दरअसल का कल मैं वेल्लोर गया था.. इसे व्यस्तता तो नहीं कह सकते हैं, हाँ मगर परेशान जरूर था.. मेरे बेहद करीबी मित्रों में से एक 'चन्दन' के पिताजी का स्वर्गवास अप्रैल के महीने में CMC वेल्लोर में हो गया था और उन्ही का मृतक प्रमाण पत्र बनवाने के लिए मैं वेल्लोर गया था.. यूँ तो एक दफे पहले भी जा चुका था, मगर उस दिन काम नहीं हो पाया था.. मगर कल काम भी हो गया और मैं कालेज भी घूम आया..
कल का दिन वैसे भी कुछ खास था, अगर मैं कालेज के सन्दर्भ में बात करूँ तो.. कल के ही दिन, यानी 21 जुलाई 2006 को, मुझे अपनी पहली नौकरी का ऑफर लेटर मिला था.. और संयोग कुछ ऐसा बना कि वर्किंग डे होते हुए भी मुझे छुट्टी लेकर जाना पड़ा..
खैर, सुबह निकला अपनी गाडी लेकर.. हलकी बूंदा-बांदी हो रही थी.. आसमान के साफ़ होने का कोई इरादा भी नहीं दिख रहा था.. मैंने सोचा कि गाडी को बस स्टैंड के पार्किंग में लगा दूँगा और बस लेकर चला जाऊंगा.. मगर एक बार जब निकल गया तो मन में आया कि चल चलूँ इसी से.. पेट्रोल से टैंक फुल करवाया और निकल लिया.. कल जाने क्यों, ट्रैफिक भी कम थी अन्य दिनों की तुलना में..
चेन्नई-बैंगलोर हाईवे का तो मैं बस दीवाना हूँ.. कम से कम चार और अधिक से अधिक आठ लें कि सड़कें.. कहीं एक गड्ढा तक नहीं.. कोई सिग्नल नहीं.. हाइवे और फ्लाईओवर से पटी पड़ी सड़कें.. बीच में या तो फूलों कि क्यारियां लगी हुई हैं या फिर पीले रंग का बड़ा सा डिवाइडर, जिससे रात के समय सामने से आने वाली गाड़ियों कि बत्तियों से आँखे ना चौंधियाए.. चेन्नई से बाहर निकलते ही सबसे पहले श्रीपेरम्बूर(यह वही जगह है जहाँ राजिव गाँधी कि हत्या हुई थी, फिलहाल नेहरू परिवार के हर मृतक सदस्य के समान ही यहाँ भी सैकड़ों एकड़ कि जमीन इनके स्मारक कि भेंट चढा हुआ है) आता है.. हाँ, उससे पहले एक टोल गेट भी है.. शायद टोल गेट से पहले ही बारिश बन्द हो चुकी थी और मेरी रफ़्तार भी 50 से बढ़कर 75 पहुँच गया था.. उससे अधिक की रफ़्तार में चलना मुझे कल नहीं भा रहा था.. आराम से 75 कि रफ़्तार में बढे चलो..
जारी...
मैं कल कुर्ग नामक पहाड़ी इलाके में छुट्टियाँ मनाने जा रहा हूँ.. मंगलवार को वापस लौटूंगा, फिर आगे कि चर्चा करूँगा.. :)
कुर्ग वाले पोस्ट और फोटो का इन्तेजार रहेगा...
ReplyDeleteआओ घूम कर कुर्ग..फिर किस्से सुनाना. इन्तजार है.
ReplyDeleteऐश करो :) हाइवे का फोटू दिखा के निकल लिए....
ReplyDeleteफर्राटेदार यात्रा !
ReplyDeleteसड़क के बीच फूल देख कर अच्छा लगा। यहाँ शहर में भी इस तरह की कोशिशें हुई थीं। मगर फूल आने के पहले ही पौधे कार्बन से ढक गए।
ReplyDeleteतमिळ के ’आ ’ की भांति ’ उ ’ लगा कन्नड़ीकरण हो जाता है ? चैरु,बल्बु
ReplyDeleteरेलवे स्टेशन भी तो है वेल्लोर में?
ReplyDeleteउसी सड़क में और बढ़ जाते तो हमारे घर आ जाते। थोड़ा बतियाना भी हो जाता।
ReplyDelete@ दिनेश जी - जी, मुझे भी पहली बार आश्चर्य हुआ था इतने अच्छे फूल देख कर.. सभी मेंटेन भी किया जाता है..
ReplyDelete@ अफलातून जी - कुछ इसी तरह 'ओ' लगा कर मलयालम हो जाता है.. जैसे मानसिलायो(मतलब समझ गए)..
@ नीरज भाई - हाँ है ना.. उसका नाम काटपाड़ी है..
@ प्रवीण जी - उसके लिए 270 किलोमीटर और आगे जाना पड़ता.. :)
@ All - जल्दी ही इसे पूरा करता हूँ.. वैसे मैंने अधिक फोटो नहीं लिए.. जाते समय काम जल्दी कराने का सोच रहा था और आते समय अँधेरा हो गया था..
ReplyDeleteकुर्ग आहा १ बहुत सुन्दर जगह है और अगर होम स्टे में रुके तो सोने पे सुहागा |
ReplyDeleteशुभकामनाये
अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteतुम्हारे साथ प्रोब्लम ये है कि तुम शब्दों का सेक्स चेंज कर देते हो..
ReplyDelete@ नीरज.. तुम रह जगह रेलवे स्टेशन ढूंढते रहते हो..
ReplyDeleteआजाओ छुट्टी मना के.. फिर बाकि बात पढते है...
खूब घूमिये हमें किस्सों का इंतज़ार रहेगा ...और हाँ "वेल्लोरा "का मतलब हमें नहीं समझ आया :(
ReplyDeleteबहुत बढिया, कुर्ग पिछले साल हम भी गये थे. बहुत सुंदर जगह है. आपके लौटने का इंतजार करते हैं.
ReplyDeleteरामराम
PD बाबू टिप्पनी आझे दे दें कि मंगल्वार के बाद... चलो आइए गए हैं त लिखिये देते हैं... हम त अईसने एगो दक्खिन भारतीय संस्था में काम करते हैं…हमरे इहाँ त सब का बोलिए बदल गया है..हिंदि चाहे अंगरेजी, सब मद्रासिए इस्टाइल में बोलता है लोग... कभी कभी हमहूँ अंगरेजी बोलने लगते हैं फोन पर त घर का लोग कहता है कि तुम कईसे बोलते हो..अब का बताएँ... खैर बंगलोर चेन्नई हाईवे का त हम्हूँ दिवाना हैं...
ReplyDeleteकुर्गा आ मुरगा
ReplyDeleteतल कावेरी जरूर जाना
बागेपल्ली = भागे बिल्ली
ReplyDeleteघूमिए और पूरा वृतान्त बताइए।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
कुर्ग के चित्र दिखाइयेगा। हमें भी जाना है।
ReplyDeleteचेन्नई-बैंगलोर हाईवे का तो मैं बस दीवाना हूँ.. कम से कम चार और अधिक से अधिक आठ लें कि सड़कें.. कहीं एक गड्ढा तक नहीं..'
ReplyDelete- क्या भारत में ऐसी सड़कें भी पायी जाती हैं ?
वेल्लोरा में सौमित्र से मिले कि नहीं!
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteभाई तुम लिखते अच्छा हो पर कई बार तुम्हे पढ़कर दिल दुखी हो जाता है. कारण वही जो कुश ने बताया, व्याकरण की भूलें (खासकर लिंग सम्बन्धी गलतियाँ). दक्षिण भारतीय भाषाओँ का व्याकरण सीख रहे हो, कुछ करो इस हिंदी का भी, यह तो मातृभाषा है अपनी.
ReplyDelete