देखिये ये मिज़ाज कब बदलता है और कब मैं फिर से पहले वाले ढंग में लौट कर आता हूं। तब तक के लिये विदा चाहूंगा।
अनमना सा मन
पता नहीं क्यों, आज-कल कहीं भी मन नहीं लग रहा है। यही कारण है कि चिट्ठे पर भी कुछ नहीं लिख रहा हूं। लिखने के लिये तो बहुत सारे टापिक हैं, पर लिखने की इच्छा भी तो हो।
देखिये ये मिज़ाज कब बदलता है और कब मैं फिर से पहले वाले ढंग में लौट कर आता हूं। तब तक के लिये विदा चाहूंगा।
देखिये ये मिज़ाज कब बदलता है और कब मैं फिर से पहले वाले ढंग में लौट कर आता हूं। तब तक के लिये विदा चाहूंगा।
पाथक निराश ।
ReplyDeleteपाठक*
ReplyDeletePrashant Sir
ReplyDeletePlease resume back to action soon..
I'll really miss it :(
फिक्र न करें - ये मूड स्विन्ग आते रहते हैं।
ReplyDeleteऐसा होता है, कुछ दिन की दूरी मन को हल्का करेगी। आपका इन्तजार रहेगा :) मेरे ब्लाग पर टिप्प्णी कर आने की सूचना दीजिएगा :)
ReplyDeleteठहराव को मारिए घूसा और चल पड़िए। अच्छा लिखते हैं तो फिर ठहरना उचित नहीं। आप अच्छा लिखते हैं, इसमें कोई शक नहीं।
ReplyDelete-जेपीनारायण
कोई बात नहीं ये सामान्य प्रक्रिया है। 2007 के आखिरी हफ्ते से अब तक मुझे ऐसी लग रहा है लेकिन, कुछ-कुछ अनमने से भी लिखना चाहिए, मन लगने लगेगा।
ReplyDeleteमेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आप सबों का बहुत-बहुत धन्यवाद.. मैं जल्द ही अपना मूड बदलने की कोशिश करूंगा..
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