"पापा एक चौपाया जानवर होते हैं। उनके दो कान, दो आंख, एक नाक, एक मुह, दो सींग, चार पैर और एक पूंछ होती है। पापा दूध देती है। पापा लाल, काला, सफेद और पीले रंगों में पाये जाते हैं।" ये निबंध मैंने कब लिखा था ये मुझे याद भी नहीं है पर मेरे पापा मम्मी बताते हैं कि जब मैं बहुत छोटा था तब एक दिन मैं विद्यालय से घर आया और बहुत खुश होकर बताया कि आज हमें गाय पर निबंध लिखना सिखाया गया है। मेरे पापाजी ने कहा कि ठीक है जब निबंध लिखना सीख गये हो तो पापा के उपर निबंध लिखो, और मैंने जो लिखा था वो आप सबों के सामने है।
आज मेरे पापाजी का जन्मदिन है और आज मुझे उनसे जुड़ी कई बातें याद आ रही है, और् उन यादों की पिटारी में से कुछ चुनिंदा यादें मैं आज यहां आप लोगों के साथ बांट रहा हूं।
मुझे याद है एक बार एक योगा कक्षा में जब कहा गया था कि आंखे बंद करके उस चीज के बारे में सोचो जो तुम्हें सबसे अधिक खुशी देती है और बस डूब जाओ उन क्षणों में, मानों वो सजीव हों। सभी लोगों कि तरह मैंने भी अपनी आंखें बंद की और सबसे अधिक खुशी के क्षणों को ढूंढने लगा। बहुत मुश्किल था ये सब, कई दृश्य आंखों के सामने आये और गये मगर अंततः मैंने ढूंढ ही लिया। मैंने पाया कि जब कभी मैं घर लौटता हूं तो मेरे पापाजी मुझे अपने सीने से लगाकर आशीर्वाद देते हैं और वही क्षण मेरे लिये सबसे खुशी का क्षण होता है।
पापाजी से मुझे घर में सबसे ज्यादा दुलार मिला है। मैं तो उनके गोद में 15-16 साल के उम्र तक बैठा हूं। वो बचपन में मुझे "पुछड़ू" कह कर बुलाते थे। इस नाम से बुलाना उन्होंने कब छोड़ा ये तो पता नहीं पर वे यादें तो अब शायद मेरे साथ ही जायेगी।
मेरे पिताजी एक प्रशासनिक अधिकारी हैं, और लाल-फितासाही नामक काजल की कोठरी से बेदाग निकलते हुये उन्होंने हम सभी भाई-बहनों को नैतिकता, ईमानदारी और मनुष्यता का अच्छा पाठ पढाया है। उन्होंने मुझे एक बार कभी एक बात कही थी जो शायद उन्हें भी आज याद ना हो। उन्होंने कहा था की "मनुष्य कि पहचान इससे नहीं होती है कि वो अपने से उपर वालों से कैसा व्यवहार करता है, बल्की इससे होता है की वो अपने से नीचे वालों से कैसा व्यवहार करता है।" शायद ये उनका सिखाया हुआ पाठ ही है कि बचपन से घर में सरकारी नौकरों की फौज होते हुये भी हम सभी भाई-बहन आज भी व्यवसायिक तौर पर कोई बहुत निचले स्तर के व्यक्ति से मिलते हैं तो इंसानों कि तरह ही मिलते हैं।
अगर आज कोई मुझसे पूछे कि बड़े होकर क्या बनना चाहोगे तो मेरा जवाब होगा कि अपने पापाजी कि तरह अच्छा इंसान बनना चाहूंगा।
आपके पापाजी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें। भगवान करे आपके सर पर हमेशा उनके स्नेह की छाया बनी रहे।
ReplyDeleteहमारी ओर से भी मुबारकबाद । आपकी इस पोस्ट ने आपके पापा को जरूर खुशी दी होगी ।
ReplyDeleteआपके पापा से मिल कर अच्छा लगा। आपका निबन्ध भी पसन्द आया :-)
ReplyDeleteIt's really very interesting.
ReplyDeleteMeri taraf se bhi UNCLE KO "जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें। "
निबन्ध खुब रहा :)
ReplyDeleteजन्मदिन मुबारक.
पिता बनने के बाद समझ में आया की पिता बाहर से कठोर होते है मगर् अन्दर से माँ का सा दिल रखते है.
आपके पापा को जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो ।
ReplyDeleteषुभ कामनाये जी आपके पापा को भी और आपकॊ भी कि उन की छत्र छाया आपको लंबे समय तक मिलती रहे..बाकी हर पापा हर बच्चे कॊ भगवान की और से प्रदत्त उसका अपना व्यक्तिगत बैंकर भी होता है जी..:)
ReplyDeleteएक उम्र में पिता सबसे अच्छा मित्र होते हैं। और आपने जैसा स्वभाव अपने पिता जी का बताया है - वे निश्चय ही होंगे।
ReplyDeleteजन्मदिन मुबारक.
aapke papa ko janmadin ki hardik badhai.ye story preranadayak hai, mujhe bahoot appeal ki.Har papa ko apne bete ko yahi seekh deni chahiye.
ReplyDeleteshyam sharma,journalist, jaipur
jee.sirf doodh nahi dete,lekin dooh liye jaate hain.
ReplyDeletehttp://chavannichap.blogspot.com/
आप सभी को मेरे पापाजी कि तरफ़ से बहुत-बहुत धन्यवाद..
ReplyDelete@ज्ञान जी : आपने बिलकुल सही कहा है..