Monday, July 14, 2008

बदलते चेहरे

कल रात ऑफिस से निकलकर चल परा मैं माम्बलम रेलवे स्टेशन की तरफ.. ऑफिस से लगभग 1 किलोमीटर या उससे कुछ ज्यादा दूरी रही होगी.. एक ओवरब्रिज, उसके बगल में कुछ टूटा हुआ या कुछ तोड़ा गया.. पता नहीं जो भी हो, मगर अंदर प्लेटफार्म पर जाने के लिये एक रास्ता भर.. मुझे तो बस इसी से मतलब था.. चेन्नई के सबसे व्यस्त इलाके से गुजरते हुये पीछे कि तरफ से माम्बलम स्टेशन में प्रवेश किया.. जब नया-नया चेन्नई आया था तब माम्बलम का मतलब पता चला था "आम".. बाद में पता चला कि इसी नाम से एक स्टेशन भी है.. अच्छा लगा कि चलो एक स्टेशन के नाम का मतलब तो पता है..

कानों में मोबाईल का फोन लगा हुआ था और उस पर एफ.एम. रेडियो से कोई हिंदी गाना चल रहा था.. रात 8 से 9 तक किसी चैनेल पर हिंदी गाना आता है.. दो अलग-अलग गीत मुझे दो अलग-अलग लड़कियों कि याद में धकेल गया जो मेरी जिंदगी के पड़ाव में महत्वपूर्ण स्थान पा चुकी है.. माम्बलम स्टेशन पर टिकट लेकर ट्रेन का इंतजार करने लगा.. भीड़ बहुत ज्यादा थी.. सोचा कि क्या इससे भी ज्यादा भीड़ मुंबई में होती होगी? पता नहीं.. इससे ज्यादा भीड़ अगर कहीं रहे तो आदमी 1 इंच भी ना खिसक पाये.. माम्बलम चेन्नई का सबसे व्यस्त स्टेशनों में से एक है.. कारण टी.नगर, पोथी, नल्ली और सर्वणा स्टोर(इसके बारे में फिर कभी)..

माम्बलम से चेन्नई सेंट्रल की ओर बढते हुये अगला स्टेशन कोडमबक्कम.. जब भी यहां से गुजरता हूं तो गार्गी की याद एक बार जरूर आ जाती है.. ना जाने कितनी ही बार कभी उसे छोड़ने तो कभी उसे लेने तो कभी उसके साथ यहां से कहीं और जाने के आता था.. तब ये स्टेशन अपना सा लगता था, अब लगता है जैसे स्टेशन भी पराया हो गया है.. लोग पराये हो जाते हैं, समझ में आता है.. निर्जीव वस्तुयें भी कैसे परायी होती है, समझ के बाहर है.. जब गार्गी चेन्नई में थी तब अक्सरहां उससे सिरीयस वाली लड़ाई हो जाया करती थी.. 3-4 बात नहीं करते थे फिर पुनर्मुशको भवः हो जाता था..

उसके जाने के बाद अब गार्गी की याद आती है.. सोचता हूं कि फिर कभी किसी एक शहर में बसे तो कभी लड़ाई नहीं करूंगा.. मगर मैं जानता भी हूं की ऐसा नहीं होगा.. हमारी दिनचर्या फिर से वहीं हो जायेगी.. उसका कोलकाता वाला घर याद आता है.. उसकी मम्मी और नानी मां का प्यार से खाना खिलाना याद आता है.. उसके पापा का वो गिटार बजाना याद आता है जिसपर मैं जगजीत का कोई गजल गा रहा हूं.. फिर सभी एक झटके से गायब हो जाते हैं..

एक लड़की को यहां चढते हुये देखा.. शायद उत्तर भारत के किसी हिस्से में उसे देखता तो ध्यान भी नहीं देता.. मगर यहां उत्तरी भारतीय को देखकर सोच में पर जाता हूं.. क्या ये भी किसी कॉल सेंटर या साफ्टवेयर कंपनी में काम करती है? क्या इसे भी घर गये महीनों बीत गये होंगे? बेतरतीबी और उदासीन सा चेहरा.. एक सिंपल सी जींस और टी-शर्ट में.. लोग उसे ऐसे देख रहे थे मानों किसी चिड़ियाघर से भाग कर आ गई हो.. सोचा, जो कपड़े दिल्ली में बिलकुल सामान्य सा है वही यहां के लोगों को हजम नहीं होता है.. मन में 2-4 गालियां दी.. उसे इस सबसे कोई मतलब नहीं था.. वो तो शायद ट्रेन में थी भी नहीं.. चेहरा बता रहा था कि कहीं जल्दी से उड़कर पहूंच जाना चाहती थी वो.. एक पल में.. खैर मुझे इससे क्या? मैं मुंह फेरकर खड़ा हो गया..

ऐसे ही सोचते-सोचते नुगमबक्कम, चेटपेट कब गुजरा पता भी नहीं.. भीड़ का हुजुम एग्मोर में उतर गया.. बैठने के लिये जगह खाली हो गया.. सोचा क्या बैठ जाऊं? 2 मिनट में तो पार्क स्टेशन आ जायेगा.. वहीं तो उतरना है.. फिर वहां से सेंट्रल पैदल.. दोस्त को छोड़ने जाना था वहां.. वो दिल्ली जा रही थी.. अब आ ही गया हूं तो 3 मिस्टेक्स ऑफ माई लाईफ भी ले ही लूं.. पता चला की उसकी टेर्न 2 घंटे लेट हो गई है.. अब रात के बारह बजे जायेगी.. उसे बताया तो उसे भरोसा नहीं हुआ.. ये ट्रेन कभी लेट हो ही नहीं सकती है.. कभी नहीं होती है.. आज कैसे.. टिकट भी कंफर्म नहीं है.. "तुम कैसे पता करते हो कि कंफर्म हुआ की नहीं?" उसने पूछा.. हर जवाब इंटरनेट पर मिल जाता है.. "अच्छा!" हंसी उड़ाता हुआ सा चेहरा.. फिर अपने एक मित्र से पूछना.. हुर्रे!! मेरा टिकट कंफर्म हो गया.. सेकेंण्ड ए.सी. में है.. सोचता हूं, लोग कैसे इतना उर्जावान रहते हैं? शायद मैं भी होता.. अगर घर जाने की बात होती तो.. घर-घर-घर.. क्या मैं भी घर के पीछे पर गया हूं..

11.30 में मैं उसे ट्रेन में बिठा कर विदा ले लेता हूं.. इतनी रात में तो ट्रेन मिल ही जायेगी.. मोबाईल की घंटी बजती है.. विकास है.. कहां हो? कब तक आओगे.. परेशान सी आवाज.. ऑफिस के अलावा कहीं और से इतनी देर से घर नहीं गया हूं.. शायद इसलिये.. आ रहा हूं.. पार्क स्टेशन में फिर जाता हूं.. 11.45 हो गये.. अगर ट्रेन नहीं मिला तो ऑटो से जाना होगा.. कुछ लोग दिखे जो ट्रेन के इंतजार में थे.. अरे लोग हैं तो ट्रेन भी आ जायेगी.. बगल में बैठा दो लड़का हिंदी में बात कर रहा है.. कान लगा कर सुनने लगा.. चेन्नई में हिंदी.. नार्थ इंडियन है.. किसी की मां-बहन एक की जा रही थी.. गाली सुनने के लिये तो मैं हिंदी नहीं सुनने वाला हूं.. लो ट्रेन भी आ गई.. अभी की ट्रेन और थोड़ी देर पहले की ट्रेन में अंतर था.. वातावरण का मिजाज भी बदला हुआ था.. ओह!! तो ट्रेन भी शक्लें बदलती है हर घंटे.. अभी भी एक लड़की जा रही थी.. साउथ इंडियन बहुत ही सलीके के कपड़ों में थी.. मगर उस लड़की की तरह बेपरवाह नहीं थी.. कुछ खुबसूरत भी नहीं थी.. मगर चेहरे पर एक डर था.. निगाहें चौकन्नी थी.. घबराई हुई थी.. मैंने घड़ी देखी 12.30 से ज्यादा हो चुके थे..

14 comments:

  1. Train ke sath sath baki badlte chehron par bhi khoob najar jaa rahi hai janab ki..kya chal raha hai?? Varnan achcha kiya hai. :)

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  2. बीतते हुए लम्हों से ... एक दिन का सफर :) रोचक लिखा है

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  3. कही कही आप की बाते अपनी सी लगती हे, बहुत सुन्दर,बदलते चेहरे ???

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  4. चेहरे की घबड़ाहट अपने शहर में कुछ अधिक होती है बाहर जाते ही मिट जाती है।

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  5. अच्छा, सेंसिटिव लिखा।

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  6. chennai, egmore station par hindi bolte north indian ladke,aapne janaab mujhe college ke zamaane ki yaad dila di.egmore railway station hum aye the us ilaake ke charnochite patharon ka sample collect kar ke,geology m sc final year mr the hum us waqt.chennai se vishakhapattanam jaane ke liye corromandal express ka intezaar karte hum log bhi hindi me batiya rahe the aur sun ne wale kuchh log wahi kar rahe the jaisa aapne bataya tab zaroor bura laga tha par ab hansi aati hai.dhanyad aapko bhuli bisri yaade taaza karne ke liye

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  7. zindgi bhi ek safar hai bhai...bas hamsafar badalte jaate hai.

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  8. अनिच्छापूर्वक किसी अन्य परिवेश में जा बसने वाले इंसान की मानसिक अवस्था का दस्तावेज बन रहा है आपका ये ब्लॉग. शायद आपको ख़ुद अंदाजा नहीं है कि कितना महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं. बहुत बढ़िया लगी ये पोस्ट.

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  9. मेरे मित्र विकास द्वारा ये कमेंट ई-मेल से प्राप्त हुआ..

    तेरा कल वाला पोस्ट पढे अभी…….अच्छा लगा पढ कर…..
    सच में कोडमबक्कम स्टेशन से गुजरते हुए गार्गी बहुत याद आती है…………..असल में बहुत बार उसके कारण वहां आना जाना हो गया था………..

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  10. आप सभी का बहुत धन्यवाद इसे सराहने के लिये..

    समीर जी, क्या कहें.. उमर ही कुछ ऐसी है.. :)

    घोस्ट बस्टर जी, मेरे मन में जो भी भाव आते हैं और जैसे आते हैं उसे बस मैं वैसे ही लिख देता हूं.. आप सही हैं.. मैं कभी इसे कोई महत्वपूर्ण् काम समझ कर नहीं लिखता हूं..

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  11. अनिल जी, कई शहर कई यादों को पीछे छोड़ जाते हैं.. मेरे हिस्से में भी ढेर सारे शहर हैं.. जैसे जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, बैंगलोर, पटना, और भी कई.. नाम कम पर जायेंगे..

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  12. ह्म्म्म... अच्छा वर्णन है मनोभाव का !

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  13. bahut khoob likha hai...ham sabhi kaheen na kaheen kai baar aisa hi mahsoos karte hain.

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  14. Prashantbhai

    Nice write up.Interesting description.
    Thanx.
    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

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