आदरणीय प्रधान सचिव महोदय एवं ग्रामीण विकास विभाग परिवार के सभी सदस्य मित्रों, बिहार प्रशासनिक सेवा के सदस्य के रूप में लगभग 33 वर्षों की सेवा के उपरांत आज मैं सेवा निवृत हो रहा हूं। बन्धुवों, यह कोई अनहोनी घटना नहीं है, बल्कि प्रकृति के शाश्वत नियम कि "जो आज धरती पर आया है कल यहां से जायेगा" के अनुरूप कि जो सेवा में आया है कल रिटायर होगा, के अनुरूप ही है। आज से पहले तक मैं दुसरों को सेवा निवृत होते देखता था और अवसर मिलने पर भाषण देता था कि आजतक जो सरकारी सेवा का बंधन था उससे उन्मुक्त होकर नये स्वतंत्र जीवन में प्रवेश करने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है, कोई बंधन नहीं रहा और उन्मुक्त गगन में स्वतंत्र पंछी की तरह उड़ने के लिये सारा आसमान खुला हुआ है आदि-आदि। परन्तु, आपने पिंजरे में बंद तोता को देखा होगा। तोता बंधन में नहीं रहना चाहता और खुले आसमान में स्वच्छन्द उड़ते रहना उसकी स्वभाविक वृत्ति है। फिर भी यदी वह तोता कुछ दिन पिंजरे में बंद रह जाये तो उस पिंजरे से ही तोता को मोह हो जाता है और अवसर मिलने पर भी, यानी पिंजरे का दरवाजा अचानक खुल जाने पड़ भी वह पिंजरे में ही रहना चाहता है - तुरंत उड़ नहीं जाता। यदि वह पिंजरे से बाहर निकल भी आये तो वह पुनः पिंजरे में ही जाना चाहता है। किन्तु यह स्थिति बहुत देर तक नहीं नहीं रहती और समझ आते ही कि वह बंधनमुक्त हो चुका है, वह खुले आसमान में उड़ जाता है। मित्रों, आज मेरी भी स्थिति कुछ-कुछ उस तोते जैसी ही है. लगभग 33 साल सरकारी सेवा रूपी पिंजरे में रहा उस पिंजरे का मोह भी कुछ-कुछ होना स्वाभाविक ही है, किन्तु उस तोते जैसे खुले आसमान में स्वच्छन्द विचरने का आकर्षण भी कम नहीं है। खैर, अब छोड़ता हूं इन दार्शनिक एवं छायावादी बातों को। जहां तक ग्रामीण विकास विभाग में मेरे बीते दिनों की बात है, मैं यहां 20 सितम्बर 2006 को संयुक्त सचिव के रूप में योगदान दिया और विभाग के विभिन्न प्रशाखाओं का कार्य करता आया हूं। इस दौरान प्रशाखा-8 की "नरेगा" योजना को छोड़कर विभाग की लगभग सभी प्रशाखाओं में कार्य करने का मौका मिला। फलस्वरूप विभाग के अधिकांश कर्मचारियों एवं पदाधिकारिओं के साथ जहां सीधा सम्पर्क स्थापित हुआ वहीं आपलोगों से सचिवालय संवंधी विभिन्न कार्यों को सीखने का मौका भी मिला। मेरा स्वयं का कार्य-कलाप कैसा रहा इसका आकलन करने का काम मैं आपलोगों पर ही छोड़ता हूं, किन्तु इतनी बात कहने का मुझे भी अधिकार है कि मैंने अपना कार्य सच्ची निष्ठा एवं निस्वार्थ भाव से तत्परतापूर्वक किया है। इस क्रम में अपने आदर्श तत्कालीन प्रधान सचिव बिहार श्री अनूप मुखर्जी जी का मैं खास तौर से दिल से शुक्रगुजार हूं कि उनके मार्गदर्शन में मैंने अपने कार्यों में दिनानुदिन निखार लाया और कार्य निष्पादन के लिये बहुत सारी नयी बातों एवं दृष्टिकोण से भी परिचित हुआ। उन्ही की प्रेरणा, समालोचना एवं प्रशिक्षण देने की शैली के सहारे ग्रामीण विकास विभागीय योजनाओं, खासकर बी.पी.एल., इंदिरा आवास योजना, स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना आदि के प्रशिक्षक के रूप में निष्पात हो सका एवं राज्य के तत्कालीन सभी प्रमंडलीय आयुक्त, जिला पदाधिकारी, उप विकास आयुक्त, प्रखण्ड विकास पदाधिकारी एवं अन्य पदाधिकारी/कर्मचारी को इन योजनाओं से संबंधित प्रशिक्षण देने का सुअवसर भी मिला। वर्तमान प्रधान सचिव, श्री विजय प्राकश जी के साथ बहुत कम ही समय मुझे कार्य करने का मौका मिला, किन्तु ग्रामीण विकास विभागीय योजना एवं उसके क्रियान्वयन संबंधी उनकी सोच से मैं प्रभावित हूं। मुझे दुःख है कि उनकी सोच के अनुरूप योजनाओं के कार्यान्वयन में सहयोग देने से मैं वंचित रहूंगा, किन्तु मेरी शुभकामना है कि इस कार्य में वे सफल हों। अंत में आप सबों को हार्दिक शुभकामना देते हुये मैं आभार एवं धन्यवाद प्रकट करता हूं कि आप सबों ने मुझे अपने कार्य संपादन में भरपूर सहयोग दिया। साथ ही मेरी कार्यावधि के दौरान यदि किसी को मेरी किसी बात या कार्य से दुःख पहुंचा हो तो इसके लिये क्षमायाचना करता हूं, हालांकि प्रकटतः जान बुझकर मैंने ऐसा कोई कार्य नहीं किया है। एक बार पुनः आप सबों को हार्दिक शुभकामना एवं धन्यवाद! आपका शुभाकांक्षी उदय कान्त लाल दास निदेशक (सामाजिक वानिकी), ग्रामीण विकास विभाग, बिहार, पटना |
पिताजी द्वारा किया गया आभार संबोधन
कल मेरे पापाजी रिटायर हो गये। अपने जीवन के पूरे 33 साल किसी नौकरी को देने के बाद उसे अचानक से छोड़कर चले जाना कैसे होता है यह उन्हीं से पूछिये जिनके साथ यह घटा हो। मगर कल जब वह घर वापस आये तो गर्व से उनका सीना कुछ और चौड़ा था और दर्प से चेहरे पर कुछ और चमक थी। क्यों? यह मैं अगले पोस्ट में बताऊंगा, फिलहाल आज आपके सामने मैं उन पंक्तियों के साथ आया हूं जो पापाजी ने अंतिम दिन दफ़्तर छोड़ने से पहले आभार संबोधन करते हुये कहा।
पिता जी को नई रिटायर्ड लाईफ के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteउन्मु्क्त गगन में उड़ना - ठीक कहा आपने। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
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आज बिहार और उत्तर प्रदेश में सरकारी सेवाओ की जो दुर्गति है उसे देखकर तो लगता है वे बहुत भाग्यशाली हैं जो रिटायर हो रहे हैं -आपके पिता जी को पुनर्जीवन की बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteमेरे हिसाब से जिंदादिल लोग कभी रिटायर नहीं होते। मैं भरोसे के साथ कह सकता हूँ आपके पापा अपने आप को पहले से भी ज्यादा व्यस्त कर लेंगे। काम करनेवाला व्यक्ति खाली बैठ ही नहीं सकता, हॉं बंधनमुक्त होकर और भी आजादी से कार्य करता है।
ReplyDeleteपिताजी के लिये आगे आने वाले समय के खुशनुमा होने की कामना करता हूं- उनके अच्छे स्वास्थ्य की दुआ के साथ! अगली पोस्ट का इंतजार है।
ReplyDeleteजितेन्द्र जी से पूरी तरह सहमत हूं।पापाजी और एक्टिव होकरअपने को व्यस्त रखेंगे,मैने इसे देखा है खुद अपने ही घर मे।उनके उज्जवल रिटायर्ड लाईफ़ की कामना करता हूं।
ReplyDeleteसही है अपने को व्यस्त रखना रिटायर होने के बाद
ReplyDeleteअपने पिताजी के अनुभव का लाभ उठाये और हमें भी उठाने दे . उनको बधाई काजल की कोठरी से बेदाग़ निकलने पर
ReplyDeleteआप वहीँ थे न तब? आपने कहा तो था की जाइएगा ..पिता जी को नए जीवन में प्रवेश के लिए हार्दिक शुभकामनायें...और हाँ एड्रेस मेल कर दें ..कहीं गुम हो गया है.
ReplyDeleteअच्छा है अब सकुन से दुनिया घूमेगें... मैं भी इंतजार कर रहा हूँ मेरे पापा मम्मी के रिटायरमेंट का.. फिर वो आराम से मेरे साथ आकर रह सकेगें..
ReplyDeleteसही कहा आपके पिताजी ने यही प्रकृति का नियम है.
ReplyDeleteआपके पिताजी को नयी शुरुआत के लिए शुभकामनाऐं.
'आपने पिंजरे में बंद तोता को देखा होगा। तोता बंधन में नहीं रहना चाहता और खुले आसमान में स्वच्छन्द उड़ते रहना उसकी स्वभाविक वृत्ति है। फिर भी यदी वह तोता कुछ दिन पिंजरे में बंद रह जाये तो उस पिंजरे से ही तोता को मोह हो जाता है और अवसर मिलने पर भी, यानी पिंजरे का दरवाजा अचानक खुल जाने पड़ भी वह पिंजरे में ही रहना चाहता है - तुरंत उड़ नहीं जाता। यदि वह पिंजरे से बाहर निकल भी आये तो वह पुनः पिंजरे में ही जाना चाहता है। किन्तु यह स्थिति बहुत देर तक नहीं नहीं रहती और समझ आते ही कि वह बंधनमुक्त हो चुका है, वह खुले आसमान में उड़ जाता है।'
ReplyDelete- इस संबोधन के द्वारा आपके पापा ने एक सच को अत्यंत दार्शनिक अंदाज में प्रस्तुत लिया है.
पिता जी को राजकीय सेवा से मुक्ति और एक नए आकाश में प्रवेश के लिए अनेक शुभकामनाएँ। उन का विदाई संबोधन राजकीय सेवा में कर्मठ बने रह कर अपने कर्तव्यों की पूर्ति करने का प्रतीक बन पड़ा है।
ReplyDeleteसेवानिवृत्त जीवन के लिए कुछ न कुछ उपयोगी काम उन्हें शीघ्र ही आरंभ करना चाहिए। जिस से वे न केवल व्यस्त रहें अपितु परिवार और समाज के लिए कुछ न कुछ नया कर सकें।
उन्हें फिर से अनेक शुभकामनाएँ।
उन्मुक्त गगन
ReplyDeleteहै अब घर मेरा।
संबोधन से झलक रहा है कि अंकल जी ने आगे की स्पष्ट रणनीति पहले से ही तैयार की हुई है,
ReplyDeleteकामना करता हूँ कि वे व्यस्त रहें !
जिसने जीवन में काम करना सीखा है वो कभी रिटायर्ड नहीं होता............ आपके पिताजी भी अपना कार्य करेंगे ये नहीं तो कोई और........ शुभकामनाएं हैं उनको हमारी भी.........
ReplyDeleteaapne to sirf papajee ke bihar administrative service ke 33 saalon ke baare mein kaha hai aur usse pehle ke 4 saalon ke p&t audit mein kiye hue service ko add nahin kiya hai, actually unhone 38 saal service ki hai, ek saal census mein bhi diya hai ( huge experience hai na!!!!)
ReplyDeleteसरकारी पद पिंजरा तो नहीं होता .. कर्तब्यों के साथ ही साथ बहुत अधिकार भी होते हैं इसमें .. जो अपने कर्तब्यों की जिम्मेदारियों को निभाते आए हैं .. वही रिटायरमेंट के बाद आराम करने की बात सोंचते हैं .. पर जो अधिकारों का दुरूपयोग करते आए हैं .. उन्हें पद को छोडना बहुत मुश्किल हो जाता है .. आपके पिताजी नए रिटायर्ड लाइफ को खुशहाल होकर जी पाएंगे .. उन्हें शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteनई रिटायर्ड लाईफ के लिए अनेक शुभकामनाऐं
ReplyDeleteमुझे अपने पापा का रिटायरमेंट स्पीच याद आ गया यार.. मैं सोच भी नही सकता था.. मेरे पापा ऐसा सेनटी स्पीच दे सकते है... माय गुड विशस आर ऑल्वेज़ विद अंकल..
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