Wednesday, October 15, 2008

मत पढिये इसे, सब बकवास लिखा है

आज 2-3 शीर्षकों के ऊपर मैं चर्चा करना चाहूंगा जिसके बाद बुद्धिजिवी वर्ग के प्राणी बहस तक कर सकते हैं कि क्या इस तरह की चिट्ठाकारी को आप साहित्य का दर्जा दे सकते हैं? और उन लोगों का भ्रम भी टूटेगा जो चिट्ठाकारिता को एक साहित्य के रूप में सामने रख कर पढने कि नाकाम कोशिश करते हैं.. तो चलिये चलते हैं पहले बकवास की ओर..

कौवा क्या सोचता होगा?

क्या अजीब शीर्षक है ना? मगर आपने कभी सोचा है कि इतनी जगह से दुत्कारे जाने के बाद भी वो आपके द्वार पर दुबारा क्यों आता है? क्या उसके मन में रोष जैसी भावना नहीं आती होगी? कभी कोई प्रेमिका अपने प्रीतम की याद में(साठ के दशक वाले स्टाईल में सोचे तभी कल्पना कर सकते हैं) किसी कौवे से प्राथना करती दिखेगी तब उस समय एक कौवा क्या सोचता होगा?

बहुत पहले की बात है.. हमने घर में हमने एक तोता पाला था.. बहुत प्यार से.. मेनका गांधी से भी छुपा कर.. एक जाड़े की नर्म धूपा में(कुछ याद आ रहा है क्या? हां जी गाना.. या जाड़े की, नर्म धूपा में.. आंगन में लेट कर.. अर्रर्र.. मैं विषय से भटक रहा हूं, अगर कहीं विषय जैसी कुछ चीज होगी तो..) हम उसका पिंजड़ा रख छोड़े थे.. तभी एक कौवे ने आकर उसे बहुत परेशान किया.. तभी हमें कौवे की एक बात पता चली.. हमारा तोता बेचारा, जब तक वहां कौवा था तब तक कौवे की भाषा में बोलता रहा.. पहले तो हमें लगा कि तोता परेशान होकर कांय-कांय चिल्ला रहा है सो उस कौवे को मार कर भगा दिया.. बाद में खूब सोचा तब जाकर महसूस हुआ कि वो बेचारा तड़प रहा था कौवे से बात करने के लिये.. इतना ज्यादा बेचैन था कि वो सुध-बुध खोकर भूल बैठा कि वो तोता है, कौवा नहीं.. और उसी की भाषा में बोलने लगा.. बाद में पाया कि रात में कभी किसी बिल्ले ने आकर तंग किया तो भी कौवे की भाषा में पुकारता था.. कांय-कांय.. नेवला परेशान करे तो भी वहीं भाषा.. कांय कांय..

मन में आया कि कहीं मैकाले की कोई प्रजाति कौवे में भी तो नहीं थी जिसके कारण मेरा तोता अपनी भाषा का सम्मान करना छोड़कर अंग्रेजों.. आं.. माफ किजियेगा कौवे की भाषा में बोलने लगा है..(कॄपया यह प्रश्न ना उठायें कि कौवे अंग्रेज कब से हो गये या फिर अंग्रेज कौवे कैसे.. एक काला और दूजा गोरा.. दोनो में समानता कैसे.. भई हम ब्लौगरों का यही काम ही होता है.. जो चाहे सिद्ध कर सकते हैं.. वैसे भी भई मेरा चिट्ठा है, मेरा लेख है.. जो मन में आये लिखूंगा).. ;) फिर मैंने सोचा कि जब यही कौवा इतना अच्छा है तो क्यों ना कौवा ही पाल लिया जाये.. वैसे भी एक दिन मेरा तोता पिंजड़े से संन्यास लेकर निकल भागा.. अब संन्यास से फिर कुछ याद आ रहा है.. गांगुली.. अजी क्या बतायें हम.. हमको कितना अच्छा लगता है.. वो भी संन्यास ले लिये हैं..

उस दिन से अब तक प्रतिक्षा में हैं कि कब कोई कौवा उस पिंजड़े में आकर बैठता है.. मगर उसकी प्रजाति में गुलाम होना नहीं लिखा है.. सो अब क्या करें.. देखिये.. आपने तो मुझे विषय से ही भटका दिया था.. विषय था कौवा क्या सोचता होगा? मैंने बहुत सोचा और अंततः समझ भी गया.. वो सोचता होगा "कांव-कांव".. अगर मैं गलत हूं तो साबित करके दिखायें.. :D

चलिये अब दूसरे बकवास की ओर चलते हैं.. क्या अभी भी आपमें इतनी उर्जा बची हुई है कि दूसरा बकवास भी पढेंगे? अगले पोस्ट का इंतजार तो कर लें.. :)

10 comments:

  1. मना करने पर भी पढ़ गए। पर इस में भी काम की बातें तो थीं ही।

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  2. मना करने के बाद भी पढा और हिम्मत देखिये की अगली पोस्ट का इंतज़ार भी करेंगे।

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  3. आप लिखते रहिये ! हमें मजा आया ! अगले को भी चाव से पढेंगे !

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  4. मजेदार

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  5. ये लो ! हमें लगा की हमीं आजकल अपने पोस्ट को बकवास कह रहे हैं... :-)

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  6. bahut badhiya.. kaunwe ki kaanv kaanv badhiya rahi.. aur uski videshi bhasha bhi.

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  7. थाली में मुर्गे की लाश है, पौधों में फुल की तलाश है, सागर में जल की प्‍यास है, सोचा था ऐसी टि‍प्‍पणी दूँ जो लगे कि‍ बकवास है, पर लगता है आपकी तरह मैं भी गड़बड़ा गया।

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  8. हम तो इसमें बकवास ढूंढते रह गए...
    अगली का इंतजार है, शायद वहीं मिले !!!!

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