कुछ दिन पहले एक लंबे-चौड़े मिटिंग के बाद हमारे सुपर बॉस आये.. आते ही कुछ फंडे पिला कर बजा डाला, "यू कैन आस्क अनी काईंड ऑफ क्यूश्चन.." मैंने कई दिनों से मेंटोस तो खाया नहीं है, मगर फिर भी दिमाग की बत्ती भन्न से जल उठी.. सवाल पूछने का मन किया, "हम क्लोरमिंट क्यों खाते हैं?" सवाल तो मन ही मन पूछ लिया मगर सामने नहीं पूछा.. नहीं तो मेरे साथ पूरी टीम का बेड़ा गर्क होना निश्चित था.. ;)
एक बार एक ट्रेनिंग, जो किसी प्रोजेक्ट के प्रोसेस से संबंधित था और उसमें बताया जा रहा था कि प्रोजेक्ट प्लानिंग अतिआवश्यक है और हमें एक-एक घंटे का प्लानिंग करके चलना चाहिये.. उस ट्रेनिंग के तुरंत बाद ट्रेनर ने पूछा, "अनी क्यूश्चन?" मन में आया कि पूछ ही लूं कि बिना पहले से बताये अचानक से यह ट्रेनिंग सात लोगों को दिये जाने से देने से क्या पूरी टीम को सात घंटो का नुकसान नहीं हुआ जो लगभग एक 'मैन वर्किंग डे' के बराबर है? यह ट्रेनिंग पहले से प्लान क्यों नहीं किया गया? मगर पूछा नहीं.. :)
मैं अभी जिस टीम में काम करता हूं, उसमें बस पांच सदस्य हैं(प्रोजेक्ट लीड को जोड़कर).. लीड अलग बैठते हैं और बाकी चार लोग एक ही क्यूबिकल(एक क्यूबिकल में चार जगह होते हैं) में बैठते हैं.. अब हमें क्लाइंट के तरफ से एक छोटा सा फोम का बना हुआ टाईगर(अजी वही बाघ) गिफ्ट किया गया है, हमारे उत्कृष्ट काम के लिये.. अब इसे रखा कहां जाये यह प्रश्न उठा.. मेरा सोचना था कि इसके गले में रस्सी बांध कर पूरे टीम के बीचो-बीच लटका दिया जाये.. "हैंग टील डेथ..:D" मगर फिर से कुछ कहा नहीं..
"जब नया-नया कालेज छोड़कर जिंदगी की आपाधापी में कूदा था तब कहीं गूगल का वेकेन्सी देखा था.. उसके क्राइटेरिआ जब पढ़ा तो पाया कि बस एक ही क्राइटेरिआ फुलफील कर रहा हूं.. उसमें था कि 'सेंस ऑफ ह्यूमर' अच्छा होना चाहिये.." ;)
वैसे जानवरों के भी सेंस ऑफ ह्यूमर कुछ कम नहीं होते हैं.. कल रात ही देखा, मेरे पड़ोस के कुछ लोग अपने घर के बाहर रात 11 बजे के आसपास बैठे ठंढ़ी हवा खा रहे थे.. तभी गली का एक कुत्ता आया और उनसे प्यार जताने लगा.. वे लोग उसे भगाने के लिये जैसे ही उठे, वह कुत्ता अपना एक पैर उठा कर लघुशंका दूर कर वहां से पतली गली पकड़ लिया.. :D
अच्छा हुआ शंका लघु ही थी..
ReplyDeleteवैसे हमने भी ऐसी ही एक मीटिंग में अपना सवाल दागा था.. कि लंच कब शुरू होगा.. ? और सब हंसने लग गए थे.. दरअसल उस वट चार बज चुके थे भूख तो सबको लग रही थी पर कोई कुछ बोल नहीं रह था.. जब उन्होंने कहा एनी क्वेश्चन तो हमने कहाडाला..
विनोद के बिना भी जीवन कोई जीवन है।
ReplyDeleteजब हम सातवीं कक्षा में थे तो स्काउट बनकर शहर गये,
ReplyDeleteवहाँ एक के बाद एक भाषण दिये जाते रहे पर खाने का कहीं नाम नहीं,
हम आठ दस लड़कों ने प्लान बनाया कि अबकी बार जब नारा लगाने की बारी आयेगी तो अपनी डिमाण्ड रखेंगे, नारा कुछ ऐसे होता था कि वे बोलते थे 'स्काउट' और हमें इसके बाद कुछ बोलना था( जो अब याद नहीं- बुड्ढे जो हो गये हैं :) )
अगली बार जैसे ही उन्होंने बोला 'स्काउट' तो हम पूरा जोर लगाकर चिल्लाए 'भूखे हैं'
उसके बाद पास बैठे मास्साब ने थोड़ा डाँटा तो, पर कुछ ही देर में समौसे और लड्डू भी आ गये ।
अब गूगल वालों को तुमको ले लेना चाहिये।
ReplyDeleteप्रश्न पूछ लेते तो ज्यादा अच्छा होता। मन की मन में न रहती।
ReplyDeleteलो ये भी कोई बात हुई, बोल देना था. आगे जो होगा देखा जाएगा :)
ReplyDeleteना पूछ के पछताने से अच्छा है पू्छ कर पछताया जाय। कभी कभार सबकी मन की बात पूछने से अच्छे कॉम्प्लीमेण्ट्स भी मिल जाते हैं।
ReplyDeleteहमने तो जब भी सवाल किये लफ़ड़े ही हुये बाद मे तो कुछ कहने से पहले ही चुप करा दिया जाता था।
ReplyDeleteहमने तो जब भी सवाल किये लफ़ड़े ही हुये बाद मे तो कुछ कहने से पहले ही चुप करा दिया जाता था।
ReplyDeleteकुछ साल पहले सवाल पुछने का किड़ा मुझे भी था.. कभी ह्युमर समझ कर लोग टाल देते थे.. कभी ऐसे बिहेव करते कि मैं नासमझ और कम अनुभवी हूँ.. पर तीन चार वर्ष में समझ आया कि मेरे सवाल गलत नहीं होते थे.. इसलिये टाल बल्कि इसलिये टाल दिये जाते थे कि किसी के पास उनका जबाब नहीं होता था... अब ज्यादातर सवाल अपने पास रखता हूँ और खुश रहता हूँ.. :)
ReplyDeleteकेवल हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहाँ बिना सेंस ऑफ़ ह्यूमर के भी मजे से काम चल सकता है ...इतने चिरकुट है की पूछो मत.....मजे की बात सारी उम्र गुजार देने के बाद भी इन्हें पता नहीं लगता ....के ये इत्ते बड़े चिरकुट है...मसलन हमारे एक होस्टल सहनिवासी थे .. सोते से उठाकर पूछते थे ....सो रहा था .......तेरी..########
ReplyDeleteलोग जब भी मिला मुंह उठा करके फोन करके सीधा बोलते है .अजी डॉ साहब वो दवाई किस टाइम लेनी है ....वो ट्यूब कैसे लगानी है ..... भाई कौन बोल रहे हो ?कौन सी बीमारी थी ....दवाई का नाम तो बतायो.........
एक बुजुर्ग साहब को माइक इतना प्रिय है के वे जब भी किसी मीटिंग में इसे पकड़ लेते है हमें पता लग जाता है अब वाट लग गयी.......
वैसे ...
जब पी एम् टी की तैयारी करते थे तो ओर्गानिक केमिस्ट्री के ट्यूशन के बाद अक्सर हमारे टीचर को एक आदत होती थी पूछने की ओर कोई" क्वेरी "..हम रोज हाथ खडा कर देते ...एक महीने बाद वे कहने लेगे ....इसके अलावा किसी ओर की कोई क्वेरी ?
इस बहाने हँस लिए, सुबह से हँसा नही था। शुक्रिया।
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