हर किसी कि उम्र में उसके हिस्से का संघर्ष छिपा होता है.. वह दिन याद आता है, जब दुनिया के साथ संघर्ष के सिलसिले की शुरुवात नहीं हुई थी तब सोचता था.. चौंधिया कर किसी दूसरे के किस्सों को सुनता था.. गुनता था.. व आह्लादित हुआ करता था.. जैसे कितने बड़े और महान आदमी के बीच बैठने का सौभाग्य मिला हो.. कुछ समय बीता.. अपना भी दिन आया, अपने हिस्से के संघर्ष को जीने का.. फिर अपना किस्सा भी कुछ अपनों की बीच भूंकना शुरू किया गया.. आज भी वह संघर्ष का सिलसिला चल रहा है.. फर्क सिर्फ इतना आया है कि अब भूंकना बंद हो चुका है.. अब ये संघर्ष वैसी ही बात लगती है जैसे दिनचर्या.. जैसे खाते हैं, जैसे सोते हैं, जैसे हगते हैं, जैसे मूतते हैं.. वैसे ही संघर्ष भी कर लेते हैं यार..
अब शांतचित होकर सोचता हूँ, देखता हूँ, तो पाता हूँ कि हर किसी ने अपने हिस्से के संघर्ष को जिया है.. जरूरी नहीं की सभी का संघर्ष आर्थिक ही हो.. किसी का मानसिक, तो किसी का शारीरिक भी होता है.. ये दुनिया किसी को भी बख्सती नहीं है.. अपने ठोकर पर लेकर चलती है.. ऐसी दुनिया जहाँ हर किसी को, हर खुशी की कीमत चुकानी होती है.. जितनी छोटी खुशी, आपके औकात के हिसाब से उतनी ही कम कीमत.. जितनी बड़ी खुशी, आपके औकात के हिसाब से उतनी ही अधिक कीमत.. बिसात बिछी हुई है, बस हर कोई आपके दांव के इन्तजार में खड़ा सा दिखता है.. वो भी तो कहीं खड़ा है, किसी और के चाल के इन्तजार में.. बस शह औ मात!!
रात के इस पहर में अपने दो बजिया बैराग्य को डांट-डपट कर, गरिया कर, मैं अपनी बकवास कर चुका, आपका क्या अनुभव रहा है इस बाबत?
इस नींद को भी मुझी से दुश्मनी क्यों है भला? सोने जाओ तो आती नहीं.. ना सोने के समय, बेसमय आ धमकती है.. रात-बिरात आँख मूंदे ही हिसाब-किताब बिठाने लगता है.. ये तेरा कहाँ, ये तो मेरे हिस्से का गपक गया.. अपने जो दूसरे के हिस्से का गपक गया था उसका हिसाब कोई नहीं.. तेरा.. मेरा.. इसका.. उसका.. किसका? खैर!!!
ये दुनिया किसी को भी बख्सती नहीं है.. यही पूरा सार है.
ReplyDeleteveri gud bhut khub. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteक्या बताएं ? हमको तो नींद छोडती ही नहीं थी ....तो हमने भी उसे तरसाना छोड़ दिया है !!!
ReplyDelete"आज भी वह संघर्ष का सिलसिला चल रहा है.. फर्क सिर्फ इतना आया है कि अब भूंकना बंद हो चुका है.. अब ये संघर्ष वैसी ही बात लगती है जैसे दिनचर्या.. जैसे खाते हैं, जैसे सोते हैं, जैसे हगते हैं, जैसे मूतते हैं.. वैसे ही संघर्ष भी कर लेते हैं यार."
ReplyDeleteवैसे मैं युहीं नहीं मानता की तुममे और मुझमे कुछ सिमीलैरीटी है... :)
वैसे मैं युहीं नहीं मानता की तुममे और मुझमे कुछ सिमीलैरीटी है... :)
ReplyDeleteहां और वो ये भी है कि तुम दुन्नो हमें बहुत प्रिय हो ...
परसांत बच्चा ..एक ठो सबसे बडका संघर्ष तो शादीए है ..चलो आने वाला है टाईम भी तुम्हारा
very nicely written....
ReplyDeletebahut khub...
दुख सबके हिस्से में बराबर ही आता है, प्रसन्न वही रहता है जो उन्हे सम्हाल लेता है।
ReplyDeletejeene ke liye socha hi na tha, dard sambhalane honge
ReplyDeletemuskuraoon to, muskurane ke karz utaarne honge
muskuraoon kabhi to lagata hai
jaise hontonn pe karz rakhaa hai
tujhase naraz nahi aye jindagi.....
नींद तो कमबख्त दिनभर आती है पर जब सोने जाओ तो नहीं आती.
ReplyDeleteऔर ये ऊपर वाली टिपण्णी में 'सार्थक' शब्द छुट गया लगता है. मेरे यहाँ वाली टिपण्णी में तो सार्थक भी है :) तुम्हारी पोस्ट लेखन मेरी पोस्ट सार्थक लेखन :-P