अगर अभी हाल-फिलहाल की बात छोड़ दिया जाये तो शुरूवाती दिनों में किसी भी चैनल पर कोई खबर नहीं थी.. ये हालात है बुद्धिजिवियों का गढ माने जाने वाले बिहार का.. सबसे अधिक पत्रकार पैदा करने वाली भूमी पर संकट और उसी धरती का कहीं कोई कवरेज नहीं और अगर कहीं कवरेज था भी तो वो बस खानापूर्ती करने के लिये.. इसी बीच भारत के होनहार खिलाड़ी सुशील कुमार भारत के लिये ओलंपिक में पदक भी जीते मगर उन दिनों जेड गुडी बिग बॉस क्यों छोड़कर जा रही है ये बात समाचार चैनलों को ज्यादा महत्वपूर्ण लग रहा था.. कोशी और बिहार का मानों भारत में कोई अस्तित्व ही नहीं था..
मेरे पड़ोस की एक भाभी जिनका मायका बीरपुर है अपने भाई के हवाले से बता रही थी(जो हाल-फिलहाल में ही अपनी जान बचा कर वहां से आया था) की कैसे कोशी अपना रौद्र रूप मनुष्यों को दिखा रही थी.. किस तरह से लाशों का ढेर उनके घर के सामने से बह कर जा रही थी.. चारों ओर एक प्रकार का हाहाकार मचा हुआ था जो बेआवाज थी.. बस पानी का कलरव.. मेरे मन में कुछ करने का जज्बा हिलोरें मार रहा था, मगर उचित संस्था या व्यक्ति से संपर्क नहीं होने के कारण कुछ नहीं कर सका.. बाढ में जाकर लोगों की सेवा करने का भी ख्याल आया, मगर ये भी जानता था की घर से मुझे कोई भी अपनी जान सांसत में डालने के लिये मुझे वहां कोई नहीं भेजने वाला है.. सो किसी से ये बात कही नहीं.. इसी बीच मेरे एक मित्र के मित्र जो मधेपुरा के रहने वाले थे और वहां अपने रिश्तेदारों को बचाने के लिये जा रहे थे उनसे मैंने संपर्क साधा और 3 लाईफ़ जैकेट खरीद कर उन्हें दिया.. ये कहकर की जितनों की जिंदगी बचा सकते हैं बचा लाईयेगा..
मगर अभी भी एक अहम प्रश्न मेरे सामने था.. क्या 3 लाईफ जैकेट काफी है? उत्तर मुझे पता है.. नहीं.. मगर फिर भी जो कुछ हम कर सकते हैं वो हमें करना चाहिये..
अगले पोस्ट में - एक नरसंहार के बाद अगले भीषण नरसंहार की तैयारी
सीमित संसाधनों के बीच एक आम आदमी की भूमिका सरकार से भी ज्यादा महत्तवपूर्ण होती है।
ReplyDeleteआपने जो किया, मैं तो उतना भी न कर सका।
हम सब से जितना बन पड़ा हमने किया ..पर सवाल यह है की हम और कर भी क्या सकते हैं सिवाय निराश होने के .
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एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.
सवाल तीन लाइफ जैकेट का नहीं, सवाल आपके जज्बे का है। और मैं उस जज्बे का सलाम करता हूँ।
ReplyDeleteमैं भी टी वी पर सबकुछ देखती ही रह गयी , कुछ भी न कर सकी , संसाधन के अभाव में , मन कचोटता है।
ReplyDeleteसहयाता के लिए बढ़ा हाथ ही बहुत होता है भाई छोटा हो या बड़ा ये मायने नही है.....
ReplyDeleteमैने कहीं पढ़ा कि एक टीवी चैनल ने बिहार की बाढ़ की भीषणता को ईमानदारी से बहुत दिखाया और उसकी टीआरपी रेटिंग कम हो गयी!
ReplyDeleteलोग विभीषिका में रुचि नहीं रखते प्रतीत होते!
मेरे भाई तीन लाइफ जैकेट उस विनाश के लिए अपर्याप्त हो सकती हैं. मगर वे तीस की जान की रक्षा कर सकती हैं। आप का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteऔर उस से भी अधिक महत्वपूर्ण आप का अपनी मदद को मामूली स्वीकारना।
व्यक्तिगत सतर पर जितनी सहायता संभव है की जानी चाहिए पर केवल इसके बल पर उन संरचनाओं को बरी नहीं कर दिया जाना चाहिए जिनकी जिम्मेदारी थी कि ये लाइफ जैकेटें और बाकी संसाधन समय से लोगो को मुहैया करवाए जाते।
ReplyDeleteअपने भरसक योगदान करें..सब जितना बन सके. बस्स!! उसने नहीं किया इसलिये हम भी नहीं-यह नहीं होना चाहिये.
ReplyDeleteमसिजीवी जी से पूर्णतः सहमत!!
बंद एसी कमरे में बैठे बड़े-बड़े लेख ठेलने से क्या होता है? आपने तो बहुत बड़ा काम किया है. जमीनी स्तर पर एक कंकड़ भी हटा देना बहुत बड़ा काम है भाई !
ReplyDeleteआपका कार्य सहरा्नीय है.. गिलहरी वाली कहानी याद आ गई..
ReplyDeleteआपके जज्बे को सलाम!!!
आप सभी का धन्यवाद मेरा हौसला बढाने के लिये.. मसिजिवी जी से मैं भी सहमत हूं..
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