कल से पूरे भारत में धुम्रपान संबंधित कई तरह के नये नियम लागू किये गये.. उसका असर मुझे अपने घर के आस-पास भी देखने को मिला.. सुबह-सुबह अपनी बाल्कनी से झांका तो मुझे एक पुलिसवाला पार्किंग स्थल पर घूमता हुआ मिला जो लगभग हा 1 घंटे पर आकर झांक जाता था.. वैसे यह दोपहर 12 बजे तक ही दिखा.. उसके बाद उसी पार्किंग में लोग सिगरेट पीते हुये दिखे.. भारत में नाना प्रकार के कानून बनाये गये हैं, मगर कितनों का पालन अच्छे से होता है? चलिये मैं धुम्रपान से संबंधित अपने अनुभव सुनाता हूं..
अनुभव एक -
पिछले साल कि बात है.. मैं अपने घर के पास वाले एस.बी.आई. के ए.टी.एम. से पैसे निकालने के लिये गया.. वहां लम्बी कतार लगी हुई थी.. मुझसे दो आगे एक विदेशी भी था.. वो लगातार सिगरेट पिये जा रहा था.. चूंकि मैं सिगरेट पीता था सो मुझे कोई परेशानी नहीं थी, मगर मैंने देखा कि आस-पास के लोगों को खास करके महिलाओं को परेशानी हो रही है मगर विदेशी होने के कारण संकोच से कोई भी उसे कुछ नहीं बोल रहा था.. मैंने उसे बोला इसे बंद करने के लिये.. उसने अनसुना कर दिया और पीता रहा.. मैंने देखा कि गार्ड भी कुछ नहीं बोल रहा था और मजे ले रहा था.. फिर वो वैसे ही सिगरेट पीते हुये ए.टी.एम. के अंदर चला गया.. अब मैंने गार्ड से पूछा कि क्यों कुछ नहीं बोले उसे? वो हिंदी या अंग्रेजी नहीं समझने कि बात इशारों में कह कर कुछ नहीं किया..
अब तक सारे लोग बस तमाशा देख रहे थे.. मैं पूरे मूड में आ चुका था.. मैंने भी अपनी सिगरेट निकाली.. और उसे जला कर पीने लगा.. अब गार्ड मुझे घूरने लगा.. जब मैं ए.टी.एम. के अंदर जाने लगा तो उसने मुझे इशारों में टोका अंदर नहीं पीने के लिये.. अब वहां सारे लोग उससे लड़ने लगे.. कि जब ऐसा ही था तो उस विदेशी को कुछ क्यों नहीं बोले? खैर मैंने सिगरेट बुझाई, अपने पैसे निकाले और चला गया वहां से, दिल में खुश होता हुआ कि कुछ गलत को होने से रोकने कि कोशिस तो की मैंने..
अनुभव दो -
बहुत पहले कि बात है.. ठीक-ठीक याद नहीं कि वो संपूर्ण क्रांती एक्सप्रेस थी या दानापुर-हावड़ा.. ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार से भागी जा रही थी.. रात के लगभग बारह बज रहे थे.. मैं ए.सी. टू टीयर में था शायद.. मैं सोने से पहले बाथरूम जा रहा था, तो मैंने देखा कि एक लड़का दरवाजा खोल कर सिगरेट पी रहा है.. मुझे भी सिगरेट पीने कि इच्छा हो आई.. थोड़ी देर बाद उस लड़के की जगह मैं था.. उसी तरह धुवें के छल्ले उड़ाता हुआ.. तभी वहां से टी-टी गुजरा.. उसने मुझे देखा और कहने लगा कि फाईन होगी.. मैंने कुछ कहा नहीं बस अपना सिगरेट का पैकेट निकाल कर उसे भी पीने का ऑफर कर डाला.. वो कभी मुझे देखता और कभी सिगरेट को.. फिर मुझे बुला कर अलग से ले गया.. बैठाया और एक सिगरेट मुझसे लेकर पीने लगा.. कहने लगा कि बहुत दिनों बाद मार्लबोरो सिगरेट देख रहा है.. बहुत देर तक मेरा दिमाग चाटता रहा.. मुझे लग रहा था कि यह मुझसे फाईन ले लेता वही अच्छा होता.. :)
एक और अनुभव मैंने बहुत पहले लिखी थी.. उसे आप यहां पढ सकते हैं..
धुम्रपान बुरा है स्वास्थ्य के लिए। इसे त्याग दें। खुले स्थान पर कोई भी धुम्रपान कर सकता है। कानून में मनाही नहीं है।
ReplyDeleteजो चीज इस्तमाल करने से शरीर व दुसरों को किसी भी प्रकार क नुक्सान पहुँचाती है उसे छोड़ देना ही समझ दारी है।
ReplyDeleteदिलचस्प संस्मरण है...स्वयं भी सिगरेट छोड़ने की प्रक्रिया में हूं....आपसे भी अनुरोध कर सकता हूं :)
ReplyDeleteअच्छा संस्मरण सुनाया आपने ! धन्यवाद !
ReplyDeleteसंस्मरण बहुत अच्छा लगा ! और मैं तो सिगरेट पीता ही नही !
ReplyDeleteतो अपने को फाइन की क्या चिंता ?
हम तो पैसिव स्मोकर के रूप में भुक्त भोगी रह चुके हैं!
ReplyDeleteअरे भई, अगर आप पहले ही उसको फाइन दे देते, तो शायद आपको इतनी "प्रताडना" न झेलनी पडती।
ReplyDeleteक़ानून बनने के बाद तो पालन करवाने वालों की तो और बल्ले बल्ले हो जायेगी .
ReplyDeleteआहा पहला अनुभव मजेदार रहा आपका .......हमने भी जिस दिन कानून बना रेलवे स्टेशन पर एक पुलिस वाले से पूछा की क्यों भाई यहाँ पी सकते है ....उसने एक सिगरेट मांगी बोला अब पी सकते हो......
ReplyDeleteoho! mazedaar raha ye kissa...tum bhi marlboro peete ho...isse juda ek kissa hai, kabhi sunayenge.
ReplyDelete:)
ReplyDeleteनमस्कार...|
कल शेखर सुमन जी के एक फेसबुक स्टेट्स से आपके ब्लॉग तक पहुँचा...और आपको पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा...और आपकी लेखनी तो बस कमाल की है...सो आपके कलम का कायल होना लाजिमी था...|
आपके इस छोटी सी दुनिया को अपने रीडिंग लिस्ट में डाल रहा हूँ |
सादर |