जब मैं कालेज में था तब मुझे वेल्लोर में सी.एम.सी. के सामने एक बंगाली होटल का रसगुल्ला बेहद पसंद था और बिना किसी कारण के भी मैं अक्सर वहां जाकर 4-5 रसगुल्ले खाकर आ जाया करता था.. वेल्लोर सी.एम.सी. मेरे कालेज से लगभग आधे घंटे की दूरी पर है.. आधा घंटा जाना और आधा घंटा आना भी उस रसगुल्ले के लिये अखरता नहीं था..
जब मेरा ना जाना तय हो गया तब मैंने सोचा की विकास को बोल दूं कि अगर उस तरफ जाओगे तो मेरे लिये रसगुल्ले लेते आना.. और मुझे पता था की वे लोग उधर जायेंगे ही.. मगर ना जाने क्या सोचकर संकोच कर गया.. मन में एक बात आयी की कहीं वो मना ना कर दे.. कहीं ये ना कह उठे की "जिसे खाना है वो चले.." दूसरी बात.. वाणी की स्कूटी मेरे घर पर ही लगी हुई थी और शाम में मुझे शॉपिंग करने जाना था.. सोचा की क्यों ना उससे स्कूटी की चाभी ले लूं.. आने जाने में काफी आराम हो जायेगा.. मगर इस बार भी संकोच कर गया.. ना जाने क्या सोचकर..
खैर मैं इस संकोच का कारण जानने को उत्सुक नहीं हूं.. संकोच के कुछ कारण मुझे पता है और कुछ नहीं.. बस मेरे मन में एक बात आयी थी जिसे मैंने बस यूं ही लिख दिया..
बोल ही देते.... कम से कम पता चल जाता....R they real frnds or nt? वैसे एक बात और अगर मना कर भी देते तो यह कहना मेरे लिए मुश्किल होता की वो आपके पक्के दोस्त नही हैं... यह बात तो खुदा या फ़िर आपका दिल जानता होगा...
ReplyDeletethik kaha rajesh jee ne bol hi dete..
ReplyDeleteयूँ इतने अज़ीज़ दोस्तों से तो आपको संकोच होने का कारण नहीं है पर हो सकता है कि उस समय आप मन के किसी और भी दौर से गुज़र रहे हों.
ReplyDeleteअरे यार पीडी, बोल ही डालते...
ReplyDeleteबस यूँ ही पता तो चल जाता...
यार रस्गुल्ले खा ही आओ दो फ़ालतू खालेना , मेरे नाम के भी
ReplyDeleteभाई ऎसा करो आप खुद ही जा आओ ओर खुब खा लो २,४ किलो हमे भी भेज दो, देखे तो सही क्या सच मुच मे इतने स्वादिष्ट हे.
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