यह महरूम नुसरत फ़तेह अली खान का गाया एक कव्वाली है.. मुझे यह नेट पर पॉडकास्ट करने के लिये कहीं मिला नहीं, मगर मैं जल्द ही इसे अपलोड करके पॉडकास्ट कर दूंगा.. फिलहाल इसे पढ़कर ही इसका लुत्फ़ उठायें.. :)
दर्द रूकता नहीं एक पल भी,
इश्क की ये सजा मिल रही है..
मौत से पहले ही मर गये हम,
चोट नजरों की ऐसी लगी है..
ऐसी लगी है...
ऐसी लगी है...
ऐसी लगी है...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है...
ऐसी लगी है उनसे...
मेरी रो रो के कटती है रैन पिया,
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
सावन कि काली रतों में,
जब बूंदा-बांदी होती है..
जब सुख कि नींद में सोता है,
तब बिरहा म्हारी रोती है..
बड़ी रो रो कटती है रैन पिया,
जबसे लागी है तुम संग नैन पिया..
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
हे लागी नाही छूटे रामा,
चाहे जिया जाये..
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
पत्थर को भी काटो तो वो कट सकता है,
काटे नहीं कटती सब-ए-फ़ुरकत मेरी..
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
आंख जब से लड़ी मेरी उनकी,
जिंदगी हो गई मेरी उनकी..
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
ऐसी लगी है उनसे...
अब तो, उनसे लगी है...
अब तो, उनसे लगी है...
अब तो, उनसे लगी है...
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
वही जो बैठे हैं महफ़िल में सर झुकाये हुये..
मेरी, इनसे लगी है..
मेरी, इनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का?
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
बलमा के द्वारे, ठारी पुकारूं..
अहमद हमरो छैला हो..
बल बल जाऊं, वांकी सखी री..
हैदर जां के बीर ना हो..
जां के ललना, हंस नैन प्यारे,
ईस पे जिनका साया हो..
बेटी जां की साथ मजहरा,
सद के उन पर जियरा हो..
ऐसे पिया की उंगली पकर कर,
ले चल रे बाजरिया हो..
पुछन लगे, नगर का लोकवा,
ई का लागो तुमरा हो..
लाज की मारी कह ना सकूं मैं,
ई लागो मोरे सैंया हो..
(यहां कुछ गलतिया हो सकती है.. कुछ साफ आवाज नहीं थी यहां..)
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
कह दूं तोरा मोहे डर काहे का?
प्रीत करी का मैं चोरी करी रे!!
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
मेरी, उनसे लगी है..
चोट नजरों की ऐसी लगी है,
मौत से पहले ही मर गये हम..
बेवफ़ा इतना अहसान कर दे,
कम से कम इश्क की लाज रख ले..
दो कदम चल के कांधां तो दे दे,
तेरे आसिक़ की मय्यत उठी है..
रखना दुनिया भी है,
मौका भी है,
दस्तूर भी है..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
मरने वाले तो अपने जां से गये..
आपकी बेवफ़ाईयां ना गई..
चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
बीमार का दिल टूट चुका,
उठ चुकी मय्यत..
अब तो कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
दो कदम, चल-चल के कांधां तो दे दे..
तेरे आसिक़ की मय्यत उठी है..
रात कटती है गिन-गिन के तारे..
नींद आती नहीं एक पल भी..
आंख लगती नहीं अब हमारी..
आंख गुप-चुप से ऐसी लगी है..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
तारों का <समझ नहीं आया :)> में आना मुहाल है..
लेकीन किसी को नींद ना आये तो क्या करे?
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
तुम्हारे वादे की ऐसी कटी वारी रात..
के इंतजार में तारे गिने हजारी रात..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
सितारों! मेरी रातों के सहारों..
सितारों! मेरी रातों के सहारों..
सितारों! मेरी रातों के सहारों..
मुहब्बत की चमकती यादगारों..
सितारों! मुहब्बत की चमकती यादगारों..
सितारों! मुहब्बत की चमकती यादगारों..
सितारों! मेरी रातों के सहारों..
सितारों! मुहब्बत की चमकती यादगारों..
ना जाने मुझको नींद आये ना आये?
तुम्ही आराम कर लो, बेकरारों..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
किसी कि सब-ए-वश्ल सोते कटे हैं..
किसी कि सब-ए-हिज्र रोते कटे हैं..
ईलाही, हमारी, ये सब कैसी सब है?
ना सोते कटे है, ना रोते कटे है..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के, गिन-गिन के तारे..
रात कटती है गिन-गिन के तारे..
नींद आती नहीं एक पल भी..
आंख लगती नहीं अब हमारी,
आंख गुप-चुप से ऐसी लगी है..
इस कदर मेरे दिल को निचोड़ा..
एक क़तरा लहू का ना छोड़ा..
जगमगाती है जो उनकी खलबत..
वो मेरे खून की रोशनी है..
लड़खड़ाता हुआ जब भी नांदां..
उनकी रंगीन महफ़िल में पहूंचा..
देखकर मुझको लोगों से बोले..
ये वही बेवफ़ा आदमी है..
दर्द रूकता नहीं एक पल भी,
इश्क की ये सजा मिल रही है..
पूरी कव्वाली उतार देने की बधाई! धन्यवाद कि हम पढ़ सके।
ReplyDeleteसावन कि काली रतों में,
ReplyDeleteजब बूंदा-बांदी होती है..
जब सुख कि नींद में सोता है,
तब बिरहा म्हारी रोती है..
बधाई...
वाह आज तो आपने बहुत शाबासी का काम कर दिया. बहुत धन्यवाद. इसको सुनवाने की कोशीश करिये. या फ़िर लिंक ही लगा देते.
ReplyDeleteरामराम.
धन्यवाद.... आपने तो पूरी कव्वाली ही उतार दी post में........... अब सुन कर और maza aayega
ReplyDeleteअसल मजा सुनने में आयेगा। इन्तजार है।
ReplyDeleteवैसे ब्लॉगिंग जुनून का वैकल्पिक नाम है। इतनी लम्बी गजल ठेलना साबित करता है!
सुनकर ज्यादा मजा आएगा
ReplyDeleteBahut Badiya :)
ReplyDeleteहे लागी नाही छूटे रामा,
ReplyDeleteबहुत स्टेमिना है आप में ,
ReplyDeleteजान गये हम !
atyant uttam post...........
ReplyDeleteanand aagaya
badhaai ho bhai...........
bahut badhaai !
देखो प्रशान्त पढ़ कर पेट नहीं भरता और न ही गाना पढ़ कर मजा आता है.. क्या करते कुछ ढुढा..
ReplyDeleteexactly same नहीं है जैसा तुमने लिखा है.. पर गाना यही है.. सुनो
http://www.youtube.com/watch?v=xsVMN9djbQE
है ये भी बहुत प्यार.. क्या कहते हो?
वैसे और भी कुछ है यु ट्युब पर.. मिलता जुलता..
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