Saturday, February 14, 2009

एक कविता बिना शीर्षक की

साथ बिताये वो
अनगिनत पल,
हर पल में गुथे
अनगिनत शब्दों की मोतियां..
अब याद के अलावा
कुछ शेष नहीं..
अब भी इन
खामोशियों की चीख,
मीलों तक सुनाई देता है
सर्द खुश्क रातों मे..
वो आवाजें जो दिलों को
नश्तर सा छेद जाती है..
एक बेआवाज तड़प
ही बाकी है सिर्फ..
क्या यह आवाज तुम तक भी जाती है?

9 comments:

  1. Pd
    क्या यह आवाज तुम तक भी जाती है?
    aavaj jarur pahuchtee haen bas kabhie kabhie samay ki ghantiyon kae shor mae wo sun nahin paatey jinki yaad mae yae aavaj haen
    aap ki kavita nae chua is liyae kament daene par baadhit hogayee

    pyar kae is paavan parv par aap ko shubhkamana

    ReplyDelete
  2. पहुँचेगी जरूर यह आवाज
    जवाब बन कर लौटेगी
    वहीं से जहाँ प्यार होगा
    देखना यही है कि यह
    कहाँ से लौटती है
    जवाब बन कर?

    ReplyDelete
  3. दिल से दोगे आवाज़ तो जरुर वापस आएगी .वैसे कविता अच्छी लिखी है

    ReplyDelete
  4. आपकी आवाज आपकी पहचान बनकर वहीं पहुँचेगी जहाँ आप चाहते हैं । आपके दिल कादर्द शबदें मे छलक आया है ।

    ReplyDelete
  5. सुन्दर अभिव्यक्ति और सुन्दर भावनायें।

    ReplyDelete
  6. सुंदर बहुत सुंदर
    मेरी कविता पढ़े पुब संस्कृति एक कव्वाली
    पधारे

    ReplyDelete
  7. kya baat hi. aisee awaz ke muntazir hai ham sabhi,aisee baat se hi hi duniya bhavnawon ka astitwa.acchee kavita.

    ReplyDelete
  8. क्या बात है गुरु,हो जा शुरू। सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  9. "क्या यह आवाज तुम तक भी जाती है?"

    बेहद खूबसूरत तरीके से आपने ये लाइन लिखी है. काबिलेतारीफ !

    ReplyDelete