बातें करते हुये हम उस शौपिंग माइल के अंदर चले गये.. मुझे समझ नहीं आता है कि लोग मॉल के पीछे इतने पागल क्यों होते हैं? आई जस्ट हेट मॉल्स.. पता नहीं भविष्य में मेरे यह विचार बदलते हैं या नहीं.. अभी से इस पर कुछ भी कहना ठीक नहीं.. हम दोनों ही कहीं बैठने के लिये जगह तलाश कर रहे थे और एक कॉफी शौप में घुस गये.. बरिस्टा नाम था उसका, शायद..
मैं कई तरह की स्मृतियों को संजोने में लगी हुयी थी और दूसरी चीजों की परवाह करनी छोड़ दी थी.. किसका फोन आ रहा था मेरे मोबाईल पर मुझे इसकी भी परवाह नहीं थी.. जाने क्यों मेरी प्राथमिकतायें बदल चुकी थी.. मैंने उस फोन को नजर अंदाज करते हुये उसे ऐसे देखने की कोशिश करने लगी कि उसे समझ में ना आये कि मैं उसकी एक-एक गतिविधि को गौर कर रही हूं.. फिर से फोन.. इस बार मैं फोन उठा लिया और उसकी ओर ध्यान से देखने लगी.. वह मेनू कार्ड पढ़ने व्यस्त था, और थोड़ी ही देर में काऊंटर पर उसका आर्डर देने और पैसे देने मे व्यस्त हो चुका था.. जब तक वह वापस आता तब तक मैंने फोन रख दिया.. अब उसकी बारी थी, कोई उसे फोन कर रहा था.. शायद उसकी मां थी.. रौंग गेस.. दीदी..
खैर जो भी हो, छोटी सी बात करके उसने फोन रख दिया और मुझे अपने दोस्तों और घर वालों की तस्वीरें अपने मोबाईल में दिखाने लगा.. इस चक्कर में मेरी अंगुली से उसकी अंगुली टच हो गई.. यह तीसरी बार ऐसा हुआ.. उफ्फ.. पता नहीं क्यों मैं यह गिनती गिने जा रही हूं.. फिर उसने मेरा मोबाईल पूरे अधिकार से ले लिया, बिना पूछे.. मैंने भी मना नहीं किया, जैसे उसे पता था कि मैं बुरा नहीं मानूंगी.. थोड़ी देर बस यूं ही हाथों में नचाता रहा और बाते भी करता रहा.. यहां आने में उसके साथ क्या क्या हुआ? ऑटो वाला कैसे बातें कर रहा था.. उसके ऑफिस में आजकल क्या चल रहा है.. मेरा काम कैसा चल रहा है.. अपने कालेज के किस्से.. एकेडमिक अचिवमेंट्स.. और भी ना जाने क्या-क्या...
फिर मेरे मोबाईल के कौंटैक्ट में जाकर अपने नाम "संजय जी" को बदल कर "संजू" कर दिया.. मैं अभी तक सोच में हूं कि मैंने कई महिनों का समय लिया मगर "संजय जी" को "संजूं" नहीं कर पायी वहीं उसे यह कैसे इतनी आसानी से कुछ ही सेकेण्ड में कर दिया.. बातें करते करते उसके पिछले प्यार पर पता नहीं कैसे बातों का रूख मुड़ गया.. उसने साफ तौर पर नकार दिया मगर मैंने उसकी आखों में अब भी उस प्यार की झलक देख ली.. पता नहीं क्यों, मुझे कुछ जलन का भी अहसास भी हुआ जो क्षणिक था.. क्योंकि उसके प्यार को लेकर उसकी आंखों में सच्चाई दिख रही थी.. पहला प्यार इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ता है, और ना ही भुलाये भुलता है.. शायद यह सच है.. "खैर छोड़ो.." यह हम दोनों ही एक साथ बोले और दोनो ही हंस दिये..
एक लड़की के डायरी के पन्ने(पहली मुलाकात - भाग एक)
ओये कमाल कर दी सा ....गुरु छा गये
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
हाँ मैंने पसंद पर भी क्लिक कर दिया ...ताकि ज्यादा लोगों तक पहुंचे
ReplyDeleteडायरी के पन्ने पढ़े जा रहे हैं....
ReplyDeleteधन्यवाद.
पहला प्यार इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ता है, और ना ही भुलाये भुलता है.. शायद यह सच है।
ReplyDeleteशायद नही सच हैं। बस डायरी के पन्ने पलटे जाओ।
बहुत बढिया जी . हम भी पढे जा रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
wow.. pls continue Prashant bhai
ReplyDeleteप्रणाम
ReplyDeleteउत्सुकता लगा कर छोड़ दिया की अब गए क्या होगा . पन्ने जरा जल्दी से पलटे.
धन्यवाद
बढ़िया चल रहा है। आगे जानने की उत्सुकता बनी हुई है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
bhawnao aur vicharo ka bahut achha sangum,wah bahut badhiya
ReplyDeleteहम्म बढ़िया आगे जानने की उत्सुकता रहेगी
ReplyDeleteदिलचस्प मुलाकात....खूबसूरत अंदाज़-ऐ - बयां...
ReplyDeleteनीरज
इतना सुंदर लिखते हो भाई! अब तक कहाँ थे? बहुतों को विस्थापित कर दोगे। जिओ।
ReplyDelete@ क्योंकि उसके प्यार को लेकर उसकी आंखों में सच्चाई दिख रही थी.. पहला प्यार इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ता है, और ना ही भुलाये भुलता है.. शायद यह सच है..
ReplyDelete******बहुत बढीया। सुन्दर॥
"mumbai" fir se aana kab hoga?...bhram mein daalne ki koshish
ReplyDeletebahut chhoo gaya ye post aapka...umeed hai is baare mein kabhi khulke baat hogii :)