शिव ने भी इसी में अपनी सहमती जतायी, "हां भाई, जब तुम्हारे, विकास और वाणी जैसे इतने अच्छे ड्राईवर मिले ही हैं तो मैं भला ड्राईविंग क्यों सीखूं?"
"अच्छा! हम लोग कब तक तुम्हारे साथ रहेंगे?"
"जब तुम लोग नहीं रहोगे तो कोई और रहेगा.. क्या फर्क पड़ता है?"
"अच्छा? और जब तुम्हारी शादी हो जायेगी तब?"
इस प्रश्न पर उसके पास कोई कुतर्क नहीं था सो बस गूं गूं करके इतना ही बोला कि "तुम्ही लोग तब भी काम आओगे.."
मैं अब मजाक के मूड में आ गया था.. सो बोला, "मतलब कि भाभी जी को भी मेरे ही पीछे बैठाओगे?"
"हां.." एक सपाट सा उत्तर उसने दिया..
"ठीक है.. फिर रूपेश वाला किस्सा तुम्हारे साथ हो जाये तो मुझे मत कहना.." मेरा इतना कहना था कि हम दोनों ठहाके लगा कर हंसने लग गये.. कुछ पुरानी बातें याद हो आयी.. कालेज की..
तब हम नये नये वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रवेश लिये थे और हमारी दोस्तों का दायरा ज्यादा बड़ा नहीं था.. लेकिन जानपहचान सभी से हो चुकी थी.. एक दिन विकास, शिव, रूपेश और मैं सुबह के नाश्ते के लिये होस्टल के मेस में बैठे हुये थे.. रूपेश बहुत कम बोलने वाला प्राणी तब भी हुआ करता था और अब भी वैसा ही है.. अचानक से मेरे मन में पता नहीं क्या आया और मैं रूपेश की खिंचाई करना शुरू कर दिया.. बिलकुल सीरीयस होकर मैंने रूपेश से बोला, "तुम भाई पढ़ने में बहुत तेज हो.. मैं तो कहीं भी तुम्हारे सामने नहीं टिकता हूं.. तुम्हारा तो कैंपस सेलेक्शन भी जल्दी हो जायेगा.. मेरा होगा या नहीं इस पर भी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है.." रूपेश कुछ बोला नहीं बस एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ मेरी ओर देखता रहा.. "अब जरा आज से दस साल बाद के बारे में सोचो.. मैं शायद तब भी खाली ही बैठा रहूंगा.. मगर तुम्हारे पास अच्छी सी नौकरी होगी.. एक बहुत संदर सी बीबी होगी.. एक बच्चा भी होगा जो इतना प्यारा कि उसे देखते ही कोई भी उसे प्यार करने को मचल जाये.." अब तक रूपेश की आंखें फैल कर गोल हो चुकी थी.. वह सोच में था कि मैं क्या बोलने जा रहा हूं या फिर क्या बताना चाह रहा हूं! मैंने आगे बात जारी रखी, "एक दिन मैं तुम्हारे घर आऊंगा और कॉल बेल बजाऊंगा.. तुम्हारा बच्चा दौड़ा-दौड़ा आयेगा और दरवाजा खोलेगा.. मुझे देख कर वापस तुम्हारे पास भागा-भागा जायेगा और बोलेगा "पापा, पापा.. अंकल आये हैं.." तुम पूछोगे, "बेटा कौन अंकल आये हैं?" बच्चा बोलेगा, "पापा वही अंकल आये हैं जिनकी शक्ल मुझसे मिलती है.." अभी तक रूपेश बहुत उत्सुकता से मेरी पूरी बात सुन रहा था.. लेकिन जैसे ही मेरी पूरी कहानी खत्म हुई तो वह बुरी तरह से मुझे घूर रहा था.. लेकिन ना तो पहले वह कुछ बोल रहा था और ना ही अब वह कुछ बोल रहा था.. बस चुपचाप ब्रेड-बटर खाये जा रहा था.. बाद में जब हम अच्छे मित्र हो गये तब मैंने उससे पूछा कि क्या सोच रहे थे उस समय तुम? उसका कहना था कि वह सोच रहा था कि क्या उत्तर दे इसका.. मगर उसे कुछ सूझ नहीं रहा था.. |
थोड़ी देर मैं और शिव इसे याद करके हंसते रहे और फिर से मैं शिव के लिये ड्राईवर के काम पर निकल पड़ा.. एक बार फिर से मैं गाड़ी चला रहा था और शिव पीछे बैठा हुआ था.. :)
इस किस्से के सभी पात्र जिवंत हैं और इनका इस दुनिया में जिवित किसी ना किसी व्यक्ति से संबंध है.. ;)
ha ha ha
ReplyDeletebhai aajkal humari MCA class ke ladkon ki shadiyaan ho rahi hain ...jab bhi kisi ki shadi hoti hai to kunware dost isi tarah mauj lete hain
ha ha ha ha ....
हुं...तो ड्राइविंग सीख ही लेनी चाहिए.:-)
ReplyDeleteअब तो शिव को ड्राइविंग सीख लेनी चाहिए।
ReplyDeleteDriving seekhna bahut zaroori hai....mein bhi bahut zid ki thi driving seekhne keliye..meri driving ki baare mein bhi likhi thi...yaha milega, http://rpsahana.blogspot.com/2008/02/two-wheeler.html
ReplyDeleteभाई समझदार को इशारा काफ़ी है.
ReplyDeleteरामराम.
ha ha ha :-) dinesh ji se sahmat
ReplyDeleteha ha...mazedaar. bechare rupesh ki khinchayi kar di tumne.ab shiv kya bolta hai?
ReplyDeleteआइडिया ठीक है...
ReplyDelete:)
ReplyDeleteशिवेंद्र भाई साब अंततः ड्राइविंग सीख ही गए. :)
ReplyDeleteबढ़िया है....
ReplyDeleteआभार....