Sunday, May 10, 2009

घर के बड़ों के चेहरे पर आती झुर्रियां क्या आपको भी परेशान करती है?

आज मातृदिवश पर हमारे सभी मित्र अपनी-अपनी मांओं को याद कर रहे हैं, मगर मुझे तो आज पापा जी कि याद बहुत आ रही है.. हर वे बातें याद आ रही हैं जो मैंने उनके साथ की थी.. इन यादों से मेरा एक अजीब रिश्ता बन चुका है, ये कभी भी मेरा पीछा नहीं छोड़ती हैं.. कोई भी ऐसी बात मैं भूल पाने में हमेशा खुद को असमर्थ पाता हूं, जिसे मैंने थोड़ी भी भावुकता के साथ जीया है.. वहीं कुछ काम की बातें हो तो उसे याद मैंने कब रखा है, मुझे ये भी याद नहीं आ रहा है.. :)

जब से दक्षिण भारत में रहने को आया हूं, तब से घर छः महिने से पहले नहीं जा पाया हूं.. और यह अंतराल इतना बड़ा हो जाता है कि जब घर पहूंचता हूं तो पापा जी के चेहरे पर एक नई झुर्रीयां देखता हूं.. मन को बहुत तकलीफ होती है, लगता है जैसे पापा जी अब बूढ़े हो रहे हैं और धीरे-धीरे असक्त भी होते जा रहे होंगे.. इतनी समझ तो है ही मुझमें कि यह मनुष्य के जीवन का एक चक्र मात्र है.. कुछ वर्षों के बाद यह चक्र मुझे भी दोहराना है.. शायद कभी मैं भी बूढ़ा होउंगा, यह प्रश्न मुझे कभी परेशान नहीं करता है जितना पापा-मम्मी के चेहरे पर आती झुर्रियां.. सोचता हूं कि काश मैं ययाति वाले कथा को दुहरा पाता?

जब छोटा था तब पारिवारिक दायित्व बहुत अधिक होने के चलते मम्मी को हमेशा गुस्से में देखता था और हममें से कोई भी भाई-बहन उनके पास जाने से कतराता था.. उस समय पापा कि गोद हमारे लिये सबसे सुरक्षित जगह हुआ करती थी.. घर में सबसे छोटा होने का फायदा भी मैंने जम कर उठाया, और पापा कि गोद में 15-16 साल कि उम्र तक खेला हूं.. घर का सबसे बड़ा नालायक, सबसे ज्यादा गुस्सैल भी और पढ़ाई-लिखाई में तीनों भाई-बहन में सबसे पीछे भी.. और ऐसे में भी पापा जी का भरपूर प्यार मिलना, बिना किसी डांट-पिटाई के.. मम्मी पापा जी को अक्सर कहती थी, "यह अगर बड़ा होकर बिगड़ गया तो सारा दोष आपका ही होगा.." तो वहीं पापा जी का कहना होता था कि "अगर यह बड़ा होकर सुधरा तो सारा श्रेय भी मेरा ही होगा".. आज के परिदृश्य में वे लोग मुझे बिगड़ा हुआ मानते हैं या सुधरा हुआ यह तो वही बता सकते हैं.. मगर मैं अपनी नजर में अभी तक सुधरा हुआ तो बिलकुल भी नहीं हूं.. एक बेटे के बड़े होने के बाद वह अपने पापा मम्मी को जो भी सुख दे सकता है वो तो अभी तक उन्हें मुझसे तो नहीं मिला है..


चित्र में पापा, मम्मी, भैया और मेरा पुतरू(भैया का बेटा)..

छुटपन के बारे में याद करने कि कोशिश करता हूं तो एक प्लास्टिक का बैट और बॉल याद आता है, जिसे पापा जी नीचे से गुड़का कर(लुढ़का कर) फेकते थे और मैं उसे मारता था.. एक रेलगाड़ी भी याद आती है जिसमें प्लास्टिक कि रस्सी बंधी होती थी और उसे पकड़ कर खींचने पर शोर करती थी, जिसे कई बार पापा जी मेरा हाथ पकड़ कर खींचते थे.. एक कैरम बोर्ड याद आता है, जिसका स्ट्राईकर पकड़ना भी पापा जी से ही सीखा था कैरम के सभी नियमों के साथ और बाद में उसी कैरम को खेलते हुये मैं और भैया अपने गली-मुहल्ले के चैंपियन बन गये थे.. बैडमिंटन का वो छोटा वाला रैकेट भी याद आता है जिसे खेलना भी पापा जी ने ही सिखाया था.. ये सभी यादे छः साल कि उम्र या उससे भी कम उम्र की हैं..

थोड़े बड़े होने पर भी पापा जी के साथ क्रिकेट खेलने जाते थे और पापा जी हमेशा थ्रो बॉल फेंकते थे.. बिलकुल ऐसे जैसे पत्थर फेंक रहे हों.. पता नहीं ऐसे ही कितनी बातों का थ्रो पत्थर मैंने उनपर कितनी बार फेका है, उन पत्थरों से कितनी चोट भी पहूंचायी है.. फिर भी कभी इसका अहसास नहीं होने दिया उन्होंने मुझे..

एक बार किसी पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट ट्रेनिंग में मुझसे कहा गया था कि 1 मिनट आंखें बंद करके उस क्षण को सोचो जब तुम्हें सबसे ज्यादा खुशी मिली हो.. मैंने आंखें बंद की और 1 मिनट ईमानदारी से सोचने के बाद मैंने पाया कि मेरे लिये वह क्षण सबसे ज्यादा खुशी का क्षण होता है जब घर पहूंचकर पापा जी का पैर छूने से पहले ही पापा जी मुझे सीने से लगा लेते हैं..

जब पापा जी के पके हुये बालों को और उनके चेहरे की झुर्रियों को देखकर मैं उन्हें चिढ़ाता हूं कि पापा जी अब बुढ़ा गये हैं तो उनका कहना होता है कि अब तो सठिया भी गये हैं.. आखिर दादा-नाना तो बन ही चुके हैं.. अगर आज के संदर्भ में देखा जाये तो मैं उनपर आश्रित नहीं हूं, और अगर शारीरिक सक्षमता कि बात आती है तो उनसे ज्यादा ही सक्षम हूं.. मगर फिर भी जब वे साथ होते हैं तो ना जाने एक अजीब सी हिम्मत बंध जाती है, की पापा जी मेरे साथ है तो पूरि दुनिया भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है..

ऐसा क्यों होता है यह मुझे नहीं पता है, मगर मैं चलते-चलते यह जरूर कहना चाहूंगा कि मेरे पापा जी मेरे जीवन में मेरे एकमात्र हीरो हैं.. मैं हमेशा सोचता हूं कि काश कभी मैं अपने पापा जैसा आदर्शवादी और कर्मठ इंसान बन पाऊं..


यह विडियो इस 22 अप्रैल को पापा-मम्मी कि शादी कि 32वीं सालगिरह की है.. खराब बैंडविड्थ कि वजह से इसे मैं भी अभी नहीं देख पाया हूं.. भैया ने इसे अपलोड किया है..

12 comments:

  1. पिता के बारे में क्या कहना ? मेरे लिए तो उनके आगे हिमालय भी छोटा है ...सच कहा आपने ..

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  2. बिल्कुल सही कहा आपने.

    यह उनके प्यार, स्नेह और अनुभव की ताकत है जो आपको हिम्मत देती है.



    मातृ दिवस पर समस्त मातृ-शक्तियों को नमन एवं हार्दिक शुभकामनाऐं.

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  3. माता-पिता की किसी से तुलना करना ही संभव नहीं।

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  4. extreme heart touching post:)

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  5. मार्मिक है ।

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  6. मात्री दिवस पर पिता को याद किया.! हमें नाज़ है उन पुत्रों पर जो पिताओं की भी इतनी कद्र करते हैं.

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  7. You have said it bhai .... This is how I feel when I go home on my "Bi-Annual " visits. Its frightening to see my parents getting old and the feeling that the time we have left to be together has decreased by 6 months ! I cannot tell how I feel when it seems like time is running out of hands like sand.

    How I wish that I was not an economic refugee ...

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  8. भतीजे बहुत सुंदर विचार हैं तुम्हारे. यशस्वी भव.

    रामराम.

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  9. आप के पिता जी की बाते बहुत कुछ मेरे पिता जी से मैच करती हैं, जनरल पिताओं के विपरीत मैं भी माँ से पहले डरती थ और पिता जी की शरणस्थली में रहती थी और उन्हे भी यही डायलॉग सुनने को मिलता था "आपने सिर चढ़ा रखा है, जैसे लगता है कि पत्थर पे दूब जमी है, ये लड़की, आपको इनी अनोखी लगती है।"

    मगर पिता जी अचानक जब चले गये, तो माँ का व्यक्तित्व भी अचानक बदल गया, शायद वो ऐसी इसलिये थीं क्योंकि उन्हे पता था कि पिता जी में मातृत्व अधिक है,
    तो माँ को पितृत्व विकसित करना ही पड़ेगा। आज २० सालों से माँ दोनो रोल निभा रही है।

    मातृदिवस पर पिता की याद जो हमेशा साथ रहती है उसे और गाढ़ा करवाने का शुक्रिया।

    वैसे चिंता मत कीजिये जून के प्रथम रविवार को पितृदिवस भी मनाया जाता है :) हर रिश्ता महत्वपूर्ण है, सबके स्थान सुरक्षित हैं

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  10. पापा साथ हो तो कोई डर नहीं लगता.. मदर्स डे पर पापा की याद मुझे भी आई मैंने पापा के मोबाइल पर फ़ोन किया पर उन्होंने मेरा नंबर देख कर मम्मी को पकडा दिया.. उन्हें लगा मैंने मामी से बात करने के लिए फोन किया है.. जब कि मम्मी के पास अपना अलग मोबाइल है :)

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  11. यार... सेंटी कर देते हो भाई !

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  12. Hi Bhaiya... aap ne sahi me mujhe emotional kar diya.. Padha to aisa laga ki kahin ye meri kahani to nahin hai.. Papa mujhe v isi tarah khelne le jaya karte the aur mummy ki dant se v bachate the.. Ab to saal me mushkil se 10-15 din hi milna ho pata hai mummy-papa se... Bt I really mis thm very much...

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