Friday, May 15, 2009

जब शहर हमारा सोता है

एक बकत कि बात बतायें,
एक बकत कि..
जब शहर हमारो सो गयो थो,
वो रात गजब की..
चहुंओर, सब ओर दिशा से,
लाली छाई रे..
जुगनी नाचे, चुनरी ओढ़े,
खून नहाई रे..
सब ओरों गुल्लाल पुत गयो,
सब ओरों में..
सब ओरों गुल्लाल पुत गयो,
विपदा छाई रे..
जिस रात गगन से,
खून की बारिश आयी रे..
जिस रात शहर में,
खून कि बारिश आयी रे..

सराबोर हो गयो शहर,
और सराबोर हो गई धरा..
सराबोर हो गई रे जत्था,
इंसानों का पड़ा-पड़ा..
सभी जगत ये पुछे था,
जब इतना सब कुछ हो रह्यो थो..
तब शहर हमारो कांय-बांय सा,
आंख मूंद के सो रह्यो थो..
शहर ये बोल्यो,
नींद गजब कि ऐसी आयी रे..
जिस रात गगन से,
खून की बारिश आयी रे..
जिस रात शहर में,
खून कि बारिश आयी रे..

सन्नाटा वीराना..
खामोशी अनजानी..
जिंदगी लेती है..
करवटें तूफानी..
घिरते हैं साये घनेरे से..
रूखे बालों को बिखेरे से..
बढ़ते हैं अंधेरे पिशाचों से..
कांपे है जी उनके नाचों से..
कहीं पे वो जूतों कि खट खट है..
कहीं पे अलावों कि चट पट है..
कहीं पर है झिंगुर कि आवाजें..
कहीं पे वो नल के कि टप टप है..
कहीं पे वो खाली सी खिड़की है..
कहीं वो अंधेरी सी चिमनी है..
कहीं हिलते पेड़ों का जत्था है..
कहीं कुछ मुंडेरों पे रक्खा है..

सुनसान गली के नुक्कड़ पर जब
कोई कुत्ता चीख-चीख कर रोता है..
जब लैंप पोस्ट कि गंदली पिली घ्प्प रोशनी
में कुछ-कुछ सा होता है..
जब कोई साया, थोड़ा बचा-बचा कर
उन सायों में खोता है..
जब पुल के खंभों को गाड़ी का गरम उजाला,
धीमे-धीमे धोता है..
तब शहर हमारा, सोता है..
तब शहर हमारा, सोता है..
तब शहर हमारा सोता है,
तब मालूम तुमको वहां पे क्या-क्या होता है?
इधर जागती हैं लाशें,
जिंदा हो मुर्दा उधर जिंदगी खोता है..
इधर चीखती है एक हौव्वा,
खैराती सी उस अस्पताल में बिफरी सी..
हाथ में उसके अगले ही पल,
गरम मांस का नरम लोथड़ा होता है..

इधर उगी है तकरारें,
जिस्मों के झटपट लेन देन में,
ऊंची सी.....
उधर गांव से रिश्ते फूंको,
दूर गुजरती आंखे डेखो,
रूखी सी.....
लेकिन उसको लेके रंग-बिरंगे,
महलों में गुंजाईश,
होती है.....
नशे में डूबे सेहन से,
खूंखार चुटकुलों कि पैदाईश,
होती है.....
अधनंगे जिस्मों कि देखो,
लिपी-पुती सी लगी नुमाईश,
होती है.....
लार टपकते चेहरों को,
कुछ शैतानी करने कि ख्वाहिश,
होती है.....
वो पुछे है हैरान होकर,
ऐसा सब कुछ होता है कब?
तो बतलाओ उनको तब-तब-तब
ऐसा होता है.....

जब शहर हमारा सोता है..
जब शहर हमारा सोता है..
जब शहर हमारा सोता है..


एक गीत गुलाल सिनेमा से..

8 comments:

  1. यह गीत मैं ने पहले पढ़ा नहीं था न सुना था। कुछ विचित्र सा है।
    वैसे शहर सो जाए तो कुछ भी हो सकता है।

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  2. देखी हुई है यह अटपटी सी फिल्म..कुछ बहुत अच्छे गीतों के साथ...कभी लगता है कि शायद यही तो हर शहर की बात है.

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  3. पहली बार सामना हुआ इससे.

    रामराम.

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  4. आजकल फ़िल्म देखना लगभग छूट गया है पीडी।

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  5. भाई एक बार में बता दिया करो न...? देखो ्कल से एक ही गाना बजा रहा हूँ..:)

    आज तीन गाने बजेगें..thanks..

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  6. ye song actual mein piyush msihra ne apni ek naatak "jab sheher humara sota hai" ke liye likhi hai...is naatak ki copy mere paas hai...film ke liye thoda modification hua hai usme....o raat ke musafir waala gaana bi us play se hai :)

    iske saare gaane kuch zyaad ahi pasand hai mujhe...aarambh hai prachand ek baar lagbhag 2-3 ghante lagaatar sunte rahe they hum!!!

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