शीर्षक के अनुरूप ही हमारे हालात भी थे वहां.. शनिवार कि रात आसमान में चांदनी घुली हुई थी, कभी बादल चांद को अपने आगोश में ले लेता था और कभी हल्की बूंदा-बांदी भी शुरू हो जाती थी.. मानो प्रकृति अपनी पूरी छटा दिखाने के रंग में हो.. दिन भर की थकान की वजह से बार बार पानी पीने की इच्छा भी होती थी कुल मिला कर एक अलग ही अनुभव..
पीछे पलट कर देखता हूं तो एक दिन पहले ऑफिस से थक हार कर लौटने के बाद भागम भाग में वाणी के साथ सारा सामान खरीदना.. फिर देर से सोना और सुबह जल्दी ऊठना.. सोने के लिये 3 घंटे से ज्यादा का समय ना मिलना.. फिर अपने ट्रेकिंग दल से मिलने के नियत समय पर पहूंचना.. एक लंबी दूरी गाड़ियों से तय करना और फिर अपने हिस्से का सामान उठा कर निकल परना एक सफर पर.. ऐसा सफ़र जिसके बारे में हम किसी को पता नहीं.. बस एक जोश और जूनून कुछ नया देखने की, कुछ नया करने की.. एक जगह झरना में जम कर स्नान करना और कुछ तैरने की कोशिश जैसा कुछ करना.. बाला और वाणी ने कुछ सिखाया भी, पता नहीं कितना सीखे.. पहाड़ पर चढते-चढते दम फूलने जैसी स्थिती, मगर चलते जाना ही जैसे जीवन का नियम है ठीक वैसे ही थकने पर भी कहीं ना रूकना.. बस चलते जाना..
पहाड़ पर चढते समय एक सेर भी मन में आ रहा था जो कि अगले दिन सच में पूरा हो गया..
"खुदी को किया बुलंद इतना
और चढ गया पहाड़ पर जैसे तैसे..
अब खुदा बंदे से खुद पूछे,
बता बेटा अब उतरेगा कैसे.." :)
दिन में एक बार मूसलाधार बारीश भी हुई, और उसमें भींगा भी.. वर्षा में भींगना मेरा बचपन से ही सगल रहा है.. पटना में जब कालेज में होता था तब वर्षा होने पर निकल परता था घर के लिये और घर पहूंच कर कहता था कि रास्ते में बारीश हो गई.. भींगने का तो बस एक बहाना चाहिये होता था.. जब से ऑफिस जाने लगा हूं, बारीश से चिढ सी होने लगी थी.. कहीं कपड़े ना खराब हो जायें.. ऑफिस में भींगे हुये कैसे जाऊंगा.. वगैरह-वगैरह.. ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति से दूर होता जा रहा हूं.. एक बार फिर उसी प्रकृति के पास वापस लौट आया हूं.. खूब भींगा.. बिना किसी डर के कि आगे भींगे हुए कपड़ों के साथ आगे का सफ़र कैसे तय करूंगा..
रात में सबसे ऊपर पहूंच कर खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगा.. उस समय अपने गाईड पीटर से इस जगह की ऊंचाई पूछा तो उसने बताया 617 मीटर और हमने लगभग 15 किलोमीटर पैदल तय किया था..
अगले दिन का सफर कुछ ज्यादा ही मुश्किलों से भरा हुआ था.. दो दिन पहले की थकावट अब अपना असर दिखा रही थी.. सुबह जब वहां से चले तो बिलकुल अच्छे मूड के साथ.. कई जगह रूके और व्यू प्वाईन्ट देखे.. कई फोटो सेशन भी हुआ.. एक जगह छोटे से झरने के पास रूक कर खाना खाया गया और मेरे जैसे चंद लोग वहां डुबकी भी मारना पसंद किये.. वहां से हमारा कठीन डगर शुरू हुआ.. कहीं ऊपर की ओर चढाई तो कहीं ऐसा ढलवा जहां से संभल कर उतरने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. शाम होते होते पता चला कि हमारे गाईड के पास जो जी.पी.एस. मशीन था वो पानी में भींग कर खराब हो चुका था और हम रास्ता भटक चुके थे.. पानी की एक एक बूंद के लिये तरस रहे थे.. रात होती जा रही थी और जाना कहां है कुछ पता नहीं..
दूर कहीं पहाड़ पर बारीश होते हुये..
पीटर ने किसी तरह से रास्ता ढूंढा और फिर से हम सभी चल पड़े.. बस एक बूंद पानी कहीं से भी मिल जाये, उस समय मन में बस यही ख्याल आ रहे थे.. लगभग एक घंटे चलने के बाद मुझे गोबर दिखा.. मन ही मन बहुत खुशी हुई.. सोचा की अब हम सही जगह पर पहूंचने ही वाले हैं.. जंगल खत्म होने पर है.. तभी तो यहां गोबर दिख रहा है.. 10-15 मिनट और चलने के बाद पहाड़ी नदी मिली.. मैंने अपना बैग फेका और बोतल लेकर जल्दी जल्दी पानी भरा.. पीने से पहले दो बोतल अपने सर पर डाल लिया.. फिर पानी पिया और चिप्स का पैकेट निकाल कर बस भुक्कड़ों की तरह खाया.. लगभग आधे घंटे वहां बैठ कर फिर निकल परे.. अबकी बार ज्यादा नहीं चलना परा.. बस आधे घंटे में ही उस जगह पहूंच गये जहां से हम चले थे.. और वहां से घर पहूंचते पहूंचते रात के 1 बज चुके थे.. घर आते समय देखा कि जगह जगह पुलिस पहरे दे रही है.. साईको किलर की तलाश में..
पीछे पलट कर देखता हूं तो एक दिन पहले ऑफिस से थक हार कर लौटने के बाद भागम भाग में वाणी के साथ सारा सामान खरीदना.. फिर देर से सोना और सुबह जल्दी ऊठना.. सोने के लिये 3 घंटे से ज्यादा का समय ना मिलना.. फिर अपने ट्रेकिंग दल से मिलने के नियत समय पर पहूंचना.. एक लंबी दूरी गाड़ियों से तय करना और फिर अपने हिस्से का सामान उठा कर निकल परना एक सफर पर.. ऐसा सफ़र जिसके बारे में हम किसी को पता नहीं.. बस एक जोश और जूनून कुछ नया देखने की, कुछ नया करने की.. एक जगह झरना में जम कर स्नान करना और कुछ तैरने की कोशिश जैसा कुछ करना.. बाला और वाणी ने कुछ सिखाया भी, पता नहीं कितना सीखे.. पहाड़ पर चढते-चढते दम फूलने जैसी स्थिती, मगर चलते जाना ही जैसे जीवन का नियम है ठीक वैसे ही थकने पर भी कहीं ना रूकना.. बस चलते जाना..
पहाड़ पर चढते समय एक सेर भी मन में आ रहा था जो कि अगले दिन सच में पूरा हो गया..
"खुदी को किया बुलंद इतना
और चढ गया पहाड़ पर जैसे तैसे..
अब खुदा बंदे से खुद पूछे,
बता बेटा अब उतरेगा कैसे.." :)
दिन में एक बार मूसलाधार बारीश भी हुई, और उसमें भींगा भी.. वर्षा में भींगना मेरा बचपन से ही सगल रहा है.. पटना में जब कालेज में होता था तब वर्षा होने पर निकल परता था घर के लिये और घर पहूंच कर कहता था कि रास्ते में बारीश हो गई.. भींगने का तो बस एक बहाना चाहिये होता था.. जब से ऑफिस जाने लगा हूं, बारीश से चिढ सी होने लगी थी.. कहीं कपड़े ना खराब हो जायें.. ऑफिस में भींगे हुये कैसे जाऊंगा.. वगैरह-वगैरह.. ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति से दूर होता जा रहा हूं.. एक बार फिर उसी प्रकृति के पास वापस लौट आया हूं.. खूब भींगा.. बिना किसी डर के कि आगे भींगे हुए कपड़ों के साथ आगे का सफ़र कैसे तय करूंगा..
रात में सबसे ऊपर पहूंच कर खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगा.. उस समय अपने गाईड पीटर से इस जगह की ऊंचाई पूछा तो उसने बताया 617 मीटर और हमने लगभग 15 किलोमीटर पैदल तय किया था..
अगले दिन का सफर कुछ ज्यादा ही मुश्किलों से भरा हुआ था.. दो दिन पहले की थकावट अब अपना असर दिखा रही थी.. सुबह जब वहां से चले तो बिलकुल अच्छे मूड के साथ.. कई जगह रूके और व्यू प्वाईन्ट देखे.. कई फोटो सेशन भी हुआ.. एक जगह छोटे से झरने के पास रूक कर खाना खाया गया और मेरे जैसे चंद लोग वहां डुबकी भी मारना पसंद किये.. वहां से हमारा कठीन डगर शुरू हुआ.. कहीं ऊपर की ओर चढाई तो कहीं ऐसा ढलवा जहां से संभल कर उतरने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. शाम होते होते पता चला कि हमारे गाईड के पास जो जी.पी.एस. मशीन था वो पानी में भींग कर खराब हो चुका था और हम रास्ता भटक चुके थे.. पानी की एक एक बूंद के लिये तरस रहे थे.. रात होती जा रही थी और जाना कहां है कुछ पता नहीं..
दूर कहीं पहाड़ पर बारीश होते हुये..
पीटर ने किसी तरह से रास्ता ढूंढा और फिर से हम सभी चल पड़े.. बस एक बूंद पानी कहीं से भी मिल जाये, उस समय मन में बस यही ख्याल आ रहे थे.. लगभग एक घंटे चलने के बाद मुझे गोबर दिखा.. मन ही मन बहुत खुशी हुई.. सोचा की अब हम सही जगह पर पहूंचने ही वाले हैं.. जंगल खत्म होने पर है.. तभी तो यहां गोबर दिख रहा है.. 10-15 मिनट और चलने के बाद पहाड़ी नदी मिली.. मैंने अपना बैग फेका और बोतल लेकर जल्दी जल्दी पानी भरा.. पीने से पहले दो बोतल अपने सर पर डाल लिया.. फिर पानी पिया और चिप्स का पैकेट निकाल कर बस भुक्कड़ों की तरह खाया.. लगभग आधे घंटे वहां बैठ कर फिर निकल परे.. अबकी बार ज्यादा नहीं चलना परा.. बस आधे घंटे में ही उस जगह पहूंच गये जहां से हम चले थे.. और वहां से घर पहूंचते पहूंचते रात के 1 बज चुके थे.. घर आते समय देखा कि जगह जगह पुलिस पहरे दे रही है.. साईको किलर की तलाश में..