एक-एक करके कई सीन नजर के सामने से यूं गुजर रहे थे जैसे कोई पैरेलल सिनेमा देख रहा हूं.. अमोल पालेकर वाला.. भकुवाया हुआ सा मन था और मैं अपने सर पर तकिया दबाये उस सिनेमा का नजारा देख रहा था जो मेरे दिल के बहुत पास है..
भैया को लेकर मुझे जो सबसे पुरानी याद है वो सीतामढ़ी की है.. मैं शायद दो-तीन साल से ज्यादा का नहीं रहा होऊंगा और भैया चार-पांच साल के.. भैया उस दिन स्कूल नहीं जाने की जिद में थे और मम्मी उन्हें घर के बाहर वाली चौकी पर बिठा कर अंदर से किवाड़ बंद करके अपना काम करने चली गई थी.. भैया बाहर बहुत देर तक रोते रहे फिर चुप होने के बाद मुझे खिड़की से झांककर किवाड़ खोलने को बोल रहे थे.. मैंने कोशिश की मगर खोल नहीं पाया था.. फिर क्या हुआ, मुझे याद नहीं.. भैया के स्कूल का नाम "आदर्श ज्ञान केन्द्र" था..
भैया की तस्वीर
कुछ यादें जो कभी भी नहीं भूल सकता हूं.. शायद सन् 1988 या 1989 के जाड़े की रातों में रजाई के अंदर घुस कर भूत-भूत खेलना.. हमारा कमरा, बिस्तर और यहां तक की रजाई भी एक ही हुआ करती थी.. सोने के समय जब अंधेरा हो जाया करता था तब हम दोनों में से कोई अचानक बोलता "भूत आया.." और दोनों रजाई के अंदर घुस जाते.. मिनट भर अंदर रहने के बाद कोई एक बाहर झांक कर देखता और बोलता कि भूत चला गया, और दूसरा भी उसके बातों पर भरोसा करके बाहर निकल आता.. फिर थोड़ी देर बाद कोई बोलता भूत आया, और यह तब तक चलता रहता जब तक हम सो ना जायें.. :)
जाने ऐसी कितनी ही आधी-अधूरी यादें आ रही थी.. जैसे भैया को कैरम बोर्ड में लगातार दो-तीन दिनों तक हराना जिसे मैं आज भी किसी उपलब्धि से कम नहीं मानता हूं.. कारण, भैया मेरे अलवा शायद ही किसी और से कैरम में हारे हों.. कभी-कभी मुझे लगता था कि उन दिनों भैया मेरे साथ कैरम खेलने से दरते भी थे.. अब कितना सच है इसमें ये तो भैया ही बतायेंगे.. उनके साथ बैडमिंटन में हर बार हारना फिर भी अगले मैच के लिये भैया से जिद करना..
यूं तो भैया मुझसे दो साल बड़े हैं मगर बचपन से ही मैं कुछ लम्बा होने के कारण हम दोनों भाई की लम्बाई लगभग बराबर ही रहा करती थी.. हम दोनों भाई आपस में खूब मार-पीट भी करते थे.. मगर मुझे वैसी चीजें भी याद है कि जब कभी भैया के साथ कहीं बाहर जाता था तब मन में हौशला होता था कि भैया मेरे साथ हैं तो डरना क्या, भैया सभी को देख लेंगे.. एक दो ऐसी घटना भी याद है जब भैया ने मेरे लिये दूसरों से मारपीट भी कीये थे और दूसरों से पिट कर भी आये थे.. जैसे स्कूल बस में दसवीं कक्षा के एक लड़के के साथ(भैया उस समय आठवीं में थे)..
मैं उन दिनों को भी याद करता हूं जब मैं पढ़ने में बिलकुल फिसड्डी था और लगभग हर परिक्षा में एक-एक करके असफल होता जा रहा था.. उस समय कई बार मुझे यह अहसास हुआ था कि पापा-मम्मी से ज्यादा इस बात कि चिंता भैया को होती थी..
आठ अगस्त को जब भैया और पापा मुझे छोड़ने के लिये स्टेशन आये थे तब मैंने भैया को कहा, "जब कभी आपके बारे में सोचता हूं तो मुझे बस दो ही बातें याद आती हैं.. पहली बात, कैसे हम दोनों आपस में मारपीट करते थे.. दूसरी बात, कैसे आप मेरे लिये दूसरों से मारपीट करते थे.."
बहुत सुन्दर एवं भावुक पोस्ट
ReplyDeleteरेगार्ड्स-
गौरव श्रीवास्तव
भावना से भरी भावभीनी पोस्ट के लिए साधुवाद .......
ReplyDeleteआप दोनों भाइयों का प्रेम यूँ ही बना रहे !
ReplyDeleteकाफी दूर तक गोते लगाये यादों के सागर में..पढ़कर अच्छा लगा!
ReplyDeleteवैसे मैं इसके उल्ट रिशतों के बारें में लिखने की सोच रहा था। दोनों ही रुप देख और पढ लिए। एक सुन्दर प्यारी पोस्ट। वैसे हम अभी तक उस गाने का इंतजार कर रहे है जी ' बेटा हो जा जवान तेरी शादी करुँगा"
ReplyDeleteबचपन की सुंदर अमिट स्मृतियाँ। भैया फोटो में बिलकुल क्यूट लग रहे हैं। बालों का जूड़ा बना होता तो समझता मेरा चित्र है।
ReplyDeleteapni bhi purani yaadein taza ho aayi
ReplyDeleteरिश्तों की सुदृढ़ता के लिये बचपन को हमेशा याद करते रहना चाहिये -शरद कोकास ,दुर्ग ,छ.ग.
ReplyDeleteबचपन की यादों में गोते लगाता हर लम्हा बचपन की और खेंचता है ......... आपका संस्मरण दिल को छूता है ......
ReplyDeleteअरे मित्र; काश हमें भी कोई भैया मिले होते!
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