Sunday, November 08, 2009

कार्यालय में बनते रिश्ते

हमने एक छोटा सा ही सही जिसमें मात्र तीन सदस्य हुआ करते थे, मगर एक ग्रुप बनाया हुआ था.. जिसका नाम रखा था एस.जी. ग्रुप.. जिसका फुल फार्म हमारे लिये सिंप्ली गॉसिप हुआ करता था.. मगर वही कोई और यदि उसके बारे में पूछे तो उसे सामान्य ज्ञान बताया जाता था.. ये ऑफिस में दोस्ती का दायरा पहली बार बढ़ने पर हुआ था.. जिसमें व्यवसायिकता कहीं से भी सामिल नहीं थी.. कारण हमारा प्रोजेक्ट भी अलग-अलग था.. मैं और फनिन्द्र एक प्रोजेक्ट में थे और बानुमती दूसरे प्रोजेक्ट में, मगर लगभग दो-तीन महिने हमारा क्यूबिकल साथ में ही था..

जब नया-नया नौकरी में आया था तब से लेकर अभी तक ऑफिस में मेरा सबसे नजदीकी मित्र शिवेन्द्र ही था और हो भी क्यों ना, हम जाने कितने ही साल से साथ-साथ थे.. संयोग कुछ ऐसा कि नौकरी एक ही कंपनी में लगी, और शुरूवाती प्रोजेक्ट भी एक ही मिला.. अब ऐसे में सबसे ज्यादा उसी से बात होती थी.. आसपास के लोगों के बारे में भी बाते होती थी, जिसमें सबसे ज्यादा हमारा ध्यान बानुमती ही खिंचती थी.. उन्हें कोई भी देखे तो सोचेगा की बहुत ही आधुनिक किस्म की लड़की होगी, मगर जब धीरे-धीरे उन्हें जानने लगा तो पाया कि भले ही सारे फ्लोर का ध्यान वो अपनी हरकतों से खींचती हो, मगर पूरे फ्लोर पर उनके दोस्ती का दायरा बहुत ही सिमटा हुआ है.. कारण बहुत बारीक से जांचने पर पता चला, बस वही पितृसत्ता समाज.. जिसमें अगर कोई लड़की किसी से भी हंसती बोलती रहे और साथ ही बेहतरीन तरीके से अपना दायित्व भी निभाती रहे तो पुरूषों के बीच मजाक का पात्र बनने में देरी नहीं लगती.. अब चूंकी मेरी और फनिन्द्र(फनिन्द्र पहले उनके ही टीम में थे और पहले से ही उनकी दोस्ती बहुत अच्छी थी) की सोच ऐसी नहीं थी सो हम जल्द ही अच्छे दोस्त भी बन गये..

हमारे बीच एक और बात सामान्य थी जो चेन्नई में मिलना बहुत मुश्किल है.. हम तीनों को ही हिंदी आती है.. इस कारण हमारी बात हमेशा हिंदी में ही होती है.. मैं तो हिंदी भाषी क्षेत्र से ही आता हूं.. फनिन्द्र तेलगु हैं मगर बहुत दिनों तक खाड़ी देश में काम किये हैं, सो उर्दू के साथ-साथ हिंदी अच्छी बोल लेते हैं वो भी बिना किसी क्षेत्रीय उच्चारण के साथ.. वहीं बानुमती तमिल होते हुये भी बचपन बैंगलोर में बिताई हैं, और हिंदी दूसरी भाषा के तौर पर विद्यालय में पढ़ी हैं.. सो हिंदी अच्छा बोल लेती हैं..

मेरी टीम में तीन-तीन सतीश हुआ करते थे.. सतीश पी., सतीश बी. और सतीश एम. इनमें सबसे पहले मैं सतीश एम. से मिला था.. ट्रेनिंग के बाद एक टीम ज्वाईन करने के पहले ही दिन.. मेरे किसी एसाईंगमेंट को चेक करने आये थे और उसमें कई खामियां गिना कर उसे बनाने का नया एप्रोच भी बता गये थे.. लगभग सारे तमिलों के बीच वही थे जो अक्सर बिना किसी बाते के भी बातें करने आते थे और शुरूवाती दिनों में उनसे कई बाते सीखने को भी मिला था..

अक्सर मुझे सिगरेट पीते देखने पर वे मुझे टोका करते थे कि मत फूको सिगरेट.. पता नहीं इतना अधिकार वे अचानक से मुझ पर क्यों समझने लगे थे.. क्योंकि प्रोफेशनल लाईफ में कोई ऑफिस के बाहर कुछ भी क्यों ना करे, कोई किसी तरह का प्रश्न नहीं पूछता है, चाहे वह आपके सुपर बॉस ही क्यों ना हों.... त्रिची के रहने वाले सतीश, तकनिकी रूप से बहुत सक्षम हैं, और आज भी उनसे कई बार कुछ नई चीज सीखने को मिलता ही रहता है.. आमतौर पर मैंने यह पाया है कि तमिल के लोग बिलकुल नये व्यक्ति से जल्दी मिलते-घुलते नहीं हैं.. बाद में भले ही वे आपके अच्छे मित्र हों जायें.. मगर इसके अपवाद के रूप में मैं इन्हें पाया..

सतीश और बानु को लेकर कई बार अफवाहें भी सुनने को मिलती थी और अक्सर कई बार लोग मुझी से उनके बारे में पूछने आते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं उन दोनों के ही करीब हूं सो मुझे जरूर पता होगा उनके बारे में.. जबकी मेरा उन दोनों से ही एक अलग तरह का रिश्ता था.. और मैं दोनों ही रिश्तों को समानांतर रूप से निभाता था, कभी उसे आपस में फेंटा नहीं.. कई बार ऐसा हुआ है कि मैं उन दोनों को ही छुट्टी के दिनों में कहीं बाहर देखता था.. मगर कभी उसमें घुसने की ना तो कोशिश करता था और ना ही कहीं बाहर उन्हें लेकर बाहर बातें करता था.. अभी परसो ही वे अपनी शादी का कार्ड सभी को दे रहे थे.. और ना जाने एक अलग सी खुशी हुई जिसे मैं इस पोस्ट में आप लोगों से बांट रहा हूं..

चलते-चलते - मैं उनका फोटो नहीं लगा रहा हूं क्योंकि मैंने इसके लिये उनसे आज्ञा नहीं ली है, और ना ही उनपर मैं इतना अधिकार समझता हूं कि उनसे बिना पूछे ही उनकी तस्वीर लगा दूं..

8 comments:

  1. अच्छा लगा बाँच कर............
    बधाई !

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर लगा, यह सब पढ कर, सभी ऎसे ही कुछ कुछ गुजरे है.... इन रास्तो से

    ReplyDelete
  3. सतीश और बानु को बधाई! दोनों के बेस्ट फ्रेंड को भी।

    ReplyDelete
  4. सतीश और बानू के साथ-साथ आपको भी बहुत बहुत बधाई पीडी।

    ReplyDelete
  5. रिश्ते खुद ब खुद जुड़ जाते है.. अधिकार भी बनते हाते है... अब देखो ना मुझसे बिना पूछे मेरी तस्वीरे लगा चुके हो ब्लॉग पर.. :)
    वैसे उस सी डी का क्या हुआ.. ?

    ReplyDelete
  6. कुश भाई, अभी तो कुछ जमा वायरस से लड़ रहा हूं.. जल्द ही फतह हाशिल होने की संभावना है.. जैसे ही वह होगा वैसे ही भेज दूंगा.. नहीं तो अगर अभी भेजा तो तुम भी गरियाओगे.. वायरस को लेकर.. ;)

    ReplyDelete
  7. सतीश और बानु को बधाई!
    --
    मैं अपने ऑफिस में अपने कॉलेज से अकेला आया था. पर यहाँ ऐसे लोग मिले की कुछ ही दिनों में कॉलेज का एक्सटेंशन लगने लगी ये जगह. उनमें से कुछ चले गए तो अब बड़ा सुना लग रहा है :(

    ReplyDelete
  8. बधाई.. अब तक तो शादी हो चुकी होगी..

    ReplyDelete