Tuesday, October 21, 2008

२४ घंटे, जो ख़त्म होता सा ना दिखे (भाग दो)

अमित की कलम से
यहां भाग एक है

अंततः उसने मुझे पैसा वापस कर ही दिया और मैं बस से उतर गया.. अब तक हद हो चुकी थी.. मैं वापस बस स्टैंड आया इस आशा में कि कोई ना कोई बस मिल ही जायेगा और् आश्चर्यमिश्रित खुशी के साथ मैंने पाया कि एक बस थी भी वो भी AC बस.. मैंने फिर एक दौड़ लगायी और पहुंचा उसके कंडक्टर के पास..

मैंने उससे पुछा, "अंकल, एक सीट दे दो.." उसने मुझसे पैसे मांगे और मैंने दे दिये.. अरे ये क्या!! उसका टिकट मशीन ने काम करना बंद कर दिया.. NOT AGAIN.. 30 मिनट उसने भी कोशिश की.. पर वो ठीक नहीं हुआ.. अब तक रात के 12.15 हो चुके थे.. अंत में वह कंट्रोल रूम गया और उसे ठीक करके ले आया.. Fianlly I got the ticket और मैं बस में बैठ गया और बस चल पड़ी.. एक बात यहां ये अच्छी थी की यह बस अपने समय से 2 घंटे देरी से चल रही थी इसलिये मुझे यह बस मिल गयी..

खैर मैं बस में बैठ गया.. अब तक कि सारी बातें दिमाग में घूम रही थी और मैं सोच रहा था कि अब सब ठीक हो गया है.. पर किसे पता? मेरी किस्मत का? पता नहीं किसका चेहरा मैंने सुबह-सुबह देखा था..

हां तो अंततः मैं बस में चढ ही गया.. और बस लगभग 12.30 में खुल गयी.. अब मैंने सोचा कि चलो अब तो कुछ नहीं होगा और मैंने अपना आई-पॉड कान में डाला और सोने कि कोशिश करने लगा.. पर नींद आती तब ना? वही सारी बात दिमाग में घूम रही ती.. वही सब सोचते सोचते आंख लग गयी.. जब आंख खुली तो मैं इलेक्ट्रोनिक सिटी में आ चुका था.. मतलब बैंगलोर में घुस चुक थ.. थोड़ा सुकून मिला कि चलो बैंगलोर फहूंच गया.. लगभग 7.30 सुबह में मैजेस्टिक(बैंगलोर का प्रमुख बस अड्डा) भी पहूंच ही गया..

नया दिन नई शुरूवात.. अब कल की सारी बातें भूतकाल में जा चुकी थी.. और बैंगलोर पहूंचते ही मुझे काफी सुकून मिला.. काफी रिलैक्स महसूस करता हूं.. मैं लोकल बस स्टैंड कि तरफ बढ गया.. लोकल बस लेने के लिये.. मुझे यहां से बनसंकरी थर्ड स्टेज जाना था.. बस मिल गई.. मैं बैठ गया.. और बस चल भी पड़ी.. मैजेस्टिक से बनशंकरी बस 25-30 मिनट लगते हैं.. सो 8.10 के लगभग मुझे घर पर होना चाहिये था.. पर होनी को कुछ और ही मंजूर था.. और मेरा बैड लक अभी तक चालू था.. लगभग 5 मिनट चलने के बाद ही बस के गियर ने काम करना बंद कर डिया.. बेचारे ने बहुत कोशिश की.. पर कैसे ठीक होता मैं जो थ बैठा हुआ उस बस में.. मुझे मन में काफी हंसी आई.. खैर बस से उतर गया.. सोचा औटो ले लूं.. पर यह सोच कर कि औटो में क्यों पैसा बरबाद करूं.. सो वापस बस स्टैंड जाकर दूसरी बस ले लेता हूं.. मैं वापस बस स्टैंड गया.. पर अफ़सोस कोई बस नहीं थी.. सिर्फ एक ही नंबर 45B सीधे वहां तक जाती है और वो बस नहीं थी.. खैर कोई बात नहीं, मैंने ये सोच कर एक डूसरे नंबर की बस में बैठ गया जो बनशंकरी के पास मुझे उतार देती और वहां से मैं औटो ले लेता.. यह सोचकर मैं बैठ गया उसमें..

And thanks to God अब इस बस में कुछ नहीं हुआ और उसने मुझे BDA COMPLEX जहां मुझे उतरना था, उतार दिया.. अब बारी थी औटो लेने की.. 4-5 औटो खड़े थे.. मैंने एक-एक करके पूछा.. जिसने सबसे कम बोला मैं बैठ गया और औटो चल पड़ी.. मुश्किल से 15 मिनट का रास्ता था यहां से लेकिन लगभग 7-8 मिनट के बाद औटो रुक गयी.. मैंने पूछा क्या हुआ भाई? उसने कहा कि कुछ नहीं सर गैस खत्म हो गया है..(Not again) अभी चेंज करता हूं.. जान में जान आयी की उसके पास एक्स्ट्रा सिलेंडर था.. और वो उतर कर पीछे चला गया सिलेंडर बदलने.. काफी समय हो गय मगर वह वापस नहीं आया.. मैं भी उतर गया देखने के लिये कि इतना समय क्यों लग रहा है.. पीछे देखा.. That was Unbelievable.. I was just Shocked.. औटो वाला नीचे जमीन पर पड़ा था.. और उसके मुंह से कुछ लिक्विड निकल रहा था या कहें तो थूक निकल रहा था.. पूरा शरीर उसका बुरी तरह हिल रहा था.. मैं घबरा गया.. मुझे समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूं.. ऐसा मेरे साथ दूसरी बार हो रहा था.. पहली बार कब हुआ था ये कहानी फिर कभी..

आस पास कोई था भी नहीं.. सुबह का समय था.. मैंने उसे हिलाया डुलाया.. लेकिन सब बेकार.. उसका कांपना लगातार जारी रहा.. अब तक मुझे ये समझ में आ चुका था कि इसे मिरगी का दौरा पड़ा है.. लेकिन मैं क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा था.. मेरे पास जो पानी था मैंने उसके चेहरे पर डाल दिया लेकिन कोई असर नहीं हुआ.. तब तक एक अंकल आते दिखे.. जौगिंग कर रहे थे वो.. मैंने उनसे मदद मांगी और उन्होंने बताया कि Epilepsy का केश है.. and see the Coincedence अरे नहीं वो डा.नहीं थे.. लेकिन उनका बेटा डाक्टर था.. उन्होंने मेरे फोन से अपने बेटे को कॉल किया.. उसने क्या कहा मुझे नहीं पता लेकिन उसके बाद अंकल ने उसे गोबर सुंघाया.. तब तक उनका बेटा भी आ गया.. और औटो वाले को होश भी आ गया थ..

उनके बेटे ने उसे कुछ टैब्लेट्स दीया.. फिर वो लोग कन्नड़ में आपस में बात करने लगे.. मुझे काफ़ी थैंक्स बोला.. औटोवाले ने तो हद ही कर दिया था.. फिर मैंने कहा यार मैं अब जाता हूं.. अब तक वो पूरी तरह नॉरमल हो चुका थ.. लेकिन औटोवाले ने बहुत जोर दिया कि वो मुझे घर तक छोड़ देगा.. और काफ़ी मना करने के बाद भी वो नहीं माना.. और एक बार फिर मैं औटो में बैठा और घर के तरफ निकल पड़ा.. वो अंकल और उनके बेटे ने भी काफी आभार प्रकट किया..

रास्ते भर औटो वाला थैंक्स बोलता रहा और बताया कि उसे कभी-कभी ये प्रोबलेम होती रहती है.. खैर लगभग 9.30 में मैं घर पहूंच गया.. जब औटो वाले को पैसा देने लगा तो उसने इंकार कर दिया लेने से.. लेकिन अंततः मैंने उसे पैसा दे ही दिया और मैं घर पहूंच गया..

4 comments:

  1. दुर्घटनाओं की श्रंखला मे से बच के निकल आने वाले को बधाई और निकालने वाले को शुक्रिया।

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  2. प्राशात भाई इस पर तो एक फ़िल्म बन सकती है, बहुत ही मजेदार, चलिये घर तो पहुच गये.
    धन्यवाद

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  3. जी हां राज जी.. आपने सही कहा.. मैंने भी अपने मित्र अमित को यही कहा था कि तुम अपनी कहानी कह रहे हो या किसी फिल्म का स्क्रिप्ट सुना रहे हो? :)

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  4. दिलचस्प दास्तान!

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