कल मैं अपने एक मित्र को छोड़ने चेन्नई हवाई अड्डे गया था। मैं अपने मित्रों से थोड़ा पहले ही पहूंच गया था सो मुझे थोड़ा समय मिल गया और मैं उस समय को वहां के लोगों के हाव-भाव को पढने में खर्च करने लग गया। थोड़ी देर इधर-उधर देखने पर मैंने पाया की एक विदेशी महिला और एक विदेशी पुरूष हवाई अड्डे के प्रांगण में सुट्टे पर सुट्टा उड़ाये जा रहें हैं और बगल में ही स्पष्ट रूप से एक चेतावनी लिखी हुई थी, "NO SMOKING ZONE." लेकिन वे दोनों ही इस चेतावनी से बेमतलब-बेपरवाह अपना काम किये जा रहे थे। सुरक्षाकर्मी भी वहां से गुजरते हुये उन्हें नजर-अंदाज किये जा रहे थे। और उस समय मैं सोच रहा था कि इनके जगह पर मैं या कोई अन्य भारतीय नागरीक यहां धूम्रपान करता होता तो अभी तक यहां बवाल मच चुका होता।
वहीं पर मैंने एक और बात देखी। मैं वहां अपने जिस मित्र को छोड़ने के लिये गया हुआ था वो इधर कुछ दिनों से बीमार चल रही थी और इसी वजह से उसका चेहरा बुझा हुआ था और उसने लगभग मुड़े-सुड़े वस्त्र पहन रखे थे। जब वो सुरक्षा जांच से गुजर रही थी तब सुरक्षा कर्मी उसे ऐसे देख रहे थे मानो उसके लिये वहां कोई जगह ही ना हो क्योंकि उसे उस समय देखकर ऐसा नहीं लग रहा था की उसकी माली हालत हवाई यात्रा करने के लायक है। ये देखकर तो यही महसूस हुआ कि आदमी की पहचान बस उसके कपड़ों से ही होती है।
चेन्नई हवाई अड्डा गूगल से
इन सब चीजों को देखकर मैंने यही सोचा कि भारत का तो पता नहीं पर इंडिया अभी भी फिरंगियों के हाथों गुलाम है।
acha mudda uthaya hai apney.....ek kadva zehar.....sach kya kannun sirf bhartiyo key liye hai..ya ..aaj bhi hum unkey agey gulam hai..
ReplyDeleteहम लोगों में हीन भावना इतनी हो गई है कि यदि तलुवा गोरा हो तो कभी भी, किसी का भी, चाट लें.
ReplyDeleteहिन्दुस्तान में काले अंग्रेजों की फौज तय्यार करने के लिये मेकाले का कुचक्र इतना सफल हुआ कि अंग्रेज चले गये लेकिन उनकी आराधना अभी भी होती है.
एक 1857 पुन: आरंभ करने का समय आ गया है -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
सही है। गुलामी मन से अभी गयी नहीं।
ReplyDeleteकरीब 4 माह पूर्व मैं अपने पिताजी की अस्थियां विसर्जित कर पंजाब से वापस लौट रहा था. रास्ते में सफर के दौरान मुझे डायरिया हो गया. आगरा स्टेशन पर सुबह के वक्त कुछ दवाइयों की तलाश में भटक रहा था तभी देखा दो तीन फिरंगी प्लेटफॉर्म पर सिगरेट पी रहे हैं. मैने सहज भाव से उन्हें बताया कि यह नो स्मोकिंग एरिया है और वे कानून का उल्लंघन कर रहे हैं. इस पर एक पुरुष ने सॉरी बोल कर अपनी सिंगरेट बुझा दी लेकिन दूसरा अड़ गया और मुझसे कहने लगा कि मैं कौन होता हूं रोकने वाला. मैने कहा, मैं कोई नहीं हूं पर जो गलत है सो है इसलिए बताना पड़ा. उसने बवाल खड़ा कर दिया और रेल पुलिस के जवानों को बुला बैठा. समस्या ये हुई कि वे अंग्रेजी नहीं समझ पा रहे थे और मुझसे ही पूछने लगे कि गोरा क्या कह रहा है. तभी उनके इंचार्ज ने आकर पूरी बात सुनी और बजाए गोरो से कुछ कहने के, उल्टा मुझे नसीहत देने लगा कि मैं क्यों विवाद कर रहा हूं. मुझे बहुत वितृष्णा हुई जब उसने कहा कि वे तो विदेशी हैं और हमारे मेहमान हैं. अंत में मुझे कहना पड़ा कि या तो उस गोरे से सिगरेट फेंकने को कहो या मैं भी यहीं खड़े होकर सिगरेट पीता हूं. आप यकीन नहीं करेंगे इंस्पेक्टर फौरन मुझे भी सिगरेट पीने की सलाह देकर वहां से रुखसत हो गया. बहरहाल बाद में अपने साथी के कहने पर दूसरे गोरे ने भी सिगरेट फेंक दी.
ReplyDeleteकहना सिर्फ यह चाहता हूं कि यह गुलामी की मानसिकता हमारे समाज की प्रवृत्ति बन चुकी है और इसे खतम करने के लिए भी उतना ही संघर्ष करना पड़ेगा जितना गोरों को भगाने के लिए करना पड़ा था. लंबी टिप्पणी के लिए माफी चाहता हूं. आपकी बात पढ़कर बरबस यह घटना याद हो आई.
अरे कहाँ PD, कह रहे थे कि मैने अर्से से टिप्पणी नहीं की। टिप्पणी तो है ऊपर!
ReplyDeleteजनाब, जहाँ तक धुम्रपान की बात है तो मैंने भारतीयों को भी "धुम्रपान निषेध" क्षेत्र में धड़ल्ले से धुम्रपान करते देखा है और कोई उनको कुछ नहीं कहता। इसलिए इस वाकये में मैं नहीं समझता कि गोरी-काली चमड़ी का फर्क है, लेकिन इस बात को भी नहीं नकारूँगा कि गोरी चमड़ी के फिरंगियों को वीआईपी ट्रीटमेन्ट दी जाती है औकात चाहे उनकी चार पैसे की न हो!!
ReplyDeletesab kooch sahi likhaa yaa rbas teri 1 galti hai jab tunee vaha dekhaa ki "no smoking" board hai to tunee jaa ker kyoo nahi manaa kiaaa. or mai damm sure hu ki agar tu manaa kerta or unko bolta ki pls smoking place per smoke karee to vo tourist kabhi bhi vahaa per smoke nahi kerteee. teree ko jaa ker mana kernaa chaahiyee thaa bhaii. yee hamaraa ferz hai ki jo hiit kee liyee achaa nahi hai to usko hum dusroo per naa chad kae balki hummee hi kernaa chahiyee jaise ki tunee yee smoking vali baat uss corp kee upper chod dii vo tumhaari bhi duty thi ki tum jaa ker unn logo ko manaa ker saktee theee. kooch duty hamari bhi hoti hai office kee bahar vo humee hi kernaa chahiyee humee dusree ko nahi dosh denaa chaahiyee jaisee ki tunee is blog mai corp kee liyee bolaa.
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