१:"आखिर मैं कहाँ चला जाता हूँ? अक्सर कम्प्युटर के स्क्रीन पर नजर टिकी होती है.. स्क्रीन पर आते-जाते, गिरते-पड़ते अक्षरों को देखते हुए भी उन्हें नहीं देखता होता हूँ क्या? या फिर उन्हें देख कर भी ना देखते हुए मैं अपनी एक अलग दुनिया बुनता रहता हूँ और रह-रह कर उस दुनिया से इस दुनिया तक के बीच सामंजस्य बनाने के लिए आँखें स्क्रीन पर टिकी रहती है?" सच भी है कि हर किसी कि अपनी दुनिया भी होती है.. जिसे वह हमेशा साथ लेकर चलता है.. हर एक कि अपनी दुनिया दूसरे कि दुनिया से जुदा भी होती है.. इस दुनिया के साथ चलते हुए किसी दूसरी दुनिया में जीने की कला हर एक को आती है.. और उम्र के साथ-साथ उस दुनिया में भी बदलाव आता है..
२:मैं आस-पास देखने समझने कि कोशिश करता हूँ.. कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता.. शहर, जाने कौन सा भी हो, अपनी सी शक्लें लिए भागता सा दिखता है.. मैं उठता हूँ.. जी जान लगा कर दौड़ता हूँ.. थकता हूँ.. हांफता हूँ.. रूकता हूँ.. गरियाता हूँ शहर वालों को.. फिर दौड़ने कि हालत में ना होने पर बैठ जाता हूँ, सोचते हुए कि इस रेस में ही जितने वाले क्या जीते? मन का दूसरा कोना बताता है कि कहीं अंगूर खट्टे ना हों.. उसे डपियाटा हूँ, आँखें तरेरता हूँ, इशारों में समझाता हूँ जिससे दोबारा ऐसी बात ना कहे.. वो सब अनसुना करके अपना राग गाये चला जाता है.. एक हिस्सा इस दौड़ को ख़ारिज करने पर तुला हुआ है तो दूसरा अंगूर खट्टे बताना चाह रहा है.. दोनों का शोर में दिमाग पर जोर अधिक होता है.. बेदम होकर गिर जाता हूँ.. सुबह घर वाले बताते हैं कि फिर मैं देर रात तक जगा हुआ था और बेसुध हो कर बिस्तर पर गिरा हुआ था, साथ में सलाह भी आती है कि अपना समय सारिणी को बदलना होगा.. मैं प्रतिकार नहीं कर पाता, बता नहीं पाता हूँ कि अभी तक मैं सोया ही नहीं हूँ.. कितनी रातों से नहीं सोया हूँ.. हर रोज का यही किस्सा.. लोग जिसे सोना कहते हैं.. मेरे लिए वह थक कर होशोहवास खो देना है..
३:सिगरेट का एक अधजला टुकड़ा असल की हकीकत से रूबरू कराता सा लगता है.. उन दिनों कि याद दिलाता है.. मुफलिसी की.. आधा टुकड़ा जला कर, आधे को अगले समय के लिए बुझा कर रख लेना.. जले टुकड़े को फिर से सुलगाने पर एक अलग ही कड़वाहट मुंह में भर जाना.. यह सब उस रात तक चलता रहा जिसके अगले दिन बढ़ी हुई तनख्वाह ना मिल गई थी.. सब अब मुझे मेरी दुनिया से अलग दुनिया सा लगता है.. या शायद मेरी ही दुनिया का एक अलग आयाम हो जिसका सामना मैं नहीं करना चाहता हूँ.. कहीं मुझे चौथा आयाम भी तो नहीं दिख रहा है, मनुष्यों कि नज़रों से इतर? कहीं जिंदगी हर पल एक नए आयाम में तो प्रवेश नहीं करती है, जिसका पता हमें नहीं लगता है?
जिंदगी भी सिगरेट जैसी ही होती है, यकीन के साथ तो नहीं कह सकता मगर शायद कुछ-कुछ.. जब तक इसे लबों से लगाए रखते हैं, यह एक अलग ही सुखद अहसास देता रहता है.. नशीला अहसास.. जिंदगी भी तो नशा ही है! एक बार इसे बुझा कर और फिर जलाना वैसी ही कड़वाहट घोल जाता है जैसे सिगरेट, या जैसे जिंदगी..
४:लोग समझते हैं कि मुझे ना सोने की बीमारी है.. अक्सरहां मुझे जगा हुआ ही या आँख खोले किसी सपने में जीते हुए पाते हैं.. सपने अक्सर अच्छे या बुरे होते हैं.. बचपन में एक सपना अक्सर बहुत परेशान करता था मुझे.. अब वह सपना तो नहीं आता, मगर उस सपने का डर अभी तक गया नहीं है.. अब तक किसी से मैंने यह बांटा नहीं है, माँ-पापा से भी नहीं जिनसे अपने बीते प्रेम प्रसंग पर भी बेधड़क चर्चा कर लेता हूँ.. एक बैलगाड़ी और उसमें बंधे दो बैल.. वे बैल बैलगाड़ी के साथ मेरा पीछा करते थे.. मुझे अपने सींघ से डराते थे.. मगर घिर जाने पर मारते नहीं थे, मेरे घिरने पर मुझे मेरे जो कोई भी प्रियजन बचाने आते थे उनका खून पीने लगते.. वे प्रियजन अक्सर अपना रूप बदल कर आते थे.. कभी माँ, कभी पापा, कभी दादी, कभी दीदी.. मैं डरकर जगता, पसीने में भींगा हुआ, फिर माँ से चिपककर सो रहता..
५:दूसरों का तो पता नहीं मगर मेरे साथ यह अक्सर होता है.. कहीं भाग जाने का मन करने लगता है.. इस "कहीं" शब्द का कोई निश्चित परिभाषा तय नहीं है, यह "कहीं" कहीं भी हो सकता है.. जब ऐसी इच्छा होती है उस वक़्त भी इस "कहीं" का कोई अपना निश्चित "पता" कहीं नहीं होता है.. मगर जिस अक्षांस और देशांतर में उस पल मैं होता हूँ, वहाँ होने कि इच्छा नहीं होती है.. बस भाग जाने का मन करता है.. ये कोई अवसाद कि स्थिति में ही हो, यह तय नहीं है.. सामान्य अवस्था में रहते हुए भी उस तरह कि बातें मन में पनपने लगती है..
ये सभी बातें पांच अलग-अलग विचारावस्था में लिखी गई थी जो मेरे ड्राफ्ट में रखी हुई थी.. आज सभी को एक ही जगह इक्कट्ठा करके यहाँ पोस्ट कर दिया.. अब आपको जो कुछ भी पढ़ने-समझने जैसा लगे वह पढ़े समझे..
.
ReplyDeleteBeautifully written. Nice post !
.
मैं आखिर तुम्हारी हर पोस्ट को पढता ही क्यों हूँ...
ReplyDeleteसुबह से कुछ अलग ख्यालों में खोया था और अब अलग ख्यालों में खो गया.
जीवन का अनमनापन कुछ नयेपन के बीज लेकर आता है।
ReplyDeleteदीवाली की शुभकामनायें। इसी को ईमेल मान लिया जाये। :)
''मेमोरीज, ड्रीम्स, रिफलेक्शन्स.....मन के किसी तल पर हमारे अपने निजी शब्द-संदर्भ कोश भी होते हैं, जो कभी धारणा, कभी रूढ़ि तो कभी पूर्वग्रह लगते हैं, ..... और 'लिंक' के बिना असम्बद्ध जैसे भी। शायद यही रचनात्मक रूप में कभी भाव-ऋचा और स्पर्श-वास्तु बन कर उजागर होते हैं।''
ReplyDeleteपिछले दिनों अपने पोस्ट 'फिल्मी पटना' का उक्त उद्धरण याद आया, मौजूं लगा, इसलिए वही यहां कापी-पेस्ट कर रहा हूं.
हर किसी कि अपनी दुनिया भी होती है.. जिसे वह हमेशा साथ लेकर चलता है.. हर एक कि अपनी दुनिया दूसरे कि दुनिया से जुदा भी होती है.. इस दुनिया के साथ चलते हुए किसी दूसरी दुनिया में जीने की कला हर एक को आती है.. और उम्र के साथ-साथ उस दुनिया में भी बदलाव आता है......................लोग जिसे सोना कहते हैं.. मेरे लिए वह थक कर होशोहवास खो देना है...................सिगरेट का एक अधजला टुकड़ा असल की हकीकत से रूबरू कराता सा लगता है.. उन दिनों कि याद दिलाता है.. मुफलिसी की................जिंदगी हर पल एक नए आयाम में तो प्रवेश नहीं करती है, जिसका पता हमें नहीं लगता है..................लोग समझते हैं कि मुझे ना सोने की बीमारी है.. अक्सरहां मुझे जगा हुआ ही या आँख खोले किसी सपने में जीते हुए पाते हैं.. सपने अक्सर अच्छे या बुरे होते हैं.................... मैं डरकर जगता, पसीने में भींगा हुआ, फिर माँ से चिपककर सो रहता..........................
ReplyDelete- बस कुछ समझना नहीं चाहता ...बस पोस्ट पढ़ गया हूँ....जिन्दगी की हर स्टेज की एक अलग कहानी ...कहानी क्या हकीकत ही है...मगर इसे कहानी कह कर हकीकत की कडवाहट कम करना चाहते हैं..........और क्या बोलूं मेरी समझ से बाहर है.............मैं यहाँ मजाक नहीं कर रहा बस कुछ और कहने को जी नहीं चाहता ...हाँ पोस्ट के लिए शुक्रिया....
प्यारे ! जिन्दगी इत्ती आसन होती तो इत्ते ड्राफ्ट्स कैसे होते?
ReplyDelete......और चलते चलते सभी टीप-कर्ताओं को दीपोत्सव की शुभकामनाएं !....
@पी डी को ई-मेल कर रहे हैं !
राज भाटिया जी से क्षमा सहित यह सूचित करना चाहता हूँ कि मैंने उनका कमेन्ट यहाँ से मिटा दिया है.. उनके अलावा भी कुछ कमेन्ट यहाँ दीपावली कि शुभकामनाओं समेत आये हैं मगर उनके लिखे से यह झलक रहा है कि उन्होंने यह पोस्ट पढ़ने के बाद चुहल में बधाई भी दे डाली.. मगर राज जी के कमेन्ट में पूरी तरह से "कापी-पेस्ट" कि झलक थी, जो पोस्ट बिना पढ़े मात्र पेस्ट की जाती है..
ReplyDeletevakai khoob soorat hai aapki duniya. shubh kamnayen
ReplyDelete