इन पहाड़ियों के ये पेड़ क्यों इतने मतवाले होकर झूम रहे हैं? इनकी तुलना किसी से भी की जा सकती है.. कोई चाहे तो मतवाला हाथी कह दे.. कोई किसी चीज के लिए मचलता हुआ नटखट बच्चा.. कोई विरह से तडपता हुआ प्रेमी.. भूत-प्रेत मानने वाले उसमे उसे भी देख सकते हैं.. कोई इसे प्रकृति कि एक और छटा मान कर यूँ ही चलता कर दे.. रात के लगभग दो बज चुके हैं.. 6-7 डिग्री सेल्सियस के तापमान में हल्की बूंदा-बांदी में बाहर भींगते हुए मैं भी ये क्या बकवास सोच रहा हूँ.. अब मुझे जाकर सो जाना चाहिए..
इन लोगों को पीने में इतना आनंद क्यों आता है, ये मेरी समझ के बाहर है.. कुछ दफे मैंने भी पीकर नशे को महसूस किया है.. जब नशा उतरता है तो सर भारी रहता है, दिन एक अलग सा ही आलस भरा होता है.. कुल मिलाकर पूरा दिन बरबाद.. खास करके अगर कोई 5 Large से अधिक ले ले तो.. मैंने जब भी लिया था, खुद को कष्ट पहुँचाने की नीयत से ही.. अब इतने हसीन मौसम में कोई क्यों अपना दिन बरबाद करना चाहता है, यह तो वही बताए..
यहाँ लोग कितने निश्चिन्त हैं.. कोई हड़बड़ी नहीं.. किसी चीज कि जल्दी नहीं.. हर काम आराम से.. मैं आराम से हूँ, इसका मतलब ये भी आराम से ही होंगे क्या? ये पहाड़ी लोग जो गीजर क्या होता है ये भी नहीं जानते हैं और सुबह-सबेरे छः बजे से ही भाग-भाग कर हर कमरे में गरम पानी दे रहे हैं.. भले बाहर बरसात ही क्यों ना हो रही हो!!
ये सुबह-सुबह पहाड़ी घूंघट ओढ़े क्या कर रही है? क्या किसी का इन्तजार? या फिर बस अपने सारे आंसूओं को बहाकर चुपके से कहीं और निकल जाने की फिराक में है? इस झरने का पानी सफेद क्यों दिखता है? लोग बताते हैं कि पानी का कोई रंग नहीं होता है.. यक़ीनन वे झूठ बोलते होंगे.. ये बादल भी सफेद, यह झरना भी सफेद.. दोनों ही खूबसूरत.. वो भी जब सफेद कपडे में होती थी तो बला कि खूबसूरत दिखती थी, कुछ-कुछ इसी झरने सा ही.. क्या पता, शायद अब भी वैसी ही होगी.. कई साल बीत चुके हैं अब, इस पर उतने यकीन से 'यक़ीनन' नहीं कह सकता हूँ जैसे ऊपर कह गया हूँ..
जारी...
भाग 1
बेहतरीन एकालाप...दार्शनिक अंदाज!!
ReplyDeleteदारु पीने वाले ही बताएँगे तुम्हारे सवाल का जवाब... तो उसको छोडो और आगे का किस्सा सुनाओ. कुछ मजेदार... हुआ तो होगा ही.
ReplyDeleteमैं कहीं कवि न बन जाऊँ, तेरे प्यार में....
ReplyDelete:-) -> इस स्माईली से फ़िलहाल काम चलाओ...और पार्ट ३ जल्दी से लाओ :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनमोहक विवरण है। परन्तु यह बताओ कि कोई भी खाद्य या पेय यदि एक सीमा से अधिक लोगे तो क्या बीमार नहीं महसूस करोगे? यदि पाँच लिटर दूध भी पी जाओ तो भी और पाँच मुर्गे चबा जाओ तो भी, यदि पाँच दर्जन केले खा जाओ तो भी।
ReplyDeleteसच में झरने बहुत सुन्दर होते हैं और उन्हें देख जिनकी याद आए वे भी!
घुघूती बासूती
वाह अपने भूतकाल के जीवन और वर्तमान के जीवन को बेहतरीन गद्य में लिखा है, जिसमें पद्य का भी मजा आ रहा है।
ReplyDeleteयह तो हमें भी आज तक समझ में नहीं आया कि लोग पीते क्यों है, और अगर जहर पीते हैं तो जीते क्यों हैं... क्या जहर पीने के लिये... धीमा जहर..
सच में कविता सी मनमोहक पोस्ट और वो कौन ????
ReplyDeleteपीने के मामले में घुघूती जी की बात सही है. आवश्यकता से अधिक कोई भी पिएगा तो टुन्न हो हि जाएगा, फिर अगले दिन हैंगओवर...
कम या ज्यादा की बात वो करते हैं जो गन्दा पानी पीने को सही समझते हैं. ज़हर तो ज़हर ही रहेगा, चाहे कम पियो या ज़्यादा. ज़्यादा पीने से ज़्यादा नुकसान कम पीने से थोडा कम नुकसान, पर नुकसान तो है ही न!
ReplyDeleteवैसे आज की पोस्ट भाषा और शिल्प के मामले में लाजवाब है.
बहुत सुन्दर पोस्ट!
ReplyDelete--
इसकी चर्चा यहाँ भी है-
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/07/9.html
ReplyDeleteएकालाप शैली कभी कभी बहुत काम आ जाती है। जैसे कि यहाँ।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
आप देखाते जाइए..बहुत मजा आ रहा है..सचमुच जब हमको पढकर नसा आ रहा है...त देखने वाले को देखकर केतना आता होग...अईसे में नकली नसा... इसी को कहते हैं खजाना के ऊपर बईठ के भीख माँगना..
ReplyDeleteबस एक शब्द बोल पाऊंगा...अद्भुत.
ReplyDeleteकभी-कभी हममें भी यह रूप जागता था पर अब नहीं. :-)
रंग में आ रहे हो..
ReplyDeleteWOW!
ReplyDeleteकितना खूबसूरत लिखा है...अब तो कूर्ग देखने जाने का मन करने लगा.