ग्रैजुएशन मे नया नया एडमिशन लिया था.. कक्षा बहुत कम जाता था.. उस समय का उपयोग आवारागर्दी कि लम्बी कहानियां लिखने में करता था या फिर बस कुछ फालतू के कार्यों के लिये.. कक्षा ना जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि जो कुछ भी सिलेबस में था उसमें मुझे लगता था कि मेरे लिये कुछ भी नया नहीं है.. मित्रों कि संख्या भी बहुत सीमित थी.. अगर कभी गलती से सुबह वाले क्लास से कुछ समय पहले पहूंच गया तो मनोज को पहले से वहां पाता.. कुछ औपचारिकता होती और बस इतना ही.. धीरे-धीरे औपचारिकता मित्रता में बदलने लगी.. एक ही कक्षा में थे सो आपस में पढाई को लेकर होड़ भी लगती, मगर हमेशा मित्रवत प्रतिस्पर्धा ही रही..
हमारी मित्रता कैसे प्रगाढ मित्रता में बदली यह पता नहीं.. क्योंकि ऐसा किसी एक दिन में नहीं होता है.. इसके ऐसा होने के लिये एक-एक पल के हजार लम्हों के संयोग की जरूरत होती है.. सुख-दुख में बराबर की भागीदारी होने की जरूरत होती है.. अब अपने जिंदगी रूपक डायरी के पुराने पन्नों को पलटता हूं तो लगता है कि हमेशा उसने मेरा साथ मुझसे ज्यादा दिया.. इस मामले में मैं कहीं दूर तक नजर भी नहीं आता हूं.. शायद यही एक ऐसा कारण है जिसके कारण मैं इससे इतना ज्यादा जुड़ा हुआ हूं..
मेरा ऐसा मानना है कि अगर आपके जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति आता है जो बिना किसी स्वार्थ के और बिना किसी वजह के आप पर सब कुछ लुटाने को तैयार रहता है और आप उस व्यक्ति को सही समय पर नहीं पहचान पाते हैं और उसे खो देते हैं, तो यहां खोने के लिये उस व्यक्ति के लिये कुछ भी नहीं होता है.. अगर कुछ खोते हैं तो आप ही.. और सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऐसा व्यक्ति आपके जीवन में एक ही बार आता है.. हो सकता है कि उससे अच्छे लोग आपको मिल जायें जो कि अपने आप में एक मिशाल हो.. बहुत अच्छे मित्र भी आपको मिल जायें.. मगर बिना किसी स्वार्थ के आपके लिये कुछ भी और किसी भी हद तक करने को तैयार रहने वाला मित्र आपको एक ही बार मिलता है..
मेरे लिये अच्छी बात तो यह है कि मैंने अपने जीवन में ऐसे व्यक्ति कि पहचान सही समय पर कर ली.. अपने कुछ मित्रों कि तरह देरी नहीं कि..
यह पोस्ट मैं यहीं खत्म करता हूं.. इसके बारे में मैं समय-समय पर लिखता रहूंगा.. क्योंकि एक पोस्ट पूरा नहीं है इसके लिये.. सही कहूं तो मैं इसके बारे में जितने पोस्ट चाहूं उतने लिख सकता हूं.. हजारों उन लम्हों के बारे में जो हमने साथ बिताये.. खुशी के मौके.. गम का शमां.. गंगा किनारे बिताये गये क्षण.. आवारागर्दी करते हुये पटना की सड़कों कि खाक छानने का समय.. नाला रोड, मछुवा टोला, राजाबाजार, राजेन्द्रनगर, कंकड़बाग, बोरिंग रोड, शास्त्रीनगर और भी ना जाने कहां कहां.. क्लास में कि गई शैतानियां.. दिल्ली में गुजारे गये गये खुशगवार पल.. तो वहीं बिताये गये मायूस पल भी.. सिर्फ शीर्षक ही लिखूं तो 2-3 पोस्ट बन जायेंगे..
चलिये यह फिर कभी..
अच्छा लगा मित्र के बारेमें बहुत ही थोडा सा जान कर आगे ज्यादा की प्रतीक्षा में ।
ReplyDeleteचलिये, शुरू किया आपने परिचय देना। अच्छा लगा।
ReplyDeleteपरिचय की शुरूआत अच्छी है। रहस्य का वातावरण तो बन ही गया है। आगे इंतजार है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ! आगे लिखिए ! इंतजार है !
ReplyDeleteहमें भी अच्छा लगा.
ReplyDeleteऐसे ख़ास मित्र हैं तो जीवन है.
ReplyDeleteकुछ दिन पहले मैंने अपने मित्र मनोज कि लिखी हुई एक कविता ठेली थी...
ReplyDeleteबस... हा...हा..हा...