हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगजगत!!अधिकाँश हिंदी में ब्लॉग लिखने वाले पता नहीं कब तक हिंदी ब्लॉगिंग को शैशव अवस्था में मान कर एक्सक्यूज देते रहेंगे.. ब्लॉग लिखने कि शुरुवात हुए बामुश्किल १०-१२ साल हुए हैं, और हिंदी ब्लॉग लिखने कि शुरुवात हुए लगभग ६-७ साल, मगर अभी तक यह शैशव अवस्था में ही है.. हद्द है ये.. अपनी गलती छुपाने का अचूक उपाय.. इसे शैशव अवस्था का बता दो.. बस्स.. ये नहीं सोचते कि अभी खुद ही हम शैशव अवस्था से आगे कि नहीं सोच पा रहे हैं, बस कहने को बड़ी-बड़ी बातें हैं पास में..
हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगजगत!!
हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगजगत!!
हिंदी ब्लॉगिंग, हिंदी ब्लॉगिंग, घंटा हिंदी ब्लॉगजगत!!
अब तो कभी-कभी लगता है कि अच्छा ही हुआ जो ब्लॉगवाणी बंद हो गया.. कम से कम उतनी चिल्लपों तो अब नहीं होती है.. और ना ही पहले जितने "बधाई, कृपया मेरे यहाँ भी पधारें" जैसा कमेन्ट मिलता है अथवा "अच्छा लगने पर पसंद जरूर करें" जैसा मैसेज पोस्ट के नीचे चिपका हुआ मिलता है.. अब भले ही कमेन्ट कि संख्या कुछ कम हो, मगर जो भी आते हैं कुछ पढ़ने के लिए ही आते हैं.. कहीं कुछ हंगामा बरपा भी तो कम ही लोग आपस में झौं-झौं करते हैं, जब तक बहुतों को पता चले उससे पहले ही लोग लड़ने के बाद अपना फटा कुरता समेट कर जा चुके होते हैं..
लोग बात बात में कहते हैं "हिंदी ब्लॉगजगत", मानो अपनी मानसिकता बना लिए हों कि जो ब्लॉग लिखते हैं बस वही उनके ब्लॉग पढ़ें और कमेन्ट लिखें.. अगर कोई बाहरी पढ़ भी ले तो कमेन्ट करने से पहले अपना प्रोफाईल बनाए तभी कुछ लिखे, नहीं तो हम उसे बेनामी कह कर गालियाँ भी देंगे और अगर मेरा ब्लॉग मोडेरेटेड है तो बेनामी कहकर उसे पब्लिश भी नहीं करेंगे.. मतलब पूरी बात यह कि अगर आप ब्लॉग लिखते हो तो ही मुझे पढ़ो, और अगर पढ़ भी लिए तो जबान बंद रखो!! तिस पर यह रोना कि यहाँ सिर्फ ब्लॉगर ही लिखते हैं और ब्लॉगर ही पढते हैं.. अब कोई खुद ही कुवें में रहना चाहे और बाहर ना निकले तो रोना किस बात का भला?
मुझे अच्छे से पता है कि मेरे इस पोस्ट को ब्लॉगर के अलावा और कोई नहीं पढ़ने वाला है, अगर कोई पढता भी है तो उसे समझ में नहीं आएगा कि मैं क्या और क्यों लिख रहा हूँ ये सब, अगर यह उसके समझ में आ भी जाता है तो यह उसके किसी काम का नहीं होगा.. कुल मिलाकर यह कि ब्लॉग के ऊपर लिख कर कोई भी अपने पाठक वर्ग को निराश ही करता है, कम से कम मेरा अनुभव तो यही कहता है..
कुल मिलाकर मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि हिंदी में लिखे जाने वाले ब्लॉगस को शैशव अवस्था में मानना बंद करें, अगर दस साल के अंग्रेजी ब्लॉगिंग को सौ बरस का माना जाए तो हिंदी ब्लॉगिंग सठियाने कि अवस्था में आ चुका है.. हिंदी ब्लॉग नामक छोटे दायरे से बाहर निकल कर समूचे अंतरजाल के बारे में सोचना शुरू करें.. सबसे अहम बात, अगर आप चाहते हैं कि आपके लिखे पोस्ट को ब्लॉग से बाहर के लोग भी पढ़ें तो ब्लॉग और ब्लॉगरों के बारे में लिखना बंद ना भी करें तो कम अवश्य करें..
अपने उन पाठकों से क्षमा सहित जो ब्लॉग जगत से बतौर लेखक जुड़े हुए नहीं हैं..
डिस्क्लेमर - यह पोस्ट कुछ महीने पहले लिखी गई थी, जिसे मैंने उस वक्त गुस्से में लिखी थी.. इसलिए भाषा भी बेहद तल्ख़ है.. मगर आज इसे पोस्ट करते समय भी मैंने इसकी तल्खियत घटाने कि जरूरत महसूस नहीं की.. किसी को इस भाषा से कष्ट पहुंचे तो अग्रिम माफ़ी ही मांग लेता हूँ..
One of your best posts! Loved it. Reminded me of 'Tarr Tarr' by Azdak ki Almaari.
ReplyDeleteमैं तो अभी काफी नया हूँ...शुरुआत के 4-5 महीने तो पता ही नहीं था कि ये एग्रीगेटर किस चिरिया का नाम है...
ReplyDeleteधीरे धीरे थोडा ज्ञान मिला... अब काफी खुश हूँ...
कल से चिट्ठाजगत की वेबसाइट भी बंद है..थोडा मुश्किल हो रहा है क्यूंकि वहां हर ब्लॉग की जानकारी मिल जाती थी ...
और ब्लॉग पर लोग वही लिखते हैं जो उस समय उनके दिमाग में चल रहा होता है...अब इसपर तो रोक नहीं लगा सकते हम...
क्या करें ????
और हाँ मेरे ब्लॉग पर भी पधारें...
ReplyDeleteहा हा हा.....
jst kidding...
@ शेखर जी - दोस्त, वही तो मैं भी कहना चाह रहा हूँ कि जब तक किसी एक-दो अग्रीगेटर साईट पर हम निर्भर रहेंगे तब तक काम कैसे चलेगा? क्या ऐसा नहीं है कि वहाँ हम कूप-मंडूक से अधिक नहीं होते हैं? जैसे दो दिनों से चिट्ठाजगत डाउन चल रहा है और हमारे अधिकाँश लोग हलकान हुए जा रहे हैं..
ReplyDelete:)
बहुत अच्छी, रोचक और जानकारीप्रद अभिव्यक्ति..बधाई!!
ReplyDeleteअवसर मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी पधारें!..और अच्छा लगने पर कमेंट जरूर करें। :-)
एकदम ठीक कह रहे हो पी डी ब्लॉगजगत सठिया गया है :)..चलो निकल लेते हैं सब यहाँ से और जाकर कोई पैड साईट ज्वाइन करते हैं ..वो क्या है न फ्री में मिला है ब्लॉग तो जी चाहे लिखते हैं लोग:)
ReplyDeleteवैसे चिट्ठाजगत या ब्लोग्वानी का दुरपयोग होता है या उसके बिना लोग हलकान हो रह हैं ये ठीक है. परन्तु ये नए चिट्ठों की जानकारी का महत्वपूर्ण टूल है वो यह भी नहीं भूलना चाहिए.वर्ना तो सच में ही कूप मंडूक हो जाते जितने देश बोर्ड पर हैं ब्लॉग वही देख पाते.:)
गुस्से में बढ़िया लिखते हो.
ReplyDeleteदो नए ब्लॉगर पढ़ने को मिले.
घुघूती बासूती
(आर्बिट कमेन्ट:) चलो शैशव नहीं, जवानी के दिन कैसा रहेगा? अब शीला टाइप ढूंढोगे तो मुश्किल होगी ;)
ReplyDeleteकितना टाइम खोटी किया... जाने दे भाई..
ReplyDeleteज्ञानदत्त पाण्डेय जी की भी ऐसी ही गंभीर पोस्ट आई है. कहीं मैंने ''ब्लॉग, ब्लॉगर और ब्लॉगरी की पोस्टों से उबा मन'' टिप्पणी की थी. शुभ संकेत, सार्थक चिंतन.
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
ReplyDeletemobile par padh rahi hoon, english me comment karungi.
ReplyDeleteBlogging karne par ek na ek baar blog se related post har koi likhta hai. Shuruati daur ke kuch posts behad acche bhi hote the. Par ab chunki ispar itna likha jaa chuka hai ki repetion hota hai ur boring bhi.
Maturity nahin aayi hai iska kyonki mere khyal se blog par likhna kisi purpose se nahin balki ek hobby ki tarah hota hai. Kuch serious karne ke liye medium doosra hona chahiye, blog ya social network sites nahin.
Ab itna to kahna hi hoga ki mere blog par bhi aayein aur comment jaroor karein :P :D
mobile par padh rahi hoon, english me comment karungi.
ReplyDeleteBlogging karne par ek na ek baar blog se related post har koi likhta hai. Shuruati daur ke kuch posts behad acche bhi hote the. Par ab chunki ispar itna likha jaa chuka hai ki repetion hota hai ur boring bhi.
Maturity nahin aayi hai iska kyonki mere khyal se blog par likhna kisi purpose se nahin balki ek hobby ki tarah hota hai. Kuch serious karne ke liye medium doosra hona chahiye, blog ya social network sites nahin.
Ab itna to kahna hi hoga ki mere blog par bhi aayein aur comment jaroor karein :P :D
'हिन्दी ब्लॉग जगत शैशवावस्था में है' - इस बात को अब कोई सीरियसली लेता भी नहीं है , सो दुखी न रहें ! दूसरी बात जब अनेक के द्वारा इतने भारी परिमाण में छपास कार्य 'कम्प्लीट' हो रहा हो तो औसत गुणवत्तात्मक मान की बेहतरी की कामना करना तो सदाशयता है , पर उसको लेकर तल्ख़ हो बैठना अतिरिक्त और अनावश्यक सा !
ReplyDeleteऔर हाँ , ऊपर कमेन्ट किये लोगों से सीख लेते हुए ; मेरे ब्लॉग पर भी आने का कष्ट करें :-) नीक लगने पर कमेन्ट जरूर करें :-) हा हा हा.....
jst kidding...
gusse me sach nikal bahar nikalta hai.... aisa hi hua hai...
ReplyDelete* sach bahar nikalta hai...
ReplyDeleteखूब बढिया से दिल की भड़ास निकल ली - बढिया लगा.
ReplyDeleteये बिंदासपन जरूरी है लाइफ में.
क्या बाबू ? काहे इतना गुस्सा? वैसे सबसे अच्छी ये बात लगी " कुल मिलाकर यह कि ब्लॉग के ऊपर लिख कर कोई भी अपने पाठक वर्ग को निराश ही करता है, कम से कम मेरा अनुभव तो यही कहता है.."
ReplyDeleteअमरेन्द्र की बात मानें और गुस्सा ना हों.
और अंत में "कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें और पसंद आये ना आये टिप्पणी अवश्य दें :-)
गुस्से में लिखी अवश्य है पर इतनी भी गलत नहीं लिखी है।
ReplyDeleteसत्य वचन महाराज! सठियाना शब्द बिल्कुल सटीक बैठा.:)
ReplyDeleteरामराम.
लिखने पर ध्यान दो पछांत मामु.. फिर इन सब बातो पर नज़र ही नहीं पड़ेगी..
ReplyDeleteतुमने कहा तो याद आया ये सब वरना मैं तो कबका भूल गया था..
प्रशान्त जी
ReplyDeleteमैं अभिषेक के अलावा और किसी ब्लॉग पे कमेन्ट नहीं करती.
आज कर रही हूँ आपके ब्लॉग पे. :-)
आपका गुस्सा तो बड़ा अच्छा दीखता है.
मैं तो ब्लोगिंग से ज्यादा परिचित नहीं हूँ.
हाँ लेकिन ब्लोग्स पढ़ती हूँ.
वैसे आपके विचारों से सहमत हूँ!!
हम्म... कभी कभी सही में जुतियाना भी ज़रूरी होता है
ReplyDeleteये बेनामी ही कभी इस देश में करिश्मन कर गुजरेंगे..........
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