Wednesday, August 20, 2008

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता

यूं तो यह एक हिंदी सिनेमा का एक गीत भर है मगर मानो पूरे जीवन-दर्शन को अपने मे समेटे हुआ है..

कल रात नींद नहीं आ रही थी.. रात काफी हो चुकी थी.. सो कोई बात करने को भी नहीं था.. नेट पर घूम-घूम कर बोर भी हो चुका था.. बस यूं ही अपना मोबाईल उठा कर कांटैक्ट लिस्ट के सभी नंबर को पलटने लगा.. पाया ढेर सारे नंबर अब मेरे किसी काम का नहीं है फिर भी वो मेरे मोबाईल में अपनी जगह बनाये हुआ है.. मुझे एक समय बिताने का साधन मिल गया.. एक एक करके सभी नंबर को चेक करना और अगर किसी काम का ना हो तो बस उसे डिलीट करना.. एक काम मिल चुका था मुझे.. एम. ॠंखला वाले नंबरों को देखते हुये अचानक से मुझे एक ऐसा नंबर मिला जिसे देखकर मैं जैसे फ्लैश बैक में चला गया..

लगभग दो महीने पहले की बात है.. शाम होने वाली थी.. आफिस में बैठा काम कर रहा था तभी जीटॉक पर मेरे एक जूनियर ने पिंग किया.. "sir, maroof expired.."
अचानक से एक झटका सा लगा.. पहले तो मुझे लगा की कहीं वो मजाक ना कर रहा हो.. मैंने उसका नंबर लिया और उसे फोन किया.. वो बेचारों सी हालत में था.. ना बोला जा रहा था और ना ही रोया जा रहा था.. आफिस में बैठ कर वो और कर भी क्या सकता था? खबर सही थी.. मारूफ़ यूं तो कालेज में मेरा जूनियर था मगर चूंकि मेरे पापाजी के घनिष्ठा मित्र का पुत्र था और उम्र में मुझसे बड़ा भी, सो मैं हमेशा उससे मित्रवत व्यवहार ही रहा था.. मैं चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठ गया.. हार्ड ए.सी. में भी पसीने से भींग गया..

अभी कुछ ही दिनों में आई.बी.एम. ज्वाईन करने वाला था.. घर में सबसे बड़ा होने के कारण सबसे अधिक जिम्मेवारी भी उसी के उपर था.. बाद में जब अगले दिन पापाजी जब उसके जनाजे से वापस लौटे तब पता चला की अचानक से सुबह के समय सांस रूक गई और मां के गोद में ही शायद दम निकल गया.. पिछली बार जब पता चला था तो आंटी की हालत ठीक नहीं थी.. बस दो दिन पहले ही वो बैंगलोर से पटना वापस लौटा था.. शायद मौत उसे पटना लेकर खींच लाया था..

सोचा की मारूफ़ के जाने के बाद पहली बार पटना आया हूं.. मुझे लगा की मुझे जाना चाहिये उसके घर.. मगर मैं नहीं जा रहा हूं.. ना तो जाने का मन ही है और ना ही हिम्मत..

11 comments:

  1. मेरे छोटे भाई का देहान्त एक दुर्घटना में हुआ। उस के बाद से मुझे अस्पताल या जनाजे में जाने की हिम्मत नहीं होती।

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  2. मन तो नहीं करता मगर उसके परिवार वालों को संबल देने आपको जाना चाहिये उनके घर. सुख दुख के साथी ही दोस्त कहलाते हैं.

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  3. बहुत दूख हूवा।

    जाने वाले की कमी बहुत खलती है और जीवन भर वो याद आते हैं। और कभी कभी ऎसा मन मे आता है की कास वो फीर से मील जातें।

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  4. जाने वाले की सिर्फ याद ही रह जाती है और अचानक ऐसे जाने वालों का किस्सा सुनकरा एक डर हमेशा बन जाता है। सुन कर दुख हुआ।

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  5. बुरा लगा भाई... लेकिन इस पर किसी का कोई बस नहीं !

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  6. समीर जी की बात ठीक हे आप को जाना चाहिये, इस से उस के परिवार को थोडा संब्ल मोलेगा ओर आप भी थोडे ठीक हो जाये गे.खुशी मे चाहे मत जाओ, लेकिन इस समय...

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  7. हर व्यक्ति की कुछ सीमाए होती है.. शायद आपकी भी राहीः हो..
    हालाँकि आपकी पोस्ट का टाइटल महज एक हिन्दी फिल्म का गाना नही.. एक मुकम्मल ग़ज़ल है..

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  8. आपको जाना चाहिए भईया ...हर बात पर इन्सान का हक़ नही होता पर आपके जाने से उन्हें कुछ समय के लिए ही सही अच्छा जरुर लगेगा.

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  9. ये जीवन है दोस्त , जिससे आप इस क्षण हाथ मिला रहे है अगले पल वो या आप इस जहा मे ना हो कौन जानता है , इसे सामान्यता: लो और वहा जाना चाहिये आपको , बाकी आप ज्यादा उचित निर्ण्य ले सकते है.

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  10. यही जीवन है ओर इसी में से गुजरना है हमें ....

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  11. कभी-कभी ऐसे बहुत से विचार मन में आते हैं , काफी परेशान भी करते हैं पर जीवन यूँ ही चलता रहता है। एक भाव प्रधान लेख के लिए बधाई।

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