Wednesday, September 16, 2009

आई.टी. में प्रतिदिन कार्यावधि अधिक होने के कुछ प्रमुख कारण

मेरे पिछले पोस्ट पर दिनेश जी ने कुछ प्रश्न पूछे थे, और स्वप्नदर्शी जी ने अपने कुछ अनुभव बांटे थे..

दिनेश जी ने कहा -
एक पहलू से आप की बात सही है। लेकिन यह समझ नहीं आई कि आईटी वालों को 16-16 घंटे क्यों काम करना पड़ता है जब कि अनेक आईटी प्रवीण बेरोजगार हैं। यह गैरकानूनी भी है और मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से गलत भी इतना तनाव अनेक वर्ष तक झेलने पर तो मानसिक रोगी बढ़ जाएंगे।


स्वप्नदर्शी जी ने कहा -
I think in general men in IT companies are changing their jobs in every six months, and some people have used this or that extensive training only to improve CV and negotiation for better salary. And if you put the facts together, it will be quite clear that by not employing women, this cost is not being saved effectively. On the contrary, women like more stability, even if the salary is low and do not change jobs so often. I do not think that even 10% of the men in IT sector have been working for a single company for past 10 years.

I typically work myself about 14-16 hours, sometimes even 20 hours at a stretch. But my Academic setting offers me some flexibility that I can break it the way I want, and can carry some work home. What is needed for women and for men, to perform at their best is to have some kind of support system, flexibility with their partners and with working schedule.

Also, marriage is not the end of productive life, its the beginning, in ever sense for individuals. So I will say that neither factually, and not theoretically, this discrimination is justified.

Apart from everything else, I agree with Dwivediji that its not healthy for any one to work in stress, and even if it is the IT Job, basically it is exploitation of cheap labor, and co-operate sector will do everything to create a culture of inequality, and divide and rule people for their benefit, it can be Women vs. Men, old vs New generation, pregnant Vs. unmarried women, Dalit Vs. Savarn and so on .....

specially in India, so that they have to give minimum benefits to their employees.



मुझे अभी जहां तक अनुभव हुआ है उसके मुताबिक मैं निम्नलिखित कारणों को बड़ी वजह मानता हूं जिस कारण आई.टी. में प्रतिदिन कार्य समय अन्य इंडस्ट्री से ज्यादा होते हैं -

1. Wrong Estimation - अक्सर किसी कार्य को सम्पन्न करने में लगने वाले समय की गणना गलत होने के कारण प्रतिदिन कार्यावधि बढ़ जाया करती है.. ऐसा अक्सर उस समय होता है जब कांट्रैक्ट पाने के लिये कम से कम समय में काम अच्छे गुणवत्ता के साथ खत्म करने का प्रस्ताव क्लाईंट के सामने दिया जाता है और कांट्रैक्ट मिलने पर उस टीम के सभी लोगों को तनाव में आकर कार्य करना पड़ता है.. ये कहीं ना कहीं से बाजार के दबाव के कारण से होता है..

2. कई बार कर्मचारी की अपनी गलती के कारण भी ऐसा होता है.. ऐसा तब होता है जब कार्य की डेड लाईन तय होती है, और कर्मचारी पहले से ना लगकर अंत समय में पूरी उर्जा के साथ कार्य को खत्म करने में लगे होते हैं..

3. कई बार मैनेजर या लीड की गलती के कारण भी ऐसा होता है.. जब मैनेजर या लीड अपनी टीम को अच्छा साबित करने के लिये एक-एक व्यक्ति पर दो-दो लोगों का काम सौंप देते हैं.. अगर दूरगामी प्रभावों की बात करें तो यह कहीं ना कहीं से टीम के लिये नुकसानदेय ही साबित होता है..

4. इस क्षेत्र में कार्य करने वाले अधिकतर युवा ही होते हैं, जो घर से बाहर किसी अन्य शहर में बैचलर जीवन बिताते होते हैं.. अब ऐसे में उनका सोचना होता है कि घर जाकर भी करना क्या है, कम से कम यहां चाय-कॉफी और इंटरनेट तो मिल रहा है.. और बॉस पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है कि यह देर तक रूकता है.. मगर यही आदत बाद में गले का पाश बन जाता है.. क्योंकि बॉस सोचते हैं कि यह बंदा देर तक रूक कर काम करता है, जबकी समय हर समय एक जैसा नहीं होता है..

अन्य कई कारण होंगे और हैं भी, जिसका सामना मुझे अभी तक नहीं करना पड़ा है.. पाठकों से इस पर कुछ और प्रकाश डालने के अनुरोध के साथ यह पोस्ट समाप्त करता हूं..

4 comments:

  1. I Got this Comment from my friend Sanjeev Narayan Lal

    Well I ‘ll like to comment on the comments you received:
    @SwapdarshiJi: Corporate sys. has never discriminated between:
    1. Dalit & Savarn
    2. Pregnant & Unmarried women….
    On the contrary, for the Dalit Vs Savarn thing I strongly believe that the corporate sec. has helped in reducing this chasm….

    @Prashant: Nowadays most of the companies have greatly restricted the internet access… so the possibility of sitting late for chatting and all such stuff has also significantly reduced…. Although I’ll agree to it’s presence to some extent….

    Regards,
    Sanjeev Narayan Lal

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  2. जो भी हो। आर्थिक मंदी के दौर ने युवाओं को आई.टी. सेक्टर के परे देखने को मजबूर किया है। आज बी.टेक. का लगभग हर छात्र बैंक क्लर्क का फॉर्म भी भर रहा है। इसके पीछे यह वर्कलोड भी तो एक कारण है।

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  3. सही है.. "अन्य शहर में बैचलर जीवन बिताते होते हैं.. अब ऐसे में उनका सोचना होता है कि घर जाकर भी करना क्या है, कम से कम यहां चाय-कॉफी और इंटरनेट तो मिल रहा है.. और बॉस पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है कि यह देर तक रूकता है.. मगर यही आदत बाद में गले का पाश बन जाता है.. "

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  4. shrimann ji aap ne sirf IT walo ke bare mein likha ,
    please telecom walo ke bare mein bhi sochye jo 24*7 network awalabllaty ke chhaker mein 24 hrs tak lkkaam kar ra hai

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