ReplyDeleteमेरी तरफ से ये पूरा ही है..
ReplyDelete:)
प्रशान्त भाई अरुण जी की सलाह मान लो,
ReplyDeleteअच्छा लिखा है। बहुत सेण्टी!
ReplyDeleteअगली किस्त कब?
ReplyDeleteक्या हुआ है?? सब ठीक ठाक तो है?
ReplyDeleteसुंदर लिखा है, बहुत अच्छी कहानी...
ReplyDeletewell. it was an awesome story, but if it was an incident, then you forgot to mentioned the name of the girl..
ReplyDeleteKaun hain hamein bhi toh maalum pade..
How is life going ??
kuchh share karne ka dil ho to aap mujhe bata de sakte hai....vaise ye padhke to main confused hi ho gayaa...kab ki aur kahaan ki ghatnaa hai? :O
ReplyDeletevaise mandir related incident mein aapka behaviour kaafi hadd tak vaisa hi thaa jaisa aksar mera hota hai... :)