Sunday, September 14, 2008

सच में मम्मी, कहां फंसा दी

कुछ दिन पहले मैंने अपने एक पोस्ट में अपने भतीजे के जन्म पर एक पोस्ट लिखा था की क्या मम्मी कहां फंसा दी.. वो पोस्ट बस एक मजाक भर में लिखा हुआ था.. खुशियों से भरा हुआ.. मगर कभी-कभी सच में लगता है की क्या मम्मी कहां फंसा दी जन्म देकर.. हर दिन एक नयी चुनौती का सामना करना पड़ता है.. नये अंतर्द्वंद सामने आते हैं.. हर समस्या को हम उचित तरीके से हल नहीं कर पाते हैं तो कुछ समस्याओं का समाधान हमारे बस के बाहर की चीज लगती है, जो होती भी है.. कभी कुछ ना कर पाने का दर्द होता है तो कभी कुछ करने पर भी खोने का डर लगा रहता है..

अगर मैं अपने जीवन के अबतक के बीते हुये सालों पर गौर करता हूं तो पाता हूं की मैं जितना पाने के लायक हूं उतना मुझे कभी मिला नहीं है.. खासतौर पर मैं जो कुछ भी पाने के लिये जी-तोड़ मेहनत करता हूं वो मुझे कभी नहीं मिला है.. जिस किसी से बहुत ज्यादा लगाव होता है, वो मेरे जीवन में क्षणभर से ज्यादा नहीं रहता है.. चाहे वो कोई भौतिक पदार्थ हो या कोई मित्र हो या कोई अपना..

कुछ चीजें इतनी अधिक तकलीफ पहूंचाती है जो मेरे सहनशक्ति से बाहर लगता है.. तब मन में ये जरूर लगता है की क्या मम्मी कहां फंसा दी.. पापा-मम्मी से बहुत ज्यादा लगाव है मुझे, मगर उनसे इतनी दूर हो गया हूं कि जब कभी मुझे उनके साथ की जरूरत होती है तब कभी उन्हें अपने पास नहीं पाया हूं.. स्वभाव कुछ ऐसा मिला है कि अपनी बात अपने भीतर ही रख लेता हूं, किसी से मन की कुछ बात कहना भी चाहूं तो कह नहीं पाता हूं.. कई बार ये भी महसूस हुआ है की अंदर ही अंदर घुटा जा रहा हूं..

कहने को तो ब्लौगिंग एक ऐसा संसार है जहां आप अपने मन की बात बिना किसी सोच-संकोच के रख देते हैं, लिख देते हैं.. मगर हिंदी ब्लौगिंग का चरित्र अंग्रेजी ब्लौगिंग से अलग है.. यहां हम सभी सार्वजनिक होते हैं.. अब ऐसे हालात में अपने मन की बात को सार्वजनिक करना भी उचित नहीं होता है.. किसी सीमा में रहकर ही अपने मन की बात लिखता हूं.. सच कहूं तो मैं अभी भी अंदर ही अंदर घुट रहा हूं.. क्या करूं, कहां जाऊं कुछ समझ में नहीं आ रहा है..

जाता हूं मम्मी से बात करने.. उन्हें कहने.. उनसे पूछने.. कि क्या मम्मी कहां फंसा दी जन्म देकर..

कुछ दिनों से ब्लौगजगत से बिलकुल बाहर हो चला था.. अपने कुछ निजी कारणों से.. अपने अगले पोस्ट में बताता हूं यहां चेन्नई में किये गये बाढ सहायता कार्यों के बारे में..

8 comments:

  1. ऐसा होता है, अभी चुनौतियों का जीवन आरंभ हुआ है। यह दौर भी बीत जाएगा। तब पहाड़ों की चढ़ाई पर गर्व हुआ करेगा। वैसे भी आप तो ट्रेकिंग के शौकीन हैं।

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  2. भाई यही जिन्दगी हे कभी उतार तो कभी चढाब, मुकमल जहां किसी को नही मिलता, मुकाबला करना सीखो सब असान लगेगा
    धन्यवाद

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  3. हौसला बनाये रखो, बालक!! इसी का नाम जीवन है. सब गुजरते हैं इस मानसिक दौर से-आपने कह दिया.

    कुछ ऐसे न कह पा रहे हो तो वैसे कह लो-बजरंग बलि या किसी और नाम से ब्लॉग खोल कर. :)

    मजाक कर रहा हूँ.

    वापस आ जाओ, स्वागत है.

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  4. kisi ko zameen to kisi ko aasman nahi milta,yehi zindagi hai,sab milne lage ishwar se prarthana karunga

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  5. बन्धु, गहन निराशा में हम भी फंसे-फसते रहे हैं।
    बस, तब उनसे तुलना काम आती है जो हमारी तुलना में कहीं अधिक डिसएडवाण्टेज्ड हैं।

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  6. हम सभी कई बार ऐसे दौर से गुज़रते हैं जब निराशा के सिवा दूर दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता ..इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं लेकिन जब ये दौर गुज़र जायेगा और खुशियाँ वापस आ जाएँगी तब आप ही कहेंगे " धन्यवाद मम्मी...इतनी सुन्दर दुनिया में लाने के लिए" बस धीरज रखिये!

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  7. यहीं फंसना ही तो जीवन है !

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  8. मेरी मम्मी अक्सर कहती थी..

    जब तक जीना
    तब तक सीना..

    ये सब चलता है.. रोज नई चुनॊतिया और रोज नये समाधान...

    शुभकामनायें..

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