- मुझे क्या पता?
- फिर किसे पता होगा?
- सब समझती हूं, मुझे बातों में उलझा कर इस बाजी को जीतना चाहते हो..
- जहां खाने सिर्फ नौ हों वहां एक बार बाजी निकल जाने पर जीतने की संभावना वैसे भी कम ही हो जाती है.. तुम तो इसे ऐसे भी जीत रही हो..
- लिखना ही है तो कॉपी पर लिखो ना, मेरे हाथों पर क्यों लिख रहे हो?
- कुछ नहीं, बस तुम पर लाईन मार रहा हूं..
- कोई बाते बनाना तो तुमसे सीखे..
- और मुझे बनाना तुमसे..
- ठीक है, ठीक है.. ये मैंने अपना कुट्टा लगा दिया है.. अब मेरे चेहरे को छोड़ कॉपी भी एक बार देख लो..
- कॉपी क्यों देखूं? जब अपने जीवन की किताब पढ़ रहा हूं..
- नजर हटाओ, मुझे शर्म आती है.. अब तुम्हारा चांस है.. एक बार कॉपी भी देख लिया करो, कहीं कोई बेईमानी तो नहीं कर रहा है?
- ये क्या, तुमने सच में बेईमानी की है.. यह तुम जान कर हार रही हो..
- हां!!
- मैं बेईमानी वाला खेल नहीं खेलता हूं, चाहे वो बेईमानी मुझे जीताने के लिये ही हो..
- देखो, तुम जीत गये ना?
- तुम्हें जानबूझकर मुझसे हारकर क्या मिलता है जो हारती हो?
- बस ऐसे ही.. तुम नहीं समझोगे..(और वो हंसने लगी)
हर हार में तुम जीत खोजती थी, चाहे वो कट्टम-कुट्टा का खेल हो या बिंदुओं को मिलाकर चौखट बनाने का.. जीतते समय भी जानबूझकर हार जाती थी और तुम्हारी खुशी देख कर मैं भी खुश हो लेता था.. कई बार जानबूझकर हारने की कोशिश करने पर भी हार नहीं पाता था, कोई ना कोई कुतर्क हमेशा तुम्हारे पास होता था हारने का.. फिर आज अचानक इस जीत से तुम्हें खुशी कैसे मिलने लगी? या फिर से मैं ही जीता हूं जिसे मैं समझ नहीं पाया और तुम खुश हो? कुछ समझ नहीं आ रहा है.. जिंदगी के कुछ प्रश्न कभी समझ नहीं आते हैं..
नोट - यह शीर्षक पूजा के चिट्ठे से लिया गया है
कुछ ऐसी हार होती हैं जिन्दगी मे जिन्हे हारने मे ही जीत होती है.
ReplyDeleteरामराम.
bahut sahi bhai...
ReplyDeleteताऊ जी से सहमत हैं हम भी।
ReplyDeletegambhir prashn hai...soch ke batayeinge...ho sakta hai na bhi batayein...par aisi haar kai baar jeet se bhi jyada sukhad hoti hai.
ReplyDeletetum mera title aise kaise uda sakte ho? :D :D :D
ReplyDeleteमज़ा जीत मे ही नही हार मे भी होता है पी डी
ReplyDeleteपासे पड़े जो हार के वों जीत बन गए...
ReplyDelete"मेरे हाथों पर क्यों लिख रहे हो?" मैं होता तो जवाब देता.. 'ब्लफमास्टर नहीं देखा' :P :D
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