Monday, January 07, 2008

ब्लू फ़िल्म और उससे आती आवाजें

जीवन में घटी कुछ घटनाऐं ऐसी होती है जिन्हें लोग चाहकर भी नहीं भुला पाते हैं। वैसे ही ये घटना मेरे कालेज के छात्रावास जीवनकाल की है।

उस समय मैंने वेल्लोर तकनीकी संस्थान(VIT, Vellore) के MCA पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था। नया-नया छात्रावास का दौर था और उस पर भी तुर्रा ये कि हमारे कालेज में रैगींग का कोई भय नहीं। सारी रात जमकर मस्ती होती थी और सुबह उठ कर जैसे-तैसे समय पर या थोड़ी देर से कक्षा में पहूंच जाया करते थे।

हमारा कालेज भारत के बहुत ही अनुशासित कालेजों में से एक है और अनुशासन की नाम पर कई तरह के उट-पटांग नियम भी हैं वहां जिसका कोई सिर-पैर मुझे अभी तक समझ में नहीं आया है। कड़ा अनुशासन होना और उस पर MCA की पढाई थोड़ी कठिन, ये दोनों ही मिलकर रैगींग के लिये कोई जगह नहीं छोड़ती थी। अनुशासन के नियमों में से एक नियम यह भी था कि हर दिन रात में 9 बजे के बाद होस्टल के सुपरटेंडेंट आकर अटेंडेन्स लिया करते थे। यह घटना कुछ उसी पर आधारित है।

उस समय मैं अपने कालेज के मेंस होस्टल के 'B' ब्लौक में था और वहां अनुशासन उतना कड़ा नहीं था। पर अटेंडेन्स हर दिन हुआ करता था। एक रोज की बात है। मेरे कुछ मित्र(नाम बता कर गालियां नहीं खानी है :)) अपने कमरे में बैठकर पोर्न मूवी देख रहे थे। उन्हें पता नहीं था कि दरवाजा अच्छे से बंद नहीं है और ये समय भी अटेंडेन्स का ही है। ठीक उसी समय हमारे सुपरटेंडेन्ट रामलिंगम सर अपना अटेंडेन्स रजिस्टर लेकर पहूंच गये। उन्होंने धीरे से दरवाजे को धक्का दिया तो वो खुल गया। अब क्या था, सारे लड़कों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी। ये कोई सरकारी कालेज का होस्टल तो थ नहीं जहां ये सब खुल्लम-खुल्ला चलता है, हमारे कालेज में इसकी सजा में होस्टल तक से निकाला जा सकता है। उन्हें जैसे ही लड़कों ने देखा वैसे ही ALT+F4 दबाने लगे, मगर वो मूवी किसी ऐसे प्लेयर पर चल रहा था जिसपर ये काम नहीं किया। फिर मेरे एक मित्र ने झट से मानिटर को बंद कर दिया। अब क्या था वो पोर्न मूवी दिखना तो बंद हो गया पर आवाजें तो अभी भी आ रही थी। कुल मिला कर वो क्षण बहुत ही हास्यास्पद हो चुका था। फिर किसी ने कंप्यूटर को ही बंद कर डाला तब जाकर ये तमाशा बंद हुआ। और इतनी देर तक हमारे रामलिंगम सर बेचारे ठगे हुये से खड़े ये सब तमाशा देख रहे थे।

रामलिंगम सर का स्व्भाव बहुत ही अच्छा था सो उन्होंने कुछ किया नहीं, यहां तक कि चेतावनी भी नहीं दिया(शायद वे जानते थे कि चाहे कितना भी रोक लगाओ, होस्टल में ये सब नहीं रूकने वाला है)। उन्होंने बस एक आग्रह करके सभी को छोड़ दिया कि जो भी करना है कम-से-कम दरवाजा तो बंद करके किया करो।

अगली सुबह जब मैं मेस में नास्ते के लिये पहूंचा तब जाकर ये सब पता चला और तब तक हमारे वे मित्र हमलोगों के हंसी मजाक में अपनी जगह बना चुके थे जो पूरे 3 साल तक चला और आज भी भूलाये नहीं भूलता है।

9 comments:

  1. वैसे शक्ल से आप इतने भी शरीफ़ नहीं दिखते कि आप उस समूह में शामिल न हों। खैर जब कोई भी व्यक्ति कुछ लिखता है तो वह अपने आप को तो अलग कर ही लेता है। वैसे पोस्ट बढिया है अपने अनुभव बाँटते रहें ।

    ReplyDelete
  2. आपके सर दयालू थे अत: आप लोग बच गये!!

    मेरा बेटा CMC में है अत: वेल्लोर कई बार आया हूं. सच आपका कालेज गजब का है!!

    ReplyDelete
  3. अरे नहीं विवेक जी.. मैं मानता हूं कि मैं इतना भी सीधा नहीं हूं.. मगर अगर मैं उसमें रहते हुये भी खुद को अलग रखूंगा तो अपने दोस्तों से बचकर कहां जाऊंगा?
    सही बात तो ये है कि मैं उसमें था ही नहीं.. :)

    ReplyDelete
  4. चलो जो हुआ सो हुआ

    वो बच गए और आपने शेयर किया

    सुंदर

    ReplyDelete
  5. अब ये तो बतादो दोस्त दोस्तो को तुम्हे ना बुलाने के लिये कितनी गालिया दी थी...:)

    ReplyDelete
  6. a good start with the narration but ended with an anticlimax..aajwajon ki to charcha hi nahi tumne...
    lo uski kami hum puri kiye dete hain.. :) (wink)
    ooooyaaaaahhhh...cccoooommmm oonnn....ooooyaaaaahhhh...(wink)
    but a usual thing in boys hostels..atleast in engg and above..

    ReplyDelete
  7. WAISA HI EK WAQYA MERE SAATH BHI HUA HAI

    ReplyDelete
  8. daravaajaa band rakhaa karo... sahi kaha.. or behaare kya kahate..

    ReplyDelete
  9. har hostel ki yahi kahani hai

    ReplyDelete