Wednesday, January 02, 2008

नया साल और दिनकर जी की कविता

मैं पिछले 3-4 दिनों से नेट की आभासी दुनिया से बाहर अपनी जीवंत दुनिया में मस्त था। सो आज सुबह-सुबह जैसे ही मैंने अपना जी-मेल का इनबाक्स खोला तो पाया कि वहां चिट्ठों और सुभकामनाओं कि बाढ सी आयी हुई है। जिसमें से सबसे बढिया सुभकामना पत्र जो मुझे प्राप्त हुआ वो यहां मैं आज के अपने पोस्ट पर डाल रहा हूं। इस कविता को लिखने वाले मेरे सबसे मनपसंद कवि हैं।

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं

समाना चाहता है, जो बीन उर में
विकल उस शून्य की झंकार हूँ मैं
भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में
सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं

जिसे निशि खोजती तारे जलाकर
उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं
जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन
अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं

कली की पंखडीं पर ओस-कण में
रंगीले स्वप्न का संसार हूँ मैं
मुझे क्या, आज ही या कल झरुँ मैं
सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं

मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से
लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं
रूदन अनमोल धन कवि का, इसी से
पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं

मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का
चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं
पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी
समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं

न देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से
मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं
पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले
तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं

सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा
स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का
प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं

दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा का
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं
सजग संसार, तू निज को सम्हाले
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं

बंधा तूफान हूँ, चलना मना है
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी
बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं ।।


- रामधारी सिंह दिनकर

इसे मेरे मित्र संजीव नारायण लाल ने मुम्बई से भेजा है जो अभी पटनी कंप्यूटर साल्यूशन में कार्यरत हैं।

1 comment:

  1. Cheating.. he doesn't send this message to me.. well a heartly new year wishes to you and your family.. really missing you guys.. planning to come their in january lets see..

    so what you did on the new year eve..?

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