एक किस्सा कालेज का याद आता है.. होस्टल का जमाना था.. पूरी रात गप्पों पर ही बीत जाया करती थी.. उन्हीं गप्पों में अगर किसी ने अपना किस्सा सुनाना शुरू किया कि "कुछ साल पहले मेरे घर में चोरी हुई थी.." बस अब क्या एक एक करके सभी के घर में चोरी होनी शुरू हो जाती थी.. सभी के पास कोई ना कोई किस्सा होता ही था कि उनके घर में या पड़ोस में कहीं चोरी हुई हो..
यहां आमतौर से मैंने यही देखा है कि अगर कोई किसी के पक्ष में कुछ लिखा है तो उस पर आने वाले सारे कमेंट उसी के पक्ष में होती है.. अगर गलती से किसी ने उसके विरोध में लिख भी दिया(चाहे संभ्रांत भाषा में ही क्यों ना लिखा हो) तो या तो उसका कमेंट डिलीट कर दिया जाता है या फिर सभी लट्ठ लेकर उसके पीछे पर जाते हैं.. तर्क-वितर्क-कुतर्क कुछ भी चलेगा, मगर इसे चुप कराओ, यहां से भगाओ या फिर जबरी सहमत कराओ..
अबकी बारी उस कमेंट लिखने वाले साहब/साहिबा की.. आखिर हिंदी ब्लौग के ऐसे कितने पाठक हैं जिनका अपना कोई भी हिंदी ब्लौग ना हो? 10% भी नहीं होगा.. तो अब बारी आती है उस पाठक की जो अब ब्लौगर का किरदार बखूबी अदा करता है.. और अपनी बात अपने ब्लौग में लिखता है.. फिरसे वही बात वहां भी दोहरायी जाती है.. अबकी बार बस किरदार बदला हुआ है..
कुछ दिन ऐसा ही चलता है, फिर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलना शुरू होता है.. छीछलेदारी भी खूब होती है.. अश्लील आरोप भी कई बार लगाये जाते रहे हैं.. 5-10 दिनों से लेकर 15-30 दिनों तक यही प्रकरण चलता रहता है.. फिर वे सभी कुछ दिनों तक ब्लौग से बाहर रहकर फिरसे वापस लौट आते हैं.. जिस बात को लेकर बहस आरंभ हुआ था वह किस गर्त में समा चुका होता है इसकी ना तो किसी को खबर होती है और ना ही फिकर.. उसका समाधान तो दूर की बात है..
मुझे इसी फरवरी में दो साल हुये हैं इस हिंदी ब्लौगजगत को गंभीरता से पढ़ते हुये.. यही चक्र हर बार खुद को दोहराता रहा है.. वैसे हमने बहुत कुछ सीखा भी है इस हिंदी ब्लौगजगत से.. मगर सबसे अच्छी बात जो सीखी है वो है मौज लेना.. जहां तक किसी ब्लौग पर गंभीरता से बहस होती रहती है, हम भी गंभीर पाठक के तौर पर जमे रहते हैं और कई बार प्रत्युत्तर भी कर जाते हैं.. मगर जैसे ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ नहीं की बस हम साईड में खड़े होकर मौज लेना शुरू कर देते हैं.. कुछ उसी तरह जैसे किसी सड़क पर दो लोग आपस में गाली-गलौज कर रहे हों और पूरी भीड़ तमाशा देख कर खुश होती है की बिना टिकट तमाशा देख लिया..
अभी पिंक चड्डी पर भी वैसा ही तमाशा शुरू हुआ है और हम मौज ले रहे हैं.. आखिर अब हम भी मौज लेना सीख गये हैं..
कभी कभी लगता है कि अंग्रेजी में तीन साल खपाये होते तो महीने के कम से कम 100-200 डॉलर बन ही जाते वो भी गुमनाम रहकर, बेकार का ईधर आये.. मगर इस ब्लौग दुनिया ने हमें कुछ ऐसे अच्छे लोगों से भी मिलवाया है जिनके बारे में सोचकर मन संतुष्ट हो जाता है..
bahut sahi likha prashant bhaai ....aur aapki antim pankityaan raahat deti hain ....aur mere man ki baat bhi kah gayi
ReplyDeleteये चोरी की कहानी से भी ज्यादा infectious होती है भूत की कहानी, किसी ने शुरू की नहीं की बाकी लोग एकदम से सारे भुतहे अनुभव के साथ तैयार रहेंगे...कि कब उनका मुंह बंद हो और हम अपनी शुरू करें...अब रात के दो बजे सियार की हुआ हुआ पढेंगे तो भूत तो याद आएगा ही :)
ReplyDeleteबात सही कर रहे हो यार...वैसे ब्लॉग्गिंग और सार्थक बहस एक साथ नहीं जाते दीखते हैं...मैंने बहुत कम जगह देखा है कि किसी बात को इस तरह से रखा जाए कि उसपर कोई तर्क वितर्क हो. लेख ओपन एंडेड हो तब तो उसपर कुछ कहें...पहले से ही धारणा बना ली गई है तो कुछ भी कहना व्यर्थ है. खैर इसपर कभी फुर्सत में चर्चा करेंगे.
इस ब्लौग दुनिया ने हमें कुछ ऐसे अच्छे लोगों से भी मिलवाया है जिनके बारे में सोचकर मन संतुष्ट हो जाता है..
ReplyDelete-यही तो हिन्दी ब्लॉगिंग का यूनिक एंगल है भाई. :)
भाई पहले दो साल पूरा होने की बधाई फ़िर पिंक चढी की मौज लेने की बधाई.
ReplyDeleteआपका हिंदी ब्लागिंग मे आने की बधाई.
हम तो अंग्रेजी ब्लोगिंग छोड कर इसलिये आये हैं कि वहां पर हमारी भैंसो को चांद पर चढाने मे परेशानी थी.:)
रामराम.
मौज लो भाई मौज। वैसे भी यह मौज का महीना है। सब को फगुनाहट चढ़ी है। कहते हैं फागुन में लोग भांग छानते हैं। जो नहीं छानते उन्हें बिन पिए चढ़ी रहती है।
ReplyDeleteपीडी, बड़ी लंबी नजर है, दूर तलक जाती है। मौज लेने के अपने फायदे हैं और हुवाँ हुवाँ करने के अपने, मौज लेने वाले मौज लेना नही छोड़ते और हुवाँ हुवाँ करने वाले ये करना। गाड़ी दोनों की ही चल रही है...
ReplyDeleteये बात पते की कही इस दुनिया मे हमे बहुत से अच्छे लोग मिलते हैं,जैसे पीडी।क्यों सही कहा ना।
ReplyDeleteबहुत पते की बात कह गए भाई तुम आज हिन्दी ब्लागिंग का अपना ही निराला अंदाज़ है जमे रहो यहीं मजे से ..२ साल के होने पर बधाई ..:)
ReplyDeleteअरे यार एन्जॉय करो...! कुछ लाजवाब लोग मिले हैं ये तो सच है. हिन्दी ब्लॉग्गिंग न करते तो ऐसे लोग कभी नहीं मिल पाते मैं तो ये मानता हूँ.
ReplyDelete"इस ब्लौग दुनिया ने हमें कुछ ऐसे अच्छे लोगों से भी मिलवाया है जिनके बारे में सोचकर मन संतुष्ट हो जाता है.."
ReplyDeleteसही बात है।
बहुत सही कहा आपने........यह सब देख मन तिक्त और विरक्त हो जाता है,लगता है भाग निकला जाय......पर यह भी सही है कि सबकुछ बुरा ही नही है यहाँ ,बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि अच्छे लोग स्तरीय रचनाओं की तादाद ही अधिक है....इसलिए बुरे को न देख ,अच्छे को देख खुश और संतुष्ट रहना ही बेहतर है.
ReplyDeleteकितनी अजीब बात है न पी डी भाई उस बहस में कूद कर आप पछता रहे है या अपना स्टेंड बदल लिया है ये समझ नही पाया ,आप उम्र में मुझसे एक दो साल बड़े होगे ,पहली बार आज आपकी सक्रियता देख कर विचार बदला था ओर लगा था की कम से कम आप अपना कोई स्टेंड रखते है ओर उसे सबके सामने स्वीकारते है .किसी का बुरा न बनने की पॉलिसी वैसे भी ब्लॉग जगत में बीमारी की तरह है .
ReplyDeleteबहुत खूब ,बहुत अच्छे कहकर लोग निकल जाते है .तो क्या हिन्दी ब्लगिंग केवल कविता ,गानों के लिए ही है ?या टिप्पणिया इतनी महत्वपूर्ण हो गई है की लोग डर के मारे सच भी बोलना नही चाहते .
नटखट बच्चे जी, आपको मेरा स्टैंड जानने की इच्छा है तो आप मेरा यह कमेंट पढ़ लें.. शायद आपको मेरा स्टैंड कुछ कुछ समझ में आ जाये..
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हां मगर साथ में यह भी जरूर कहना चाहूंगा की मैं या कोई भी पुराना ब्लौगर आमतौर से किसी बहस में इसलिये नहीं पड़ना चाहता है क्योंकि वह हिंदी ब्लौगिंग का चक्र समझ गया है.. यहां किसी भी बहस का अंत व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप पर ही जाकर खत्म होता है.. कोई भी बार-बार वही गलती नहीं दोहराना चाहेगा..
पी डी भाई
ReplyDeleteपुराने ब्लोगर भी अगर व्यक्तिगत टिका टिपण्णी से डरेगे फ़िर नये कहाँ जायेगे ? इसका मतलब तो ये हुआ की हिन्दी ब्लोगिंग में भले लोग है ही नही ?पुराने ब्लोगर क्या करते है वो तो मैंने चिटठा चर्चा पर अभी कहा है .जाकर देखिये
तो आप तटस्थ हो जाते हैं -यह तो कोई बात नहीं हुयी ! चलिए प्रेम दिवस की शुभ्कामनांयें कबूल फरमाएं !
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