Saturday, October 16, 2010

एक

एक चुप
सदियों की
एक शोर
क्षण भर का
एक बिलबिलाहट
इन्तजार की
एक दंभ
आखिरी मात्र
एक खुशी
तेरे आने से
एक अवसाद
तेरे जाने का

12 comments:

  1. एक खुशी
    तेरे आने से
    एक अवसाद
    तेरे जाने की

    सुन्दर भाव्

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  2. वाह!

    ये क्या हुआ!

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  3. पहर अभी बीता ही है
    पर चौंधा मार रही है धूप
    खड़े खड़े कुम्हला रहे हैं सजीले अशोक के पेड़
    उरूज पर आ पहुंचा है बैसाख
    सुन पड़ती है सड़क से
    किसी बच्चा कबाड़ी की संगीतमय पुकार
    गोया एक फ़रियाद है अज़ान सी
    एक फ़रियाद है एक फ़रियाद
    कुछ थोड़ा और भरती मुझे
    अवसाद और अकेलेपन से

    - वीरेन डंगवाल

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  4. kya hua prashant bhai...
    sab theek to hai..
    keep smiling...
    मेरे ब्लॉग में इस बार...ऐसा क्यूँ मेरे मन में आता है....

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  5. अदभुत,

    दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. अतिव सुंदर.....

    वाकई.... कविता.....

    परन्तु

    एक अवसाद
    तेरे जाने की

    अंतिम शब्द "की" की जगह "का" नहीं होना चाहिए था.....

    एक अवसाद
    तेरे जाने का

    जय राम जी की.

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  7. साला एक ख़ुशी के लिए शदियों का वेट कैसे करें...बहुते नाइंसाफ़ी है....है सरकार...

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  8. दशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ!!!!

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  9. अरे कोई पड़ौसी बच्चा प्रशान्त को सँभालो ।

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  10. पता नहीं पर जब भाव गाढ़े होते हैं तो शब्दों की सजावट ही भाव व्यक्त कर जाती है। कितना कुछ कह रही है आपकी कविता।

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  11. सुन्दर भाव्

    कभी यहाँ भी आये
    www.deepti09sharma.blogspot.com

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  12. bahut sundar likha hai aapne.........ati sundar

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