Saturday, July 31, 2010

Coorg - खुद से बातें Part 2

सूरज कि रौशनी मे बारिश होने पर इन्द्रधनुष निकलता है.. चाँद कि रौशनी मे बारिश होने पर भी वो निकलता होगा ना? हाँ!! जरूर निकलता होगा.. मगर रात कि कालिमा उसे उसी समय निगल जाती होगी.. बचपन मे किसी कहानी मे पढ़ा था, "जहाँ से इन्द्रधनुष निकलता था, वहाँ, उसके जड़ में खुशियाँ ही खुशियाँ होती हैं.. उस कहानी के किसी बच्चे को वहाँ जाकर ढेर सारी खुशियाँ मिली थी.." क्यों ना मैं भी कुछ खुशियाँ वहीं से बटोर लाऊं.. खुशियों कि बहुत जरूरत होती है कभी-कभी.. इत्मीनान से खर्च करूँगा.. मगर चाँद की रौशनी में निकलता हुआ इन्द्रधनुष की जड़ में भी क्या खुशियाँ ही होगी?

इन पहाड़ियों के ये पेड़ क्यों इतने मतवाले होकर झूम रहे हैं? इनकी तुलना किसी से भी की जा सकती है.. कोई चाहे तो मतवाला हाथी कह दे.. कोई किसी चीज के लिए मचलता हुआ नटखट बच्चा.. कोई विरह से तडपता हुआ प्रेमी.. भूत-प्रेत मानने वाले उसमे उसे भी देख सकते हैं.. कोई इसे प्रकृति कि एक और छटा मान कर यूँ ही चलता कर दे.. रात के लगभग दो बज चुके हैं.. 6-7 डिग्री सेल्सियस के तापमान में हल्की बूंदा-बांदी में बाहर भींगते हुए मैं भी ये क्या बकवास सोच रहा हूँ.. अब मुझे जाकर सो जाना चाहिए..

इन लोगों को पीने में इतना आनंद क्यों आता है, ये मेरी समझ के बाहर है.. कुछ दफे मैंने भी पीकर नशे को महसूस किया है.. जब नशा उतरता है तो सर भारी रहता है, दिन एक अलग सा ही आलस भरा होता है.. कुल मिलाकर पूरा दिन बरबाद.. खास करके अगर कोई 5 Large से अधिक ले ले तो.. मैंने जब भी लिया था, खुद को कष्ट पहुँचाने की नीयत से ही.. अब इतने हसीन मौसम में कोई क्यों अपना दिन बरबाद करना चाहता है, यह तो वही बताए..

यहाँ लोग कितने निश्चिन्त हैं.. कोई हड़बड़ी नहीं.. किसी चीज कि जल्दी नहीं.. हर काम आराम से.. मैं आराम से हूँ, इसका मतलब ये भी आराम से ही होंगे क्या? ये पहाड़ी लोग जो गीजर क्या होता है ये भी नहीं जानते हैं और सुबह-सबेरे छः बजे से ही भाग-भाग कर हर कमरे में गरम पानी दे रहे हैं.. भले बाहर बरसात ही क्यों ना हो रही हो!!

ये सुबह-सुबह पहाड़ी घूंघट ओढ़े क्या कर रही है? क्या किसी का इन्तजार? या फिर बस अपने सारे आंसूओं को बहाकर चुपके से कहीं और निकल जाने की फिराक में है? इस झरने का पानी सफेद क्यों दिखता है? लोग बताते हैं कि पानी का कोई रंग नहीं होता है.. यक़ीनन वे झूठ बोलते होंगे.. ये बादल भी सफेद, यह झरना भी सफेद.. दोनों ही खूबसूरत.. वो भी जब सफेद कपडे में होती थी तो बला कि खूबसूरत दिखती थी, कुछ-कुछ इसी झरने सा ही.. क्या पता, शायद अब भी वैसी ही होगी.. कई साल बीत चुके हैं अब, इस पर उतने यकीन से 'यक़ीनन' नहीं कह सकता हूँ जैसे ऊपर कह गया हूँ..

जारी...
भाग 1

14 comments:

  1. बेहतरीन एकालाप...दार्शनिक अंदाज!!

    ReplyDelete
  2. दारु पीने वाले ही बताएँगे तुम्हारे सवाल का जवाब... तो उसको छोडो और आगे का किस्सा सुनाओ. कुछ मजेदार... हुआ तो होगा ही.

    ReplyDelete
  3. मैं कहीं कवि न बन जाऊँ, तेरे प्यार में....

    ReplyDelete
  4. :-) -> इस स्माईली से फ़िलहाल काम चलाओ...और पार्ट ३ जल्दी से लाओ :)

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर मनमोहक विवरण है। परन्तु यह बताओ कि कोई भी खाद्य या पेय यदि एक सीमा से अधिक लोगे तो क्या बीमार नहीं महसूस करोगे? यदि पाँच लिटर दूध भी पी जाओ तो भी और पाँच मुर्गे चबा जाओ तो भी, यदि पाँच दर्जन केले खा जाओ तो भी।
    सच में झरने बहुत सुन्दर होते हैं और उन्हें देख जिनकी याद आए वे भी!
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  6. वाह अपने भूतकाल के जीवन और वर्तमान के जीवन को बेहतरीन गद्य में लिखा है, जिसमें पद्य का भी मजा आ रहा है।

    यह तो हमें भी आज तक समझ में नहीं आया कि लोग पीते क्यों है, और अगर जहर पीते हैं तो जीते क्यों हैं... क्या जहर पीने के लिये... धीमा जहर..

    ReplyDelete
  7. सच में कविता सी मनमोहक पोस्ट और वो कौन ????
    पीने के मामले में घुघूती जी की बात सही है. आवश्यकता से अधिक कोई भी पिएगा तो टुन्न हो हि जाएगा, फिर अगले दिन हैंगओवर...

    ReplyDelete
  8. कम या ज्यादा की बात वो करते हैं जो गन्दा पानी पीने को सही समझते हैं. ज़हर तो ज़हर ही रहेगा, चाहे कम पियो या ज़्यादा. ज़्यादा पीने से ज़्यादा नुकसान कम पीने से थोडा कम नुकसान, पर नुकसान तो है ही न!

    वैसे आज की पोस्ट भाषा और शिल्प के मामले में लाजवाब है.

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर पोस्ट!
    --
    इसकी चर्चा यहाँ भी है-
    http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/07/9.html

    ReplyDelete
  10. आप देखाते जाइए..बहुत मजा आ रहा है..सचमुच जब हमको पढकर नसा आ रहा है...त देखने वाले को देखकर केतना आता होग...अईसे में नकली नसा... इसी को कहते हैं खजाना के ऊपर बईठ के भीख माँगना..

    ReplyDelete
  11. बस एक शब्द बोल पाऊंगा...अद्भुत.
    कभी-कभी हममें भी यह रूप जागता था पर अब नहीं. :-)

    ReplyDelete
  12. रंग में आ रहे हो..

    ReplyDelete
  13. WOW!
    कितना खूबसूरत लिखा है...अब तो कूर्ग देखने जाने का मन करने लगा.

    ReplyDelete