Tuesday, January 22, 2008

अनंत कुशवाहा और "कवि आहत"

एक डाल से तू है लटका,
दूजे पे मैं बैठ गया।
तू चमगादड़ मैं हूं उल्लू,
गायें कोई गीत नया।

घाट-घाट का पानी पीकर,
ऐसा हुआ खराब गला।
जियो हजारों साल कहा पर,
जियो शाम तक ही निकला।

खड़-खड़-खड़ खड़ग सिंह,
खड्डे में रपट गये।
बत्तीस में चार दांत,
आगे के घट गये।

ये कुछ कवितायें मैंने बचपन में बालहंस नामक बाल पत्रिका में पढी थी जो मुझे अभी भी याद है। उन दिनों बालहंस में मैं जो सबसे पहले ढूंढता था वो था कवि आहत नाम का चित्रकथा, ये कवितायें वहीं से ली गई है।

बचपन से लेकर ग्रैजुएसन के दिनों तक हर पंद्रहवें दिन सुबह उठते ही पापाजी या मम्मी(जो भी पहले सामने आ जायें) से पूछता था की इस बार का बालहंस कहां है? अनंत कुशवाहा जी के संपादकीय के जादूगरी से लैस हर अंक अपने में कुछ नया लेकर आता था। और दाम भी हम बच्चों सा ही। बस दो रूपये।

उसके चित्र कथाओं के पात्र हम सभी भाई-बहनों में रच बस गये थे। "हवलदार ठोलाराम, कवि आहत, शैलबाला, कूं-कूं और मुनिम जी" तो लगभग हर अंक में दिखते थे। धीरे-धीरे एक एक करके कुछ पूराने पात्र कम ही दिखने लगे। जैसे हवलदार ठोलाराम, शैलबाला इत्यादी। मगर कवि आहत हर अंक में दिख जाते थे।

हमारे घर में कवि आहत को कुछ ज्यादा ही पसंद किया जाता था। यहां तक की पापा-मम्मी भी उसकी कविताओं को बड़े चाव से पढते थे। कई बार उन कविताओं में सामाजिक व्यवस्था पर ऐसे व्यंग हुआ करते थे जो होते तो थे बड़ों के लिये, मगर बच्चों को भी समझ में आ जायें।

धीरे-धीरे उसका दाम बढने लगा और दो से चार फिर पांच फिर छः। मगर उसे पढने का चाव कभी खत्म नहीं हुआ। फिर धीरे-धीरे उसकी गुणवत्ता में गिरावट आने लगी। और कुछ महीनों बाद हमने उसे लेना बंद कर दिया। फिर मैं भी घर से बाहर अपने आगे की पढाई के लिये निकल गया। मगर आज भी मेरे पास बालहंस के वे सारे अंक आज भी मौजूद हैं। सभी को पता है कि मुझे उससे कितना लगाव है सो घर में कोई भी उसे फेंकने की बात भी नहीं करता है।

अब भी कभी घर जाता हूं और कहीं बालहंस दिख जाता है तो जरूर खरीद लेता हूं। पर ना जाने क्यों वो वाली बात कहीं नजर नहीं आती है। मैंने सालों से बालहंस की कोई प्रति नहीं पढी है। मेरे एक परिचित ने मुझे कुछ साल पहले बताया था की अनंत कुशवाहा जी का निधन हो गया है। मुझे नहीं पता कि ये खबर कितनी सच्ची है, क्योंकि जब आप किसी को बहुत पसंद करने लगते हैं तो ऐसी खबरें अक्सर झूठी ही लगती है। अब आप लोगों में से ही कोई उनके बारे में मुझे सही-सही जानकारी दें। क्या वो आज भी अपने काम को बखूबी निभा रहें हैं या फिर सच में उनका निधन हो चुका है?

14 comments:

  1. मैं भी बहुत बाद तक पराग पढ़ता था जब मित्र लोग वयस्क साहित्य तक की स्नातकोत्तर डिग्री ले चुके थे!
    वह डिग्री हमें मिल नहीं पायी!

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  2. ज्ञान जी..
    हम तो अभी तक नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव में उलझे हुये हैं.. चेन्नई में नहीं मिलता है तो नेट से शापिंग करके पढते हैं.. कुछ मित्र परेशान हो चुके हैं तो कुछ मेरे साथ पढना चालू कर दिये हैं..
    देखिये कब तक चलता है ये सब.. :)

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  3. क्या बात है!
    चंपक, बालहंस, मधु मुस्कान, पराग, चंदामामा और उसके बाद ट्विंकल, डायमंड कॉमिक्स,राज कॉमिक्स और मनोज कॉमिक्स। क्या जबरदस्त मजा था इनमें। आज भी कहीं किसी बच्चे के पास कॉमिक्स या ये किताबें दिख बस जाएं अपन तो मांग के पढ़ने लग जाते हैं। ;)

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  4. बॉस
    अनंत कुशवाहा जी जयपुर में हैं
    ईश्‍वर उनको दीर्धायु प्रदान करे
    रिटायरमेंट के बाद भी उनकी चित्रकथा आज भी नियमित रूप से छप रही हैं। कल आपको ज्‍यादा जानकारी उपलब्‍ध कराऊंगा, लेकिन फिलहाल आप सुधार कर लें।

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  5. पीडी जी आपने मेरे ब्‍लॉग पर अंबानी खरीद सकते हैं पाकिस्‍तानी शेयर बाजार पर टिप्‍पणी की उसके लिए धन्‍यवाद लेकिन आपका ईमेल पता नहीं था इसलिए आपके ब्‍लॉग पर आकर आपको बता रहा हूं कि उस रिपोर्ट में भारतीयों ने तुलना पाकिस्‍तान से नहीं की है। बल्कि पाकिस्‍तान के एक पत्रकार ने पूरी तुलना हिंदुस्‍तान से की है और पाकिस्‍तानियों को बताया है कि हम भारत की तुलना में कहीं नहीं टिकते। आप उस रिपोर्ट का आखिरी पैरा देखें जहां लिखा है कि यह पाकिस्‍तान के अखबार में छपी एक रिपोर्ट है।

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  6. पी डी जी,
    हम सारे लोगों का बचपन ऎसी ही बाल पत्रिकाओं को पढ़ कर गुजरा हैं. मैं अपनी बात करूं तो पहली पत्रिका थी "नंदन". शायद नवम्बर का महीना था और नंदन उस समय प्राचीन कथा विशेषांक था. उसकी कहानियाँ हमेशा कहीं गहरे असर करती थी. फिर " बाल भारती" और उसका "कपीश". चंपक, सुमन सौरभ, बालहंस, पराग.
    पोस्ट के लिए धन्यवाद.

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  7. मैने जब पुस्तकों के प्रति होश सम्भला था तो मेरे हाथों में सर्वप्रथम नन्दन का परि-कथा विषेशांक आया था. कीमत शायद दो रुपये थी.उसकी एक कहानी "पांकाओ" मुझे अभी तक याद है. शनैः शनैः बालहंस, और फ़िर सुमन सौरभ, पता नही कब जीवन का हिस्सा बन गये.आज मैं जीवन के प्रगतिशील राह पर अग्रसर हूँ. पर जब भी मौका मिलता है, उन्हे पलट कर जरूर देखता हूँ. यह बिल्कुल जीवन के हसीन पलों को देखने जैसा होता है.आखिर हमने जीवन के हर रंग इन पुस्तकों मे जिये हैं. चाहे वो होली हो, दिवाली या फ़िर ईद.सच में जिया तो है हमने हर रिश्तों के अनुभवों को, इन पुस्तकों में.

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  8. bhai.. bachpan yaad dila diya aapne...

    kavi aahat aur hawaldar tholaram.. apne fav. hai

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  9. Kavi AAhat ki aur rahnayein mil saktin hain Kya?

    Thanks in advance.

    MY id:
    ambarish21611shivam@gmail.com

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  10. me bachapan se balhans,champak, parag, nandan, chacha chaudhary aadi kitaben padhati rahi hu. avasar milane [par aaj bhi padhati hu.me teacher hu ahmedabad me.mene bacho ke liye balhans complsary ki hui ha.meri school me kariban 1000books aati ha.

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  11. मुझे बालहंस के पुराने अंक बहुत याद आते हैं काश pdf मैं मिल जाए

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  12. Missing very much late anant ksuhwaha gi's chitrakatha tholaram or kunku
    i serch meny time on net but dont found pls any one help me
    thanks

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  13. हुजूर आपके पास बालहंस के पुराने editions है तो मेहरबानी करके scan करके blog पे डालिये साहब

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  14. हुजूर आपके पास बालहंस के पुराने editions है तो मेहरबानी करके scan करके blog पे डालिये साहब

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