उसे देखने से साफ लग रहा था कि वह इस उम्मीद में था कि मैं बायें से आऊंगी, और मैं इस इंतजार में थी कि वह मेरी ओर पलट कर देखे जहां मैं कई तरह के विचारों और भावनाओं को समेटे हुई थी जिसे चंद शब्दों में समेट पाना संभव नहीं है.. मैं बस इतना ही लिख सकती हूं कि किसी तरह अपनी भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश में थी और कई तरह के विचार मुझे परेशान भी कर रहा था जो मेरे हर उस सांस से ज्यादा कीमती थी जिसे मैं उस समय ले रही थी..
पूरे 2 मिनट तक वहां खड़ी होकर बहुत सूक्ष्मता से मैं उसके हर गतिविधि का मुआयना किया.. अंततः मेरे दिमाग ने मुझे झकझोरा और मुझे याद दिलाया कि मेरे पास सिर्फ 1 घंटा और 20 मिनट है क्योंकि मुझे 12 बजे अपने ऑफिस के लिये निकल जाना होगा.. मिलने का समय मैं अपने समय सारणी और आने वाली घटनाओं पर छोड़ रखी थी.. एक नजर अपनी घड़ी पर डाल कर मैंने ठंढ़ी सांस ली और उसकी ओर बढ़ चली.. बस चार कदम बढ़ने पर ही अचानक से वह मेरी ओर मुड़ गया.. हमारे बीच एक बेआवाज संवाद स्थापित हो चुका था जो आंखों से और चेहरे पर की मुस्कान से साफ झलक रहा था, जो लगभग 4 सेकेण्ड तक चला जब तक मैंने अपनी पलकें नहीं झपकायी..
बहुत पहले उसने मुझे अपनी एक तस्वीर भेजी थी जिसका शीर्षक में खुद को शैतान बताया था.. अगर वह खुद को शैतान बता रहा था तो यह शैतानियत की पराकाष्ठा ही थी जो मुझे उसकी ओर जाने क्यों खींचता है और अनायास ही मन में एक सम्मान का स्थान भी बनाता है.. यह सम्मान सिर्फ उसकी आवाज या एक अच्छा कवि होने के कारण नहीं है.. यह उसके संपूर्ण व्यक्तित्व के कारण है जो उसे इस पागल भीड़ और ऐसे व्यक्तियों से अलग करता है जिनसे आप हर पल मिलते हैं.. किसी की भावनाओं कि कद्र करना ही उसकी सबसे बड़ी खूबी है जो उसे किसी अन्य से अलग करता है.. मैं सच में जानने को उत्सुक हूं कि किस तरह वह खुद को आज के इस मुलाकात में भी शैतान साबित करना चाहे.. मुझे पता है वह ऐसा नहीं है..
अब तक मैं उसके पास पहूंच चुकी थी और हमने एक दूसरे को "हाय" कहकर अभिनंदन भी किया.. मैंने लगभग दो सेकेण्ड तक इंतजार किया कि शायद वह अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाये हाथ मिलाने के लिये.. फिर मैंने ही शुरूवात करते हुये अपना हाथ आगे बढ़ाया.. मेरी तरफ से, अगर वह अपना हाथ पहले आगे बढ़ाता तो मैं ज्यादा पसंद करती.. मगर मेरी सोच के मुताबिक, मैं पिछले कुछ मिनटों से उसे देख कर खुद को तैयार कर रही थी और अभी वह इसी प्रक्रिया से गुजर रहा था..
(इस पोस्ट के लिये बस इतना ही.. पाठकों के ऊपर निर्भर करता है कि मैं इस डायरी वाले कहानी को आगे बढ़ाऊं या नहीं.. आप ही मुझे सलाह दें.. अगर आप इसे और आगे पढ़ना चाहेंगे तभी मैं इसे आगे बढ़ाऊंगा.. :)) यह आप पर निर्भर करता है कि इसे किस्सागोई समझें या सच्चाई..
अब यहाँ तक आ गएँ हैं तो बढा ही दीजिये न- प्लीज वैसे किसी के बढ़ाने से कुछ बढ़ता वढता नहीं -जो बढ़ना होता है ख़ुद ब ख़ुद बढ़ लेता है !
ReplyDeleteएसा मत करें....अगली कड़ी का भी इन्तजार रहेगा .......pahli कड़ी ने बाँध दिया है n
ReplyDeleteभाई हम तो आपसे नाराज़ है. हमे लगा कि कहानी पूरी पढने को मिलेगी, लेकिन आपने तो बीच में ही ब्रेक लगा दिया. बैसे अगले पन्नों का इंतज़ार रहेगा..
ReplyDeleteकहानी आगे बढाई जाये। स्टाप वाच का प्रयोग न करें। सेकेंडों में मामला न निपटाया जाये।
ReplyDeleteभाई बहुत अच्छी शुरुआत की है ...इस सच्चाई को आगे बढाओ
ReplyDeleteप्रशांत भाई पढकर मीठा सा लगा। और इस मिठास को यही खत्म मत करना।
ReplyDeleteकिसी की डायरी को पढना गलत है, लेकिन आप तो उसे नेट पर डाल रहे है? अब आप खुद ही सोचो आगे क्या करना है, अगर कोई आप की निजी डायरी को इस तरह से नेट पर डाले तो.... आप को केसा लगगे गा???
ReplyDeleteधन्यवाद
किस्सागोही ही माने लेते हैं..बिना शरमाये आगे तो बढ़ाओ ये किस्सागोही!!
ReplyDeleteजमाये रहो, इसी तरह बड़े किस्सागो बनते हैं लोग।
ReplyDeleteबहुत बढिया पीडी। जारी रहे पहली मुलाकात,इंतज़ार रहेगा अगली कड़ी का।
ReplyDeleteजारी रहे. ये फ़र्मान हैं जिल्ले इलाही का.:)
ReplyDeleteभाई आगे बढाईये.
रामराम.
badha do bhai.. ye bhi poochne vali baat hai..? :)
ReplyDeleteडायरी वो भी एक लड़की की, अरे छाप दिया जाय पूरा धका-धक :-)
ReplyDeleteसच्चाई छ्प ही जानी चाहिये पूरी की पूरी.
ReplyDeleteधन्यवाद.
इसलिए हम कहते थे.. शिव कुमार जी से ज़्यादा बतियाया ना करो.. देखो अब कर दी ना डायरी चोरी.. वैसे डायरी और पतंग को बढ़ते रहना चाहिए..
ReplyDeleteतुमने किसी लड़की की डायरी चुराई और फ़िर यहाँ उसके पन्ने भी लिख रहे हो वेरी बेड ..:)आगे क्या हुआ ?
ReplyDeleteहाँ तो डायरी बढाइए आगे.
ReplyDeleteआरंभ अच्छा है। लिखिए आगे भी।
ReplyDeletemujhe to ek real experience lag raha hai ye...abhi doosa bhaag nahi padha hai...usko padhke shayad andaaza ho jaaye
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