Wednesday, July 28, 2010

Coorg - एक अनोखी यात्रा

दफ्तर से समय से बहुत पहले ही निकल गया.. टी.नगर बस स्टैंड के पास के लिए, जहाँ मेरा एक मित्र किसी लौज में रहता है, किसी छोटे से दूकान से पकौड़े और जलेबी खरीदा और अपने मित्र के कमरे में ही बैठ कर उसे निपटाया.. हम्म... जलेबी अच्छी थी, एक दफे फिर जाने का इरादा है.. अपने लिए कम, दोस्तों के लिए अधिक.. उन्हें भी वह जलेबी शायद अच्छा लगे.. दो मिनट के पैदल रस्ते पर माम्बलम लोकल रेलवे स्टेशन है उसके घर से, वहाँ से लोकल ट्रेन लेकर हम चेन्नई सेन्ट्रल भी पहुँच गए.. फिर कुछ खास नहीं हुआ, बस हम ट्रेन में सवार होकर मैसूर के लिए निकल लिए जहाँ से हमें कुर्ग के लिए बस लेनी थी.. हाँ, मगर सभी उत्साहित जरूर थे..

पहले रेलवे टिकट लोग टिकट खिडकी से ही लेते थे, और पूरे ग्रुप को एक साथ एक ही कूपे में टिकट मिल भी जाया करता था.. मगर अब जमाना इंटरनेट का है और लोग वहीं से टिकट भी लेते हैं.. नतीजा यह हुआ था कि हम, कुल चालीस लोग, पूरे ट्रेन में छितराए से हुए थे.. लगभग पांच-छः कूपे में हम सभी सवार थे.. आधे लोग सिर्फ और सिर्फ पीने के ही उद्देश्य से आये थे, और पी कर उल-जलूल बातें भी कर रहे थे.. कुछ लोग ऐसे भी थे जो पीने के बाद भी संभले हुए थे, और कुछ लोग वहाँ पहुँच कर पीने की चाह पाले हुए थे.. बाकी बचे आधे लोग इन आधे लोगों कि दबे जुबान बुराई करते हुए अपनी-अपनी तरह के बातों में लगे हुए थे.. कुछ मेरे जैसे भी थे जो कुछ समय इन आधों के साथ बैठते थे, और कुछ समय उन आधों के साथ.. पीने वालों के साथ बैठने में कोई हर्ज नहीं होने के साथ-साथ ना पीने का काम्बिनेशन होने का कुछ तो फायदा होना ही चाहिए था.. *

ग्रुप में बैठ कर शोर-शराबा करना, हंसी मजाक करना मुझे भी बहुत भाता है.. मगर एक हद तक ही, उसके बाद कुछ समय अकेले बैठने की इच्छा होने लगती है.. मुझे मेरे व्यावसायिक दोस्तों ने इसका मौका भी खूब दिया.. मेरे कूपे का टिकट मुझे सौंप कर वे सभी दूसरे कूपे कि और निकल लिए.. मैं सामान कि रखवाली के साथ-साथ कभी खिडकी से बाहर झांकता तो कभी अपने हाथ में पकडे कमलेश्वर कि बातें पढता.. कमलेश्वर को जिसने पढ़ा है वही इसमें डूबने के आनंद को जान सकता है..

रात गहरा चुकी थी और बाहर अँधेरा छाया हुआ था.. बगल में साथ चलते सड़क से कभी-कभी अचानक किसी गाड़ी की बत्ती चमक कर निकल जा रही थी.. किसी छोटे से स्टेशन से तेजी से निकलते हुए रेल के पटरियों के बदलने का शोर एक अलग ही संगीत पैदा करता है, उस संगीत को आत्मसात करने के लिए I-pod का हेडफोन मैं कान से निकालता हूँ और थोड़ी देर के लिए खो जाता हूँ.. यह संगीत सिर्फ और सिर्फ स्लीपर या जनरल डब्बे वालों को ही नसीब है, कृपया ए.सी. वाले यात्री मित्र इसके बारे में ना ही पूछे तो बेहतर! "Ticket Please" की आवाज से यथार्थ में वापस आना कुछ अच्छा नहीं लगा.. खैर, टिकट तो दिखाना ही था.. मैंने अपने टिकट का प्रिंट-आउट सामने करके अपना पर्स निकालना चाहा, जिसमे मेरा ID कार्ड था, मगर टीटी को उसमे कोई रुचि नहीं थी..

* - यह मुझे भी पता है कि रेल मे शराब पीना आपराधिक श्रेणी मे आता है.. मगर पी कर रेल मे सवार होना भी उसी श्रेणी मे आता है या नहीं, यह मुझे नहीं पता.. कृपया मेरे नैतिकतावादी मित्र मुझसे सवाल-जवाब ना करें.. वैसे भी मैं उन सभी कि जिम्मेवारी नहीं ले रखा था जो पी कर चढ़े हुए थे..

जारी...


नोट - वेल्लोरा नामक सीरीज को यहीं छोड़ कर इसे लिख रहा हूँ.. अभी यह दिमाग मे तरोताजा है, शायद बाद मे ना रहे.. इसके बाद उसे भी लिखूंगा..

17 comments:

  1. वाह ये भी खूब सवाल उठाया " यह मुझे भी पता है कि रेल मे शराब पीना आपराधिक श्रेणी मे आता है.. मगर पी कर रेल मे सवार होना भी उसी श्रेणी मे आता है या नहीं, यह मुझे नहीं पता.. " बड़ी जल्दी खत्म कर दी ये पोस्ट ...शुरू हुयी नहीं कि खत्म. अगली कड़ी काब आएगी?

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  2. मजा आ गया भाई...मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था की कब कुर्ग की कहानी लिखोगे :)
    और हम भी स्लीपर और जनरल क्लास के श्रेणी में ही आते हैं....ऐ.सी में तो चढ़ लेते हैं कभी कभी...:)

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  3. अगली पोस्ट जल्दी लाओ अब

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  4. मैं भी चढ़ लिया आपके पांछूं डब्ल्यू.टी. :)

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  5. आगे की यात्रा का इन्तजार है..ये तो अभी शुरु हुई और खतम!

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  6. कमलेश्वर मैं भी डूबा था कभी।

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  7. चुपके से बंगलोर होकर निकल गये और बताये भी नहीं। हम एसी से खटर पटर का शोर सुनने कई बार दरवाजे के पास जाते हैं।

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  8. " यह मुझे भी पता है कि रेल मे शराब पीना आपराधिक श्रेणी मे आता है.. मगर पी कर रेल मे सवार होना भी उसी श्रेणी मे आता है या नहीं, यह मुझे नहीं पता..
    Jabardastt baat kahi hai .

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  9. लगे रहो भाई जल्दी जल्दी करो।

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  10. बहुत अच्छी पोस्ट......... प्रशांत तुम्हारा बर्थडे आ रहा है.... ट्रीट चाहिए...

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  11. पीडी बाबू..ई का!!! बंद लगी होने खुलते ही के इस्टाइल में कूर्ग जात्रा लटका दिए.. चलिए लटके हैं हमहूँ पायदान पर...

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  12. बाकी तो ठीक लेकिन जलेबी की बात लिखना जरूरी था ? :)

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  13. यार.....मतलब एकदम हद करते हो? ई जीलेबी और पकोड़ा का क्या मतलब है? हाएं? और पोस्ट ऐसे छोड़ दिए हो जैसे बिना चटनी के पकोड़ा...पूरा करो हाली हाली!

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  14. जबलपुर रेल्वे स्टेशन पर एक बोर्ड लगा है . जिसमे लिखा है पीकर चढ़ने वाले को उतार दिया जाएगा और प्रताड़ित किया जाएगा :)

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  15. आगे की यात्रा का इन्तजार है..ये तो अभी शुरु हुई और खतम!
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    महफूज भाई ! बढ़िया बात बताए हैं जी, अर्रे जन्मदिनोत्सव यानि कि ट्रीट त लेके ही रहेंगे. ही ही ही

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  16. सोचा तसल्ली से पढूंगा... आज आया...

    सही कहा.. सबका ठेका थोड़े ले रखा है...

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