यादों में एक चेहरा था..
चेहरे पे एक मासूमियत,
और उस मासूमियत में थी मेरी जिंदगी..
आज ना वो यदें हैं,
ना ही वो चेहरा,
और ना ही वो मासूमियत..
ऐसा लगता है जैसे वो मासूमियत,
कहीं गुम हो गई हो,
जीवन के इस वस्तविकता में..
उस मासूमियत को,
तलाशता फिर रहा हूं हर जगह..
पर वि इन प्लस्टिक के चेहरों में,
कहीं गुम सी नजर आती है..
पर जिंदगी किसी के बिना रूकती नहीं,
वो तो निर्बाध गति से चलती जाती है..
मासूमियत और प्लास्टिक के चेहरे - वाह; शायद उनमें मिल जाये पर रियल लाइफ के प्लास्टिक के चेहरों में मिलना कठिन होता जा रहा है।
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