सदियों की
एक शोर
क्षण भर का
एक बिलबिलाहट
इन्तजार की
एक दंभ
आखिरी मात्र
एक खुशी
तेरे आने से
एक अवसाद
तेरे जाने का
पापा जी को पैर दबवाने की आदत रही है. जब हम छोटे थे तब तीनों भाई-बहन उनके पैरों पर उछालते-कूदते रहते थे. थोड़े बड़े हुए तो पापा दफ्तर से आये, ख...
एक खुशी
ReplyDeleteतेरे आने से
एक अवसाद
तेरे जाने की
सुन्दर भाव्
वाह!
ReplyDeleteये क्या हुआ!
पहर अभी बीता ही है
ReplyDeleteपर चौंधा मार रही है धूप
खड़े खड़े कुम्हला रहे हैं सजीले अशोक के पेड़
उरूज पर आ पहुंचा है बैसाख
सुन पड़ती है सड़क से
किसी बच्चा कबाड़ी की संगीतमय पुकार
गोया एक फ़रियाद है अज़ान सी
एक फ़रियाद है एक फ़रियाद
कुछ थोड़ा और भरती मुझे
अवसाद और अकेलेपन से
- वीरेन डंगवाल
kya hua prashant bhai...
ReplyDeletesab theek to hai..
keep smiling...
मेरे ब्लॉग में इस बार...ऐसा क्यूँ मेरे मन में आता है....
अदभुत,
ReplyDeleteदुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.
रामराम.
अतिव सुंदर.....
ReplyDeleteवाकई.... कविता.....
परन्तु
एक अवसाद
तेरे जाने की
अंतिम शब्द "की" की जगह "का" नहीं होना चाहिए था.....
एक अवसाद
तेरे जाने का
जय राम जी की.
साला एक ख़ुशी के लिए शदियों का वेट कैसे करें...बहुते नाइंसाफ़ी है....है सरकार...
ReplyDeleteदशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ!!!!
ReplyDeleteअरे कोई पड़ौसी बच्चा प्रशान्त को सँभालो ।
ReplyDeleteपता नहीं पर जब भाव गाढ़े होते हैं तो शब्दों की सजावट ही भाव व्यक्त कर जाती है। कितना कुछ कह रही है आपकी कविता।
ReplyDeleteसुन्दर भाव्
ReplyDeleteकभी यहाँ भी आये
www.deepti09sharma.blogspot.com
bahut sundar likha hai aapne.........ati sundar
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