इस शहर ने मुझे नाकामी भी दी तो वहीँ फर्श से अर्श तक भी पहुँचाया है.. कुछ पाने का जूनून होना सिखाया है तो वहीँ कुछ खोने के अहसास का मतलब भी बताया है.. किशोरावस्था से लेकर जवानी तक कुछ दिल में बस है तो वो पटना ही है.. एक से बढ़कर एक अच्छे मित्र भी इसी पटना ने दिए.. पटना ने ही सिखाया कि दोस्ती किस चीज का नाम है.. वही दुश्मनों से दुश्मनी भी वहीँ सीखी..
आवारागर्दी के किस्सों कि डायरी को मोटा भी मैंने पटना में ही बनाया है.. अपने पिता और बडे भाई कि छाया से अलग पहचान भी मुझे पटना ने ही दिया है.. पटना सिटी से लेकर दानापुर तक, ऐसा लगता है जैसे पूरा पटना ही मेरा है.. सच कहूँ तो पटना शहर मेरे दिलो-दिमाग पर एक नशे कि तरह छाया है.. ऐसा नशा जो उतरने का नाम ही ना ले.. पूरे भारत में बदनाम शहर पटना, जिसका नाम होना या बदनाम होना मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता..
गोलघर से उचक कर पूरे पटना को देखने कि कोशिश करना, तो कभी गंगा किनारे बैठ कर ठंढी हवा से खेलना.. कभी म्यूजियम के सामने "सिलाव का खाजा" का आनंद उठाना, तो कभी कदमकुवां में फुटपाथ के बगल वाले दूकान कि लस्सी पीना.. मुनेर के लड्डू और आरा के उद्वंत नगर का खुरमा के किस्से भी अलग ही हैं.. प्यार करना भी इसी शहर ने सिखाया तो वहीँ कभी कभी हद से ज्यादा और बिना मतलब का कठोर हो जाना भी यही सीखा..
छठ पूजा में लोगों का उत्साह देखना हो तो भी पटना छोड़कर कुछ और याद नहीं आता है.. लड़कियों को घूरना भी मैंने पटना में बोरिंग रोड में ही सीखा(भैया कि कृपा ;)).. जिन्दगी का हर सही-गलत पाठ मुझे पटना ने ही सिखाया.. अच्छे-बुरे का ज्ञान कराया.. राजेंद्र नगर के चक्कर काटना, रात के अंधियारे में रंगीन चश्मा पहन कर स्कूटर दौड़ाना.. स्कूल कि दीवार फंड कर गोल्फ क्लब से बेकार परे गेंद चुराना, सुबह-सुबह उठ कर राजभवन के सामने स्केटिंग करना.. (पहली बार स्केट बोर्ड लेकर मैं और भैया ही वहां गए थे यह भी याद है.. लोंग घूर घूर कर हमें देख रहे थे कि यह क्या है.. :)) अलसाए सी दुपहरी में दिन भर आवारागर्दी करके लौटने पर मम्मी कि डांट खाना और उसे अनसुना करके मम्मी से खाना मांगना..
जितनी ठोकरे मुझे पटना ने दिए, उतना ही इस शहर ने मुझे संभाला भी है.. यह शहर मेरे लिए क्या है यह मेरे अलावा और कोई नहीं समझ सकता..
आज पूजा कि यह पोस्ट पढ़कर अचानक से ही मैं बहुत नौस्टाल्जिक हुआ जा रहा हूँ.. क्या आपके लिए भी इस शहर के कुछ भावनात्मक मायने हैं? अगर हैं तो आपकी एक पोस्ट मैं जरूर पढना चाहूँगा.. पटना पर पोस्ट लिखने के बाद अपना लिंक देना ना भूलें..
सही बताओ कि कमेन्ट से यहाँ पेस्ट किए हो कि यहाँ से कमेन्ट पर? वैसे इस पोस्ट का इंतज़ार कर ही रही थी...बोरिंग रोड पर घूरने वालों में तुम भी थे...अब किसी दिन मिलो तो उस वक्त जो पिटाई नहीं कर पायी थी कर लूंगी...कुछ तो तसल्ली मिलेगी. छोटा कमेन्ट ही मारती हूँ, बाकी पोस्ट पर छापूँगी :) यादों का दौर चला है...कुछ दिन और चलने दो :)
ReplyDeleteयह शुभ कार्य जितनी जल्दी हो जाये, बढिया है.:)
ReplyDeleteरामराम.
अहम का हिम फिर से मत जमने देना।
ReplyDeleteये ही पढ़्ने आपके (तुम लिख रहा था, पर अचानक हाथ रुक गया) ब्लोग पर आते है... बहुत प्यारी है आपकी छोटी सी दुनिया.. अच्छा लगा.. बहुत भावुक हो कर लिखते है आप...
ReplyDeleteवाह पीडी वाह।वाकई अपना शहर स्वर्ग ही होता है फ़िर चाहे वो रायपुर हो या पटना।
ReplyDeleteप्रशांत आपके पटना को जाना और आपने बड़ी ही शिद्दत से अपने शहर को याद किया है । अच्छा लगा ।
ReplyDeleteसच है हर कोई अपने शहर जहाँ वो पला -बड़ा होता है उससे बेइंतहा प्यार करता है ।
जब आप किसी से अगाध प्यार करते हैं तो अपनी सुध बुध खो देते हैं.
ReplyDeleteपटना से आपका जज्बाती रिश्ता है .
आपके लेख ने यादों की बरात को दिलो -दिमाग के सामने गुजार दिया. मैंने भी किशोरावस्था का कुछ समय पटना में गुजारा . पटना कॉलेज एअट स्कूल होस्टल में . बाद में पढ़ाई के लिए बाहर जाने पर पटना शहर मेरी पहचान का कारण बना . घर होने के कारण वेवजह अगर कहीं जाना हुआ तो पटना और गाँव. सिर्फ़ लौटते हैं आप अपने शहर और गाँव में ही . और वो भी विना वजह के. और कहीं भी आप आते -जाते है तो सिर्फ़ वजह से.
पटना से रूमानी रिश्ता नहीं रहा. प्रेम की समझ तो कहीं और हुई .
पर अपना तो पटना हीं है.
पटना भूगोल नहीं है हम सब के लिए .एक भावना या कहें तो अपने वजूद का हिस्सा है. और क्या हम इस शहर पर वस्तु निष्ठ दृष्टिकोण से बात कभी कर पाएंगें ?
पटना की श्रेष्ठता ,और पटना की आन -बान और शान के लिए पता नहीं दिल्ली में कितनी लडाई लड़ी .
न उनको समझ में आया न हम सब को. क्यों की हम सब तो अपने अहसास और अपनी लडाई लड़ रहे थे. पटना तो बहाना मात्र था.
ऐसे ही लिखते रहें. आप दोनों का शुक्रिया .
हाँ बोरिंग रोड पर आँख न लड़ा पाने का अफ़सोस है. वो भी शायद अगले जनम में पुरा हो जाए .
सादर
जब आप किसी से अगाध प्यार करते हैं तो अपनी सुध बुध खो देते हैं.
ReplyDeleteपटना से आपका जज्बाती रिश्ता है .
आपके लेख ने यादों की बरात को दिलो -दिमाग के सामने गुजार दिया. मैंने भी किशोरावस्था का कुछ समय पटना में गुजारा . पटना कॉलेज एअट स्कूल होस्टल में . बाद में पढ़ाई के लिए बाहर जाने पर पटना शहर मेरी पहचान का कारण बना . घर होने के कारण वेवजह अगर कहीं जाना हुआ तो पटना और गाँव. सिर्फ़ लौटते हैं आप अपने शहर और गाँव में ही . और वो भी विना वजह के. और कहीं भी आप आते -जाते है तो सिर्फ़ वजह से.
पटना से रूमानी रिश्ता नहीं रहा. प्रेम की समझ तो कहीं और हुई .
पर अपना तो पटना हीं है.
पटना भूगोल नहीं है हम सब के लिए .एक भावना या कहें तो अपने वजूद का हिस्सा है. और क्या हम इस शहर पर वस्तु निष्ठ दृष्टिकोण से बात कभी कर पाएंगें ?
पटना की श्रेष्ठता ,और पटना की आन -बान और शान के लिए पता नहीं दिल्ली में कितनी लडाई लड़ी .
न उनको समझ में आया न हम सब को. क्यों की हम सब तो अपने अहसास और अपनी लडाई लड़ रहे थे. पटना तो बहाना मात्र था.
ऐसे ही लिखते रहें. आप दोनों का शुक्रिया .
हाँ बोरिंग रोड पर आँख न लड़ा पाने का अफ़सोस है. वो भी शायद अगले जनम में पुरा हो जाए .
सादर
बहुत प्यार से आपने अपने शहर से परिचित करवाया हमें ..अच्छा लगा ..
ReplyDeleteइतना लगाव किसी एक शहर से तो नहीं हाँ अलग-अलग जगहों से अलग-अलग यादें जुड़ी हुई है ! लड़कियों को घूरने वाली जगहें वैसे भी कहाँ भूलती हैं :-)
ReplyDelete@ पूजा - पहले तुम्हारे ब्लौग पर कमेंट किया था, फिर आगे यहां बढ़ा दिया.. वैसे हम बोरिंग रोड में अपना अड्डा भी बता देते हैं.. या तो लक्षमी प्लेस या फिर आर्चीज के दुकान के सामने(हाई कोर्ट के पास वाला).. :) यादों के काफिले को थोड़ा और हांकों, हम साथ देने के लिये हैं..
ReplyDelete@ ताऊ जी - यह कारवां बढ़ाने में आप भी साथ दें.. आपके पास भी तो अपने शहर या गांव के किस्से रखे होंगे मन के किसी परतों के नीचे..
@ दिनेश अंकल - कोशिश यही रहेगी की नहीं जमे.. :)धन्यवाद..
@ रंजन जी - आप तुम भी लिखें तो बुरा नहीं मानूंगा.. आगे से तुम ही लिखें..
@ अनिल जी और ममता जी - बहुत बहुत धन्यवाद..
@ कौशल किसोर जी - आपके ही नाम का मेरा एक मित्र पटना का ही है.. पता नहीं इस दुनिया के भीड़ में कहां खो गया है? पटना में राजाबाजार का रहने वाला था.. पिछली बार बैंगलोर में उससे मिला था हनीवेल के ऑफिस के पास, नौकरी की तलाश में भटक रहा था.. नंबर दिया और बाद में नंबर बदलने पर अपना नया नंबर दुबारा नहीं दिया..
आपका कमेंट पढ़कर यकायक उसकी याद हो आयी.. धन्यवाद इस यादों की लड़ी से जुड़ने के लिये..
@ रंजू दीदी - थैंक्यू दीदी..
@ अभिषेक भाई - कहां-कहां आखें लड़ाई है आपने अब बता भी दो.. आपने तो मान भी लिय है कि आप यह नहीं भूलें हैं.. ;)
ReplyDeleteपटना को इतना मान देना अच्छा लग रहा है..
और, अपने शहर से नफ़रत और प्यार का सिलसिला तो मृत्युपर्यंन्त चलेगा ।
पर, तू फोनवा काहे नहीं उठाता, भाई ?
ReplyDeleteऔर, हाँ अन्य लेखकों द्वारा नकारात्मक पक्ष उखेलना तो आसान है,
पर पटना के छात्रों की मेघा के आगे बाकी बगलें झाँक जाते हैं ।
यह तो लिखा ही नहीं !
पटना का नाम देखा तो यहाँ चला आया। तुमने गोल घर की फोटो लगाई है और बोरिंग रोड का जिक्र किया है। ये दोनों ही जगहें मेरी प्रिय रही हैं। पहली के बारे में तो मुसाफ़िर हूँ यारों पर अभी हाल ही में लिखा था यहाँ पर !
ReplyDeleteऔर बोरिंग रोड और बेली रोड की क्रासिंग पर मेरा घर हुआ करता था आफिसर्स हॉस्टल यानी कबूतरखाना जिसके बारे अपनी एक पुरानी पोस्ट में विस्तार से लिखा था।
2.25 एएम पर जो 'चाहत' मन में उपजी थी, कोई चौबीस घण्टों के बाद भी वह पूरी हुई या नहीं, जानने की उत्सुकता है।
ReplyDeleteआपकी छोटी सी दुनिया शानदार है। विशेषकर पटना पर लिखे आपके आलेख से प्रभावित हूं। चाहता हूं कि आपकी तरह मैं भी अपने शहर बीकानेर के बारे में लिखना चाहूंगा। जब भी लिखूंगा आपको जरूर बताऊंगा। आपकी तरह हमें भी बीकानेर भी जान से प्यारा है।
ReplyDeleteछोटे-छोटे शहरों में, खाली बोर दोपहरों में..किस शहर का जिक्र पढ़ती हूं तो यही ख्याल आ जाता है।
ReplyDeleteये खुमार है उस शहर का ,उसके मौषम का ,और हम सबके बचपन का ,ये जिस शहर की सहर और शाम में पल कर हम बड़े होते हैं उनसे एक इमोस्न्ली रिश्ता बन ही जाता है....कोंन कोंन सी यादों की बाबात बताऊँ , हजारों शैतानियों और किस्से दर्ज हैं मेरी यादों के सेविंग acoount में ........
ReplyDeleteपटना शहर से सरसरी ही रिश्ता है, लेकिन पोस्ट 'फिल्मी पटना' बनाया, akaltara.blogspot.com लगा दिया. संकोच सहित आपसे वह देखने का आग्रह है.
ReplyDeleteराहुल जी, उसे पढ़ कर मैंने वहाँ कमेन्ट तो नहीं किया वरन एक पूरा पोस्ट लिख डाला..
ReplyDeleteआपके उस पोस्ट का लिंक भी दे रखा है मैंने अपने पोस्ट में..
गुरु छुट्टी केंसिल हो गयी होली की... और यह पढना मतलब समझ रहे हो ना... बोल ना मतलब समझ रहा है ना !!!
ReplyDeleteसमझ रहा हूँ.. :(
ReplyDeleteअपना घर तो अपना ही होता है |
ReplyDeleteआज जाने हैं जाके कि पटना क्या हैं...ई पोस्ट के आगे त विकिपीडिया भी फेल है..:)