घर जाता हूं तो लगता है जैसे दोस्तों का साथ धीरे-धीरे, बिना कुछ कहे, एक मूक सहमति के साथ छूटता जा रहा है.. आफिस आता हूं तो चाहे जितना भी काम कर लो.. 8 घंटे के बदले 14 घंटे काम कर लो.. जितना काम हर हफ्ते दिया जाता है उससे ज्यादा काम कर लो, फिर भी बॉस का बस यही कहना होता है की "I'm not satisfied with your work"..
कभी-कभी सोचता हूं की अच्छा ही है जो पापा-मम्मी कभी पलट कर मेरे पास नहीं आते हैं.. कम से कम उन्हें तो ये भ्रम बना होता है की "मेरा नालायक बेटा अब लायक हो गया है.. अभी भी यही सोचते हैं की Prashant is the best.."
भ्रम के साथ जीना भी अच्छा होता है.. कभी-कभी....
कल यही यादे बन जायेगी . कल आने वाली दुनिया को झेलने के काबिल यही खडूसबास आपको बना कर जायेगा , चिंता मत कीजीये लगे रहिये , आप दुनिया मे हर किसी को खुश नही कर सकते जी ,लेकिन कोशिश नही छोडनी चाहिये , यही कर्म है बाकी की गीता बाबा फ़रीदी के आश्रम मे आकर खरीद सकते है :)
ReplyDeleteन न अभी से मत घबराए अभी तो जिंदगी की शुरुआत है जी आपकी :) जिंदगी ही भ्रम है एक ....अरुण जी की बात पर गौर फरमाए :)
ReplyDeleteसच तो यही है कि जीवन के उतार-चड़ाव ही हमें आगे बढनें मे मदद करते हैं।हर पल बदलाव हो रहा है ।इस लिए चिंता नही करनी चाहिए।
ReplyDeleteपंगेबाज अरुण के आगे में कहता हूं...जहां तक सवाल है ऑफिस का तो वो तो बारात के जैसा है जहां हर किसी को खुश कर पाना मुमकिन ही नहीं। बहुतों को झेलते हो यार दिन भर उस बॉस से लेकर ना जाने कितने चाटुओं को तो दो चार को तो चाट ही सकते हो...। जिंदगी ही भ्रम है...।
ReplyDeleteनीतीश भाई को आगे बढ़ाते हुए कहता हू की इस बारात में अपने दोस्तो को पहचान लो.. जो निस्वार्थ भाव से तुम्हारे साथ है.. बाकी सब बढ़िया..
ReplyDeleteएकला चलो रे.....बस ये याद रखना ...बाकि सब जीवन की मुश्किलें तो आती जाती रहती है...
ReplyDeleteये परमसत्य है। इससे मुंह नहीं मोडा जा सकता।
ReplyDeleteप्रशान्त लगता हे आज बहुत उदास हो, अरे भ्र्म मे जीना ठीक नही जब हकिकत सामने आती हे हे तो बहुत ठेस पहुचती हे, बस हकिकत मे जीना सीखो,आगे आगे यह दुनिया, यह साथी, यह खडुस बोस सब सिखा दे गे दुनिया मे जीना, फ़िर तुम अपने बच्चो से कह सको गे मेने यह बाल धुप मे सफ़ेद नही किये हे, उठो ओर नये जोश से फ़िर दिखा दो हम भी कम नही,अजी अभी तो पहली सीढी भी नही चढी जिन्दगी की ओर घबरा गये, शेर बनो
ReplyDeleteये एहसास है जो समय-समय पर उभरना चाहिए. छोटे-छोटे अचीवमेंट अगर ये एहसास उभरते रहेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा.
ReplyDeleteऔर मेरा विश्वास है कि दिन में कम से कम एक बार अपने मन में बोलेंगे ही कि आई ऍम द बेस्ट.
ऐसी छुटपुटिया घटनाओं से हताशा को न हाबी होने दो..दिल खोल कर आगे बढ़ो पूरे आत्म विश्वास से.
ReplyDeleteहम तो तहे दिल से मानते हैं जी कि
ReplyDelete"Prashant is the best"..
वो क्या है कि
"मन चंगा तो कठौती में गंगा"