Thursday, January 10, 2008

तारे जमीं पर और मेरा बचपन

मैंने कल ये फिल्म थोड़ी देर से ही सही मगर देख ली। मुझे काफी हद तक इसमें अपना बचपन दिख रहा था। बिलकुल वैसी ही विवशता, दोस्तों के बीच वैसा ही खुद को छोटा पाना। घर में वैसे ही बड़ा भाई क्लास टापरों में से एक और खेल-कूद से लेकर लगभग हर चीज में अव्वल आने वाले और एक इधर मैं किसी तरह घिसट कर प्रोमोटेड होकर पास करने वाला साधारण सा छात्र। इतनी भी हिम्मत नहीं कि खेल-कूद में भी हिस्सा ले सकूं। उस बच्चे की ही तरह हर वक्त घर में पड़े बेकार चीजों से कुछ ना कुछ बनाने कि कोशिशें करते रहना और अगर कोई बेकार चीज ना मिले तो अच्छी खासी चीजों को ही पहले बेकार बनाना और फिर से कोशिशे जारी रखना। :)

कुछ मायनों में यह सिनेमा मेरे जीवन से अलग भी था। जैसे मुझे अपने घर में उस बच्चे की तरह दुत्कार नहीं मिला, और सबसे ज्यादा मुझ पर मेरे पापाजी ही करते थे। मैं फिसड्डी तो था पर उस बच्चे कि तरह हर जगह नहीं। मेरी आंखों के आगे शब्द नाचते नहीं थे, हां आंग्रेजी का अक्षर विन्यास मुझे कभी याद नही हो पाते था। और सबसे बड़ी बात ये की मेरे जीवन में वैसा कोई अध्यापक नहीं आया जो मेरी काया कल्प ही बदल डाले। और तो और, मेरी चित्रकारी भी सुभानअल्ला के अलावा और कुछ नहीं था।

जहां तक मैं समझता हूं, हर व्यक्ति की एक इच्छा होती है कि वो जो कुछ भी कर रहा हो उसमें सबसे अच्छा करे। इससे कोई फर्क नहीं परता कि वो कोई वयस्क है या कोई छोटा सा बच्चा।

आज मैं चाहे कितना ही मुश्किल कंप्यूटर प्रोग्राम के लाजिक को क्यों ना समझ लूं पर जार्गनस(Jargons) और टेक्निकल टर्म मुझे ज्यादा याद नहीं रहते हैं। कुछ ऐसा ही था कि मुझे बचपन में अक्षर-विन्यास याद नहीं होते थे। मगर इसका मतलब ये नहीं कि मुझे कुछ भी याद करने में ही परेशानी होती है, अगर आप संख्या ओं की बात करेंगे तो मुझे लगभग अपने मोबाईल में सुरक्षित सारे नम्बर याद हैं जो लगभग 150 से ज्यादा हैं।

जब मैं ये फ़िल्म देखने जा रहा था तो मेरी मुहबोली बहन स्नेहा ने मुझसे बोला था कि तुम ये सिनेमा देख कर जरूर रो दोगे और जवाब में मैंने कहा था कि अभी तक तो कोई भी सिनेमा देख कर मैं नहीं रोया हूं क्योंकि मेरे मन में हमेशा यही होता है कि ये एक सिनेमा है ना कि आम जिंदगी। सो हम दोनों में ठन गई। और मैच ड्रा रहा। क्योंकि मेरी आंखें तो नम हुई थी मगर सिनेमा देख कर नहीं, उस गाने पर जो मां के उपर था। वो गाना सुन कर मुझे अपनी मां की बहुत याद आने लगी थी।

चलिये आप भी उस गाने को मेरे साथ सुने :

Maa - Taare Zameen...


मैं कभी बतलाता नहीं
पर अन्धेरे से डरता हूं मैं मां
यूं तो मैं, दिखलाता नहीं
तेरी परवाह करता हूं मैं मां
तुझे सब है पता, है ना मां
तुझे सब है पता,,मेरी मां

भीड़ में यूं ना छोड़ो मुझे
घर लौट के भी आ ना पाऊं मां
भेज ना इतना दूर मुझको तू
याद भी तुझको आ ना पाऊं मां
क्या इतना बुरा हूं मैं मां
क्या इतना बुरा मेरी मां

जब भी कभी पापा मुझे
जो जोर से झूला झुलाते हैं मां
मेरी नजर ढूंढे तुझे
सोचूं यहीं तू आ के थामेगी मां

उनसे मैं ये कहता नहीं
पर मैं सहम जाता हूं मां
चेहरे पे आने देता नहीं
दिल ही दिल में घबराता हूं मां
तुझे सब है पता है ना मां
तुझे सब है पता मेरी मां

मैं कभी बतलाता नहीं
पर अंधेरे से डरता हूं मैं मां
यूं तो मैं, दिखलता नहीं
तेरी परवाह करता हूं मैं मां
तुझे सब है पता, है ना मां
तुझे सब है पता,,मेरी मां


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ये सिनेमा मैं अपने दोस्तों के सथा रात 10 बजे वाले शो में देखने गया था। और वहां से लौटते-लौटते 1:30 से ज्यादा हो गये थे और उपर से सुबह उठ कर आफिस जाने की जल्दी भी थी। इसलिये मैं सो गया पर नींद पूरी नहीं हुई और पूरे दिन भर आफिस में अल्साया सा घूमता रहा। सिनेमा देखते समय मेरे साथ मेरी मित्र बैठी हुई थी जो ज्यादा कुछ बोलती नहीं है और उसे टंग करने में बहुत मजा भी आता है, सो मैं उसे पूरे फिल्म में चिढाता भी रहा। :)

6 comments:

  1. प्रियदर्शी जी, इस फिल्म की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है। ठीक है, आप को रोना नहीं आया, लेकिन रोना आ जाना क्या कमज़ोरी की ही निशानी है। भई,मुझे तो बहुत रोना आया। बहरहाल, आप के द्वारा ब्लाग पर लिखे लिरिक्स काम आ गये, वो मैंने डायरी में लिख लिये हैं, नहीं तो मुझे वह काम करना पड़ता ---वैसे बड़े दिनों से यह काम करने की सोच रहा था।
    शुभकामनाएं............चांद को छू लें।

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  2. इस पिक्चर से सबको अपने बचपन का कुछ ना कुछ तो याद आया ही है। आँखे नम होने की बात कर रहें है आप। अधिकांश सुबक-सुबक कर रो रहे थे। फिल्म की सफलता है ।

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  3. नहीं चोपड़ा जी, रोना कमजोरी की निशानी कतई नही है..
    आप मेरा परिचय में मेरे द्वारा लिखा हुआ हुआ वाक्य पढ लें तो आप समझ जायेंगे.. जिसमें मैंने लिखा है की : लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये...पर मैं रोता भी हूं...और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं...

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  4. दिल ही तो है न संगो खिश्त दर्द से भर ना आये क्यों!
    रोयेंगे हम हजार बार, कोई हमें सताये क्यों.

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  5. इस फिल्म के बारे मेँ प्रशंसात्मक और लोग भी कह चुके हैं। लगता है देखी जाये। आपने इसके बारे में बताया - धन्यवाद।

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  6. बचपन की यादें दिल के किसी कोने में हमेशा रहती है...किसी घटना को हवा के झोंके की तरह अनुभव करके बाहर आ जाती हैं..अब हम भी रोने की तैयारी में हैं ...मतलब कि हम भी यह फिल्म देखने जा रहे हैं.

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