Friday, December 31, 2010

बधाईयों की किंकर्तव्यविमूढ़ता

पिछले कुछ दिनों से परेशान हूँ, सोशल नेट्वर्किंग साईट्स पर नववर्ष की शुभकामनाओं से.. ऑरकुट पर मेरे जितने भी मित्र हैं लगभग उन सभी को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ, अगर वे मेरे वर्चुअल मित्र हैं तब भी वे आम वर्चुअल मित्र की श्रेणी में नहीं आते हैं.. मगर फेसबुक पर कई लोग ऐसे हैं जिन्हें मैं व्यक्तिगत...

Monday, December 20, 2010

केछू पप्प!!

भैया का बेटा.. उम्र दो वर्ष, तीन माह.. मुझे छोटे पापा बोलने कि कोशिश में मात्र पापा ही बोल पाता है, छोटे पापा शब्द उसके लिए कुछ अधिक ही बड़ा है.. इस गधे को, अजी बुरा ना माने मैं अक्सरहां प्यार से गधा-गधी बुलाता ही रहता हूं,...

Wednesday, December 15, 2010

दो बजिया बैराग का एक और संस्करण

एक जमाने के बाद इतने लंबे समय के लिए घर पर हूँ.. एक लंबे समय के बाद मैं इतने लंबे समय तक खुश भी हूँ.. खुश क्यों हूँ? सुबह-शाम, उठते-बैठते इनकी शक्लें देखने को मिल जाती है.. सिर्फ इतना ही बहुत है मेरे लिए.. इतना कि मुझे अपने Loss of Payment का भी गम नहीं.. जी हाँ, Loss of Payment पर छुट्टियाँ लेकर घर...

Friday, December 10, 2010

एक सड़क जो कभी शुरू नहीं हुई

आज तक कभी कोई दिखा नहीं है उस घर में.. कभी उसके बरामदे में टहलते हुये भी नहीं.. नहीं-नहीं! कभी-कभी कोई दिख जाता है.. शायद गर्मियों कि शाम जब बिजली आंख-मिचौली खेल रही हो.. सर्दियों में तो शायद कभी नहीं.. गर्मियों के दिनों...

Tuesday, December 07, 2010

घंटा हिंदी ब्लॉगजगत!!

हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगजगत!!हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगजगत!!हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगजगत!!हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगिंग, घंटा हिंदी ब्लॉगजगत!! अधिकाँश हिंदी में ब्लॉग लिखने वाले पता नहीं कब तक हिंदी ब्लॉगिंग को शैशव अवस्था में मान कर एक्सक्यूज देते...

Monday, December 06, 2010

6 दिसंबर, डा.आम्बेडकर जी और बावरी मस्जिद

छः दिसंबर को भारत देश के लिए गौरवपूर्ण क्षण के साथ शर्मनाक क्षण एक साथ आते हैं.. शर्मनाक क्षण ऐसे जिसे हमें याद ना करना चाहिए, उसे हमारी मीडिया चिल्ला चिल्ला कर उत्तेजित आवाज में खबरें बांचती है, साथ में एक सवाल भी किसी...

Tuesday, November 16, 2010

ताला

आज मैंने उसे बड़े गौर से देखा.. कल्पना अक्सर लोगों को कुछ अधिक ही जहीन बना देती है.. हकीकत से अधिक खूबसूरत भी कल्पना ही बनाती है और कल्पना ही उनमे महान होने का अहसास भी जगाती है.. शायद मैं भी खुद एक कल्पना सा होता जा रहा हूँ, यथार्थ से कहीं दूर.. एक अलग जहान अपनी सी भी लगती है..वह अभी भी वैसी ही थी जैसी...

Friday, November 05, 2010

ड्राफ्ट्स

१:"आखिर मैं कहाँ चला जाता हूँ? अक्सर कम्प्युटर के स्क्रीन पर नजर टिकी होती है.. स्क्रीन पर आते-जाते, गिरते-पड़ते अक्षरों को देखते हुए भी उन्हें नहीं देखता होता हूँ क्या? या फिर उन्हें देख कर भी ना देखते हुए मैं अपनी एक अलग दुनिया बुनता रहता हूँ और रह-रह कर उस दुनिया से इस दुनिया तक के बीच सामंजस्य बनाने...

Thursday, November 04, 2010

केछू अब बला औल समझदार हो गया है

केशू से पूछे गए कुछ सवाल के जवाब (केशू के बारे में जानने के लिए यहाँ देखें):प्रश्न : केछू के पास कितना हाथ है?उत्तर : टू!प्रश्न : केछू के पास कितना पैर है?उत्तर : टू!प्रश्न : केछू के नाक में कितना छेद है?उत्तर : टू!प्रश्न...

Sunday, October 31, 2010

पुराने डायरी का पन्ना

यह बातें मैंने ३० जून २०१० को लिखी थी.. लिखते वक्त जाने किन बातों को सोचते हुए इतनी तल्खियत में लिख गया था.. आज ना वे बातें याद हैं और ना ही उन बातों के पीछे कि तल्खियत.. फिर भी इसे जस का तस आप तक भेज रहा हूँ..अब अच्छी कहे या बुरी, मगर जनाब आदत तो आदत होती है.. और जो छूट जाये वह आदत ही क्या? जैसे मेरी...

Saturday, October 23, 2010

किस्सों में बंधा एक पात्र

हर बार घर से वापस आने का समय अजीब उहापोह लिए होता रहा है, इस बार भी कुछ अलग नहीं.. अंतर सिर्फ इतना की हर बार एक-दो दिन पहले ही सारे सामान तैयार रखता था आखिर में होने वाली हड़बड़ी से बचने के लिए, मगर अबकी सारा काम आखिरी दिन के लिए ही छोड़ दिया.. साढ़े बारह बजे के आस-पास घर से निकलना भी था और आठ साढ़े...

Wednesday, October 20, 2010

पटनियाया पोस्ट!!

किसी शहर से प्यार करना भी अपने आप में अजीब होता है.. मुझे तो कई शहरों से प्यार हुआ.. सीतामढ़ी, चक्रधरपुर, वेल्लोर, चेन्नई, पटना!!! पटना इन सबमें भी कुछ अव्वल दर्जे का.. सोलह हजार पटरानियों में रुक्मणि जैसा रुतबा!! जवानी के दिनों में हौसलाअफजाई से लेकर आवारागर्दी तक.. सब जाना पटना से.. अब लगभग सात-आठ...

Monday, October 18, 2010

हम ! जो तारीख राहों में मारे गए.

अधिक कुछ नहीं कहूँगा, बस ज़िया मोहयुद्दीन की आवाज़ में यह नज़्म सुनिए :तेरे होंठो के फूलों की चाहत में हम,तार के खुश्क टहनी पे वारे गए..तेरे हाथों के शम्मों की हसरत में हम,नीम तारीख राहों में मारे गए.. सूलियों पर हमारे लबों से परे,तेरे होंठों की लाली लपकती रही..तेरी जुल्फ़ों कि मस्ती बरसती रही,तेरे...

Saturday, October 16, 2010

श्रवण कुमार और मैं भला !!!!

कल अहले सुबह बात बेबात कैसे शुरू हुई कुछ याद नहीं है.. मगर बात विकास के साथ हो रही थी और विषय श्रवण कुमार से सम्बंधित.. श्रवण कुमार कैसे थे अथवा उसके माता-पिता कैसे थे, उनकी मृत्यु कैसे हुई, इत्यादी.. मुझे कुछ ही दिन पहले...

Wednesday, October 13, 2010

परिभाषा

हर किसी कि उम्र में उसके हिस्से का संघर्ष छिपा होता है.. वह दिन याद आता है, जब दुनिया के साथ संघर्ष के सिलसिले की शुरुवात नहीं हुई थी तब सोचता था.. चौंधिया कर किसी दूसरे के किस्सों को सुनता था.. गुनता था.. व आह्लादित हुआ...

Sunday, October 10, 2010

रामायण मेरी नजर से

अभी कुछ दिन पहले एक कामिक्स पढ़ रहा था "वेताल/फैंटम" का.. उसमे उसने एक ट्रक के पहिये को जैक लगा कर उठा दिया, वहाँ खड़े बहुत सारे जंगली लोगों ने एक नयी कहावत कि शुरुवात कर दी "वेताल में सौ आदमियों जितना बल है, उसने अकेले...

Friday, September 17, 2010

एक अधूरी कविता

उस दिन जब तूने छुवा थाअधरों से और किये थेकुछ गुमनाम से वादे..अनकहे से वादे..चुपचाप से वादे..कुछ वादियाँ सी घिर आयी थी तब,जिसकी धुंध में हम गुम हुए से थे..कुछ समय कि हमारी चुप्पी,आदिकाल का सन्नाटा..अपनी तर्जनी सेमुझ पर कुछ आकार बनाती सी,फिर हवाओं मेंउस आकार का घुलता जाना..किसी धुवें की तरह..अभी मैं भी...

Sunday, September 12, 2010

बेवजह

धीरे-धीरे हमारे चेहरे भी एकाकार होने लगे थे.. जैसे मेरा अस्तित्व तुममे या तुम्हारा अस्तित्व मुझमे डाल्यूट होता जा रहा हो किसी केमिकल की तरह.. धीरे-धीरे हमारे द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले शब्द भी सिमट कर एक होते जा रहे...

Tuesday, September 07, 2010

मेरे घर के बच्चों को डराने के नायाब नुस्खे

बात अधिक पुरानी नहीं है.. इसकी शुरुवात सन 2004 के कुछ साल बाद हुई, जब दीदी कि बड़ी बिटिया को यह समझ आने लगा कि डरना क्या होता है.. फिर शुरू हुई यह दास्तान.. मेरी आवाज गूंजने लगी घर में, "अरे, मेरा मोटा वाला डंडा और रस्सी...

Saturday, August 21, 2010

क्यों पार्टनर, आपकी पोलिटिक्स क्या है?

"Oh! So you are from Lalu's place?"यह एक ऐसा जुमला है जो बिहार से बाहर निकलने पर जाने कितनी ही बार सुना हूँ.. मानो बिहार में लालू के अलावा और रहता ही ना हो.. वह चाहे कोई भी हो, उसे जैसे ही पता चलता है कि यह बन्दा उत्तर भारत से है तो स्वाभाविक तौर से वह पूछ बैठता है कि कहाँ से हो? उत्तर बिहार के रूप...

Monday, August 16, 2010

दो बजिया बैराग्य - भाग छः

ऐसा लग रहा है जैसे मैं कुछ अधिक ही आत्मकेंद्रित हुआ जा रहा हूँ.. सुबह घर में अकेले.. दिन भर दफ्तर में अकेले.. और शाम में भी अकेले ही.. ऐसा नहीं की किसी मजबूरी के तहत मैं अकेला रह रहा हूँ और ऐसा भी नहीं की संगी-साथी भी ना...

Tuesday, August 03, 2010

Coorg - वह चाँद, जो सारी रात साथ चलता रहा Part 3

सुबह जागने पर पाया कि वही रेल जो रात चाँद के साथ कदमताल मिला कर चल रहा था, सुबह दूर खड़े पेड़ के साथ रिले रेस लगा रहा था.. जो कुछ दूर साथ-साथ दौड़ते हैं और अचानक कुछ निश्चित दूरी तय करने के बाद किसी और पेड़ को अपने स्थान पर...

Saturday, July 31, 2010

Coorg - खुद से बातें Part 2

सूरज कि रौशनी मे बारिश होने पर इन्द्रधनुष निकलता है.. चाँद कि रौशनी मे बारिश होने पर भी वो निकलता होगा ना? हाँ!! जरूर निकलता होगा.. मगर रात कि कालिमा उसे उसी समय निगल जाती होगी.. बचपन मे किसी कहानी मे पढ़ा था, "जहाँ से इन्द्रधनुष...

Wednesday, July 28, 2010

Coorg - एक अनोखी यात्रा

दफ्तर से समय से बहुत पहले ही निकल गया.. टी.नगर बस स्टैंड के पास के लिए, जहाँ मेरा एक मित्र किसी लौज में रहता है, किसी छोटे से दूकान से पकौड़े और जलेबी खरीदा और अपने मित्र के कमरे में ही बैठ कर उसे निपटाया.. हम्म... जलेबी...