पापाजी की समझ में जब से मुझे(हमें) अच्छे-बुरे का ज्ञान हुआ तब से उन्होंने कुछ कहना छोड़ दिया.. बस समय आने पर कम शब्दों में मुझे समझा दिया करते हैं.. कक्षा आठवीं की बात याद है मुझे, जब मैंने परिक्षा में चोरी की थी और पापाजी को बहुत बाद में पता चला था.. उस समय भी उन्होंने कुछ नहीं कहा, और तब भी उन्होंने कुछ नहीं कहा जब उन्हें पता चला कि मैं चेन स्मोकर हो गया हूं.. उन्हें मेरी इन बुरी बातों का ज्ञान है बस इतना ही काफी होता था मुझे अपने भीतर आत्मग्लानी जगाने के लिये..
मुझे एक और आत्मग्लानी अक्सर अंदर से खाये जाती है.. मेरे मुताबिक मैंने अभी तक अपने जीवन में कोई भी ऐसा काम नहीं किया है जिस पर पापा-मम्मी गर्व से कह सकें कि "हां! देखो प्रशान्त मेरा बेटा है.." भैया ने उन्हें इस तरह के इतने मौके दिये हैं कि अब तो उन्हें भी याद नहीं होगा.. भैया सन् 1994 में जब मैट्रिक में गणित में 99 अंक लाये थे तब से उस गिनती की शुरूवात हुई थी, जिसमें आई.आई.टी. में टॉप करना भी शामिल रहा.. भैया उम्र में मुझसे बहुत बड़े नहीं हैं.. ऐसे में हर चीज में मैं उनसे स्पर्धा किया करता था.. और हर चीज में उनसे हारता भी था, चाहे वो कोई खेल हो या पढ़ाई.. उस समय बहुत चिढ़न होती थी.. मगर अब वही बातें अब मैं अपने सभी परिचितों के बीच गर्व से सुनाता हूं कि हां मेरे भैया आई.आई.टी. जैसे संस्थान के टॉपर रह चुके हैं और यू.पी.एस.सी. में भी अच्छे रैंक लाये थे..
मैंने खुद को लेकर अक्सर पापाजी के भीतर कुछ सालता सा महसूस किया हूं.. एक-दो बार उन्हें खुद उन बातों पर अफ़सोस करते भी सुना.. उनका यह मानना है कि जब मेरी पढ़ाई का सही समय आया(मैट्रिक और उसके बाद की पढ़ाई का) तब वो मुझ पर कुछ भी ध्यान नहीं दे पाये.. अगर अपने मन की बात करूं तो उन दिनों मेरे मन में भी कुछ इस तरह की हीन भावना थी कि जितना ध्यान भैया पर उन्होंने दिया उतना मुझपर नहीं.. मगर जब आज के संदर्भ में मैं देखता हूं तो पाता हूं कि भले ही उस समय उन्होंने मुझपर उतना ध्यान नहीं दिया था मगर बाद में जितना सहयोग और आजादी पापा-मम्मी ने ना दिया होता तो आज मैं जो कुछ भी हूं, वह ना होता.. एक के बाद एक खराब अंकों से पास होना, फिर बारहवीं में एक बार फेल होने के बाद भी कभी मेरे मन में किसी भी प्रकार की कुंठा को जगने नहीं दिया.. भले ही इस संदर्भ में वो जो कुछ भी सोचते हों मगर मेरा तो यही मानना है कि मैं आज जो कुछ भी हूं वो सभी पापा-मम्मी के कारण ही..
कभी-कभी पापाजी मुझे धिरोदात्त नायक भी कहा करते हैं.. मुझे बहुत आश्चर्य भी होता है उनकी इस बात पर.. मेरे मुताबिक तो मैं नायक कहलाने के भी लायक नहीं हूं.. फिर धिरोदात्त नायक तो बहुत दूर की कौड़ी है.. शायद यह इस कारण से होगा कि सभी मां-बाप अपने बच्चों को सबसे बढ़िया समझते हैं.. उनकी नजर में उनके बच्चे सबसे अच्छे होते हैं, सच्चाई चाहे कुछ और ही क्यों ना हो..
शादी के तुरंत बाद कि पापा-मम्मी की तस्वीर
बहुत सारी बातें मन में आ रही है.. कुछ इमोशनल सा और कुछ नौस्टैल्जिक सा भी हुआ जा रहा हूं.. कुछ बातें लिख डाली है मैंने, कई बातें लिख नहीं सकता और कई और बातें जो लिखने लायक हैं उसे भविष्य के लिये छोड़ रहा हूं..
परसों ऑफिस छोड़ने से पहले मैंने अपने ट्विटर पर जो अंतिम अपडेट किया था वह कुछ ऐसा था, "हर दिन रात के दो बजे मन दार्शनिक सा हुआ जाता है, आज फिर टेस्ट करके देखते हैं.." अभी भी रात के दो बज रहे हैं और मैं बैठा यह सब लिख रहा हूं.. :)
यह पोस्ट मैंने कल रात बैठकर लिखी थी.. पापाजी को जब इस बारे में बताया था तो उन्होंने इसे दो बजिया वैराग्य का नाम दे दिया.. जो कि इसका शीर्षक भी है.. :)
भाई जान तुम्हारे अंतर्द्वंद के बारे में पढ़ा और पढता ही चला गया...सबके जीवन में बहुत साड़ी ऐसी बातें होती हैं जिन्हें वो तुम्हारी ही तरह महसूस करता है
ReplyDeleteपापा जी ने सही शीर्षक दिया है इस पोस्ट का।
ReplyDeleteवैधानिक चेतावनी: धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है!
ReplyDeleteईश्वर करे आप धूम्रपान छोड़ दें, इससे भी बैराग्य हो जाय!
काश सबके पापाजी आपके पापाजी जैसे हों...
ReplyDeleteनीरज
प्रशासनिक अधिकारी होने से आप या तो अपने आप में बहुत सिमट कर रह जाते हैं या फिर आपको हर जगह हावी रहने की आदत सी पड़ जाती है..
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ओह, प्रशान्त यह बहुत सही ऑब्जर्वेशन है।
Dear Prashantji , if possible , Please smoking band kar dijiye , health ko bahut nuksaan karta hai .
ReplyDeleteaapki yeh post bahut emotional aur achee hai .
Regards-
Gaurav Srivastava
vaise yeh to bataiye , tippani me mera naam change kaise ho gaya , yeh bhi ( ravi) mera hi naam hai , but ghar ka , official nahi . official naam to Gaurav hai .
ReplyDeleteisse correct kaise karoo, yeh bhee bataiyega .
भाई हम तो इतना सेंटी २ क्या ४ बजे भी नहीं हो पाते. नायक तो आप हो ही... इसमें डाउट मत रखना.
ReplyDeleteटिव्टर अपडेट.. रात दो बजे - वैराग्य को प्राप्त..
ReplyDeleteसुबह १० बजे - तारे जमी पर...:)
अच्छा है..
पता है प्रशान्त, मैं भी रात के दो बजे दार्शनिक हो जाती हूँ. और आजकल मैं भी बहुत नॉस्टेलजिक हो गई हूँ. बात क्या है?... ये मौसम ही तो नॉस्टलजिकाना नहीं हो गया.
ReplyDeleteसच्ची-अच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट ... कितनी ही बातें छिपी रहती हैं मन में माता पिता के प्रति ।
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